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शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 3

                                     लघु गीता 

                        अध्याय 3

कर्मों को प्रारंभ न करने से कोई निष्काम नहीं हो सकता और कर्म त्याग से न कोई संन्यासी हैं और न कोई सिद्धि प्राप्त कर सकता है।

प्रकृति के गुण सब मनुष्यों को कुछ न कुछ कर्म करवातें है।इसलिए मन ,बुद्धि व कर्म इंद्रियों को वश में करके अपने नियमित काम को करते रहना ही करम यज्ञ है। व फल की इच्छा ना करना ही संन्यास है और इसी तरह वश में करके प्रभु चिंतन करना चाहिए और यदि मन, बुद्धि, और ज्ञान इंद्रियां चिंतन करते समय वश में ना हो और विषयों का चिंतन करता है, वह पापी, मिथ्याचारी कहलाता है।

           सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने यज्ञ सहित उत्पन्न करके कहा कि यज्ञ से ही बुद्धि,सुख और कल्याण को प्राप्त होंगे। जो स्वयं सामग्री भोग से पहले, इस का भाग, दान आदि नहीं करता है। वह पापी और देवताओं का चोर है।

       राजा जनक आदि ने भी फल की इच्छा को छोड़ कर कर्म किया और मोक्ष प्राप्त किया। श्रेष्ठ मनुष्य जिस कर्म को करते है दूसरे लोग भी उसे प्रमाणिक मान कर उसे करते है और उत्तम मानते है। कृष्ण जी कहते है कि मुझे सब वस्तुएं प्राप्त हैं और फिर भी मैं कर्म करता रहता हूं अन्यथा आलस में आकर मैं कर्म न करूं तो अन्य लोग भी काम नहीं करेंगे और वे नष्ट हो जाएंगे और इससे वर्णसंकर उत्पत्ति हो जाएगी ,जो अपने पूर्वजों को नष्ट भी करेंगे और नर्क में भेजेंगे। अज्ञानी लोगों को प्रेम पूर्वक कर्म करवातें हुए धीरे धीरे ज्ञान उत्पन्न करने की चेष्टा करें।सब कर्म प्रकृति के गुणों को समझ करके होते है –परंतु कुछ मूर्ख लोग स्वयं को ही कर्ता समझ कर अभिमान को प्राप्त होते हैं। परंतु जो गुण व कर्म के रहस्य को समझता है कि यह प्रकृति का ही खेल है वह ज्ञानी हैं। मनुष्य मात्र अपनी प्रकृति के अनुसार चलता है परंतु अन्य जीवों को स्वभाव अनुसार रहना पड़ता है। स्वयं विषयों को वश में करके रखना ही पुण्य है और विषय के वश में होना पाप है। रजोगुण ही मनुष्य का काम क्रोध उत्पन्न करता है और गलत कार्य की भावना की ओर ले जाता हैं। यह शत्रु है और कभी तृप्त नहीं होता और ज्ञान विज्ञान को नाश करता है मन व बुद्धि इसके आश्रय स्थल है– इसलिए इस काम को सर्वप्रथम इस दुर्धर शत्रु को जितना आवश्यक है।

😊🙏

रविवार, 3 अगस्त 2025

लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"

                       लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"


लघु गीता – भगवद गीता का सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता का सार संक्षेप में पढ़ें। लघु गीता के माध्यम से जानिए जीवन, कर्म, भक्ति और आत्मा का शाश्वत ज्ञान, सरल और सुंदर भाषा में।

लघु गीता – जीवन का सार, श्रीकृष्ण के श्रीमुख से


श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह जीवन का मार्गदर्शक है। इसमें अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से जीवन, धर्म, आत्मा और कर्म का ऐसा ज्ञान दिया गया है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।


🌿 क्यों पढ़ें 'लघु गीता'?

समय की कमी या सरलता की चाह रखने वालों के लिए लघु गीता में भगवद्गीता का सार संक्षेप में दिया जाता है, जिससे हम जीवन के मूल तत्वों को आसानी से समझ सकें।

लघु गीता (सरल रूप)

अध्याय 1
हे भगवान जो अर्जुन को ज्ञान दिया वह ज्ञान मुझे भी मिले, मैं आपकी शरण में आया हूं।जब कौरव व पांडव युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र गए तब धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर में ही युद्ध देखने का संजय से आग्रह किया। तब श्री वेदव्यास जी की कृपा से संजय को दिव्या दृष्टि मिली, व दिव्या बुद्धि प्रदान हुई और उसी से वह युद्ध में एकत्र सेना का वृतांत सुनाने लगे। कृष्ण जी अर्जुन के साथ रथ पर युद्ध में आए और प्रतिद्वंद्वी दल में सभी सगे संबंधियों को पाया और कृष्णा जी से कहा कि स्वजनों को मार कर राज्य कमाना तो पाप है और हम कुल नाश के दोषी बनेंगे। प्राचीन धर्म नष्ट होंगे, कुल में पाप बढ़ेंगे, कुल की स्त्रियां व्यभिचार होगी, वर्णसंकर संताने होगी और वे  संताने कुल को नाश करने वाले हम पुरुषों को नर्क में पहुंचाएंगी। ऐसे कुल का नाश करके राज्य प्राप्ति करना घोर पाप है ,और इससे अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ,भगवान श्री कृष्ण के सामने हथियार डालकर दुखी होकर बैठ गए।

अध्याय 2

जब अर्जुन ने पितामह व गुरु मोह में अपने को निर्बल पाया, कि युद्ध में अपने सगे संबंधियों पर कैसे प्रहार करू, तो कृष्ण जी ने कहा यह शरीर सब नाशवान है, परंतु आत्मा अमर है जो केवल पुराने कपड़ों की भांति चोला बदलता है और ना घटती है ना बढ़ती है, ना सूखती है न गीली होती है, ना जन्मती है न मरती है। न शस्त्र इसे काट सकत है ना आग इसे जला सकती है। इसलिए हे अर्जुन धर्म पूर्वक युद्ध करो क्योंकि ये दुष्ट है दुष्ट का साथ दे रहे हैं, और इनका नाश करना क्षत्रिय धर्म ही है और इसी में तुम्हारी बढ़ाई है। अन्यथा तुम्हारी निंदा होगी और लोग  तुम्हें  कायर कहेंगे, यश और कीर्ति खो बैठोगे ,जो जीते हुए भी मृत्यु के समान है। धर्म युद्ध करना तुम्हारा कर्म यज्ञ है। जिसमें लाभ हानि, जय पराजय, सुख-दुख को समान समझ कर परम धर्म प्राप्त करो, फल की इच्छा छोड कर कर्म करना ही ज्ञान है। निष्काम बुद्धि ही ज्ञान प्राप्त कराती है, निश्चय या स्थिर बुद्धि वही है जो प्रसन्नचित निष्काम हो दुख में दुखी न हो और सुख में डूब ना जाए। तथा प्रति, भय, क्रोध जिसके वश में  है वह महात्मा है।


शनिवार, 2 अगस्त 2025

रक्षा बंधन 2025 : भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

रक्षा बंधन : भाई-बहन के प्रेम का पर्व और इसका आध्यात्मिक महत्व

      रक्षा बंधन 2025: भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

भाई-बहन के रिश्ते का सबसे प्यारा और पवित्र पर्व है रक्षाबंधन। यह सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि स्नेह, विश्वास और सुरक्षा का वादा है, जो बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती है। 

रक्षा बंधन 2025 का पर्व कब है, इसका पौराणिक महत्व, पूजा विधि व आध्यात्मिक संदेश – जानिए इस त्योहार का सम्पूर्ण अर्थ।

रक्षा बंधन का महत्व और इसकी आध्यात्मिक भावना
हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाने वाला रक्षा बंधन भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और रक्षा-संवेदनाओं का प्रतीक पर्व है। यह केवल एक रक्षासूत्र बांधने का आयोजन नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश देने वाला त्यौहार है।

🪻 रक्षा बंधन 2025 में कब है?

रक्षा बंधन 2025 को 9 अगस्त, को मनाया जाएगा। शुभ मुहूर्त में राखी बांधने से जीवन में प्रेम, सौहार्द और सुरक्षा का भाव प्रबल होता है।

🌼 रक्षा बंधन का पौराणिक आधार

  1. श्रीकृष्ण और द्रौपदी कथा:
    जब श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लगी, द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधा। कृष्ण ने उसे ‘रक्षा’ का वचन दिया। यही रक्षाबंधन का आध्यात्मिक बीज है।

  2. इन्द्राणी और इन्द्र देव:
    देवासुर संग्राम में इन्द्राणी ने इन्द्र की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा, जिससे इन्द्र की विजय हुई। यह सूचक है कि रक्षा बंधन आत्मबल और देव कृपा से रक्षा का पर्व है।

🌿 रक्षा बंधन की पूजा विधि

  • श्रावण पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान कर पवित्र होकर पूजा करें।
  • थाली में राखी, चावल, दीपक और मिठाई रखें।
  • भाई की आरती करें, तिलक लगाएं और राखी बांधकर मिठाई खिलाएं।
  • भाई बहन को उपहार देकर रक्षा का संकल्प करता है।

🪔 आध्यात्मिक भावार्थ

‘रक्षा बंधन’ केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं है। यह हर जीव के प्रति रक्षा-संवेदना का संदेश देता है। यह अहिंसा, स्नेह और कर्तव्यबोध का पर्व है। यह रिश्तों की गरिमा को बढ़ाने का माध्यम है।

🌸 रक्षा सूत्र का मंत्र:



“ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”

इस मंत्र के साथ बांधी गई राखी दिव्य शक्ति का आवाहन करती है।


📿 निष्कर्ष

रक्षा बंधन एक पारिवारिक पर्व है, परंतु इसका संदेश संपूर्ण समाज के लिए है – कि हम सभी एक-दूसरे की रक्षा और सम्मान में बंधे रहें। यह प्रेम, सेवा और समर्पण का सूत्र है।




रविवार, 27 जुलाई 2025

सावन में भगवान भोलेनाथ (शिवजी) की पूजा विशेष रूप से क्यों की जाती है,

 सावन में भगवान भोलेनाथ (शिवजी) की पूजा विशेष रूप से क्यों की जाती है।


 इसके पीछे धार्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक तीनों दृष्टिकोणों से गहरे कारण हैं:

1. पौराणिक कारण:

  • समुद्र मंथन और विषपान: पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब "हलाहल विष" निकला तो पूरी सृष्टि संकट में पड़ गई। भगवान शिव ने करुणा दिखाते हुए वह विष पी लिया। यह घटना सावन मास में ही हुई थी। विष के प्रभाव से भगवान शिव का शरीर जलने लगा, और देवताओं ने उन्हें शांत रखने के लिए गंगाजल चढ़ाया और बिल्वपत्र अर्पित किए। तभी से सावन में शिवलिंग पर जलाभिषेक और बिल्वपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

2. भगवान शिव और पार्वती का विवाह:

  • मान्यता है कि देवी पार्वती ने सावन मास में ही कठोर तप कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए सावन को शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। इस कारण महिलाएं शिवजी की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु व सौभाग्य की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती हैं।

3. प्राकृतिक कारण:

  • सावन मास वर्षा ऋतु का समय है। यह समय शरीर और मन को शुद्ध करने का है। जल से शिव का अभिषेक करना प्राकृतिक रूप से भी ताजगी और शांति का अनुभव देता है। साथ ही, इस समय प्रकृति हरी-भरी होती है और शिव को प्रकृति का स्वामी माना गया है – वे कैलाश पर्वत पर विराजमान हैं, जो स्वयं एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है।

4. श्रावण मास में सोमवार व्रत का महत्व:

  • सावन के सोमवार व्रत (श्रावण सोमवार) अत्यंत फलदायक माने जाते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मास में सोमवार को व्रत कर शिवजी की आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं

5. ज्योतिषीय कारण:

  • श्रावण मास के दौरान चंद्रमा की स्थिति शिव से जुड़ी मानी जाती है, और चंद्रमा शिवजी के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए चंद्रमा और शिव की उपासना इस मास में मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभदायक मानी जाती है।

निष्कर्ष:

सावन भगवान शिव का प्रिय मास है, जिसमें उनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह मास भक्ति, तपस्या और आंतरिक शुद्धिकरण का समय है, जो व्यक्ति को आत्मिक रूप से मजबूत करता है।

।।सांब सदाशिव।।

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

शिव चालीसा

                            शिव चालीसा


(श्री शिव जी की चालीसा — श्री हनुमान चालीसा की तरह, भगवान शिव की स्तुति में रचित 40 चौपाइयों की एक भक्ति रचना)

॥दोहा॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चौपाई॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीनदयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैनाक पर्वत परम सुहावन।
ध्यान करत मुनि ध्यान लगावन॥

काल कूट विष कण्ठ सम्हारे।
सो नाथ तुम्हारे कौन उपारे॥

अंधक नायक अहि असुर संहारे।
सुरन सिद्ध सेवक तुम्हारे॥

नन्दी ब्रह्मा आदि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जैमिनी व्यास आदि ऋषिगण।
तप करत ध्यानवत नित-नित॥

रामचन्द्र के काज सवारे।
लक्ष्मण मुर्छित प्राण उबारे॥

रावण मर्दन कीन्हा भारी।
पुत्र विभीषण राज दिलाई॥

मत्त भाल एक दानव मारा।
त्रिपुरासुर संहार सँवारा॥

भूत प्रेत पिशाच निसाचर।
सिंह सवारी करहिं तमाचर॥

भैरव आदि तुम्हारे सेवक।
सदा करें संतान के सन्दर्भ॥

तुम्हरो यश कोई नहिं गावे।
बिनु हरिचरण भवसागर पावे॥

जो यह पाठ करे शिव चालीसा।
निश्चय पाय शिवलोक का ईशा॥

अश्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
सब विधि पुरखे तुम्हें विधाता॥

एकानन चतुर्नान दस आनन।
तेहि शिव ध्यान करें मन कानन॥

धन्य शिव चरित्र अतिपावन।
शंकर नाम सुमिरत भव भंजन॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानें।
तीनों रूप अनूप बताने॥

अकथ अनादि अनन्त प्रभु सोही।
जानत एक राम जान कोही॥

शिव तत्त्व अति गूढ़ बतावा।
अद्भुत रूप अलौकिक छावा॥

शिव महिमा न जाइ बखानी।
जो शंकरमय जानै प्राणी॥

शिवजी को जो जानै भाई।
ताके मन रह न दुखाई॥

नित्य नेम करै जो कोई।
ता पर कृपा करै शंकर सोई॥

ऋणिया को ऋण दूर करै।
रोगी को रोग से उबारै॥

बांझे को पुत्र प्राप्त करावै।
नर को सम्पति से नहिं चुकावै॥

विद्या विनय शील बढ़ावै।
सदा यश कीर्ति जग में पावै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाव्याधि निकट नहिं पावै॥

जो यह पढ़ै शिव चालीसा।
होई सिद्धि साखी गौरीशा॥

पाठ करे श्रृद्धा मन लाई।
ताके संकट रहैं न काई॥

शंकर दयाल सदा सहाय।
करै भक्त पर कृपा अपार॥

॥दोहा॥
कहत अयोध्या दास यह, पूर्ण कीजै आस।
शंकर कृपा करहु प्रभु, राखो नाज हमारी॥

ॐ नमः शिवाय 


रविवार, 13 जुलाई 2025

ramraksha stotra

                   राम रक्षा स्तोत्र


यह रहा राम रक्षा स्तोत्र का हिंदी में अर्थ — श्लोक के बाद सरल हिंदी अनुवाद दिया गया है:

राम रक्षा स्तोत्र (हिंदी में अर्थ सहित)

1.
ॐ श्रीरामं रमणं मेणि रामं रम्यं भजे सदा।
रामेणाभिहितं स्तोत्रं रामरक्षा शुभप्रदम्॥

अर्थ:
मैं सुंदर, मनोहर भगवान श्रीराम का सदा भजन करता हूँ। भगवान राम द्वारा कहा गया यह राम रक्षा स्तोत्र शुभफल देने वाला है।

2.
ध्यानम् –
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥

अर्थ:
भगवान राम को ध्यान कीजिए जिनकी भुजाएं घुटनों तक हैं, जो धनुष-बाण धारण किए हैं, पद्मासन में विराजमान हैं, पीत वस्त्र पहने हैं, जिनकी आँखें कमल के समान हैं, जो प्रसन्न हैं, जिनके बाएँ भाग में माता सीता विराजमान हैं, जिनका रंग नीले मेघ के समान है, जिनका शरीर अनेक आभूषणों से शोभायमान है और सिर पर जटाजूट है।

3.
चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥

अर्थ:
श्रीराम का चरित्र करोड़ों कथाओं में विस्तारित है, और उसका एक-एक अक्षर ही महान पापों का नाश करने वाला है।

4.
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥

अर्थ:
नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल जैसी आँखों वाले, सीता और लक्ष्मण से युक्त, जटाओं से सुशोभित श्रीराम का ध्यान करें।

5.
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥

अर्थ:
जो हाथ में धनुष-बाण, तरकस धारण करते हैं, राक्षसों का नाश करते हैं, लीला से जगत का पालन करते हैं, वे अजन्मा और सर्वशक्तिमान भगवान श्रीराम प्रकट हुए हैं।

6.
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥

अर्थ:
बुद्धिमान व्यक्ति को यह राम रक्षा स्तोत्र पढ़ना चाहिए, जो पापों को नाश करने वाला और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। श्री राघव मेरे सिर की, दशरथ पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।

7.
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥

अर्थ:
कौसल्या पुत्र मेरी आँखों की, विश्वामित्र प्रिय मेरी श्रवण शक्ति की, यज्ञ की रक्षा करने वाले मेरी नाक की, और लक्ष्मण को स्नेह देने वाले मेरे मुख की रक्षा करें।

8.
जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥

अर्थ:
विद्या के भंडार मेरी जीभ की, भरत द्वारा पूज्य मेरे कंठ की, दिव्य शस्त्रधारी मेरे कंधों की, और शिव का धनुष तोड़ने वाले मेरी भुजाओं की रक्षा करें।

9.
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥

अर्थ:
सीता पति मेरे हाथों की, परशुराम को पराजित करने वाले मेरे हृदय की, खर को मारने वाले मेरे पेट की, और जाम्बवान के सहारे रहने वाले मेरी नाभि की रक्षा करें।

10.
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥

अर्थ:
सुग्रीव के स्वामी मेरी कमर की, हनुमान के स्वामी मेरी जांघों की, और राक्षसों का नाश करने वाले रघुकुलश्रेष्ठ मेरी ऊरुओं की रक्षा करें।

11.
जानुनी सेतुकृद्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥

अर्थ:
सेतु बनाने वाले श्रीराम मेरी घुटनों की, रावण का वध करने वाले मेरी पिंडलियों की, विभीषण को राज्य देने वाले मेरे चरणों की, और श्रीराम सम्पूर्ण शरीर की रक्षा करें।

12.
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥

अर्थ:
जो पुण्यात्मा यह राम रक्षा स्तोत्र पढ़ता है, वह दीर्घायु, सुखी, संतानवान, विजयी और विनम्र होता है।

13.
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुं अपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥

अर्थ:
पाताल, पृथ्वी या आकाश में विचरण करने वाले छिपे हुए शत्रु भी राम नाम से रक्षित व्यक्ति को देख तक नहीं सकते।

14.
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

अर्थ:
जो व्यक्ति 'राम', 'रामभद्र', 'रामचन्द्र' नाम का जप करता है, वह पापों से लिप्त नहीं होता, और उसे भौतिक सुख तथा मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं।

15.
जगज्जत्रं महेशानं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
एकबाणेन संहर्तुं सदा रामं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो भगवान महेश के समान हैं, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, एक बाण से ही जगत का संहार करने में समर्थ हैं, ऐसे श्रीराम को मैं नमन करता हूँ।

16.
रामाज्ञया चतुर्युगं तपो ज्ञानं च धारयन्।
रामरक्षा कृता तेन धर्मात्मना महात्मना॥

अर्थ:
श्रीराम की आज्ञा से तपस्वी और ज्ञानी उस धर्मात्मा महात्मा ने यह रामरक्षा स्तोत्र की रचना की।

अंत में प्रसिद्ध श्लोक:
श्रीरामराम रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

अर्थ:
हे सुंदर मुखवाली पार्वती! "राम" नाम का उच्चारण "रामरामराम" कहने से हजार नामों के बराबर फल मिलता है।

।।जय सियाराम।।


ramraksha stotra in sankrit

 राम रक्षा स्तोत्र एक शक्तिशाली संस्कृत स्तोत्र



राम रक्षा स्तोत्र एक शक्तिशाली संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि बुद्धकौशिक ने की थी। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम की कृपा और रक्षा प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है। इसे श्रद्धा से प्रतिदिन पाठ करने से भय, रोग, बाधा, भयभीत करने वाली शक्तियाँ तथा नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती हैं।

 रामरक्षा स्तोत्र (पूर्ण पाठ) 

श्री गणेशाय नमः।

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य
बुद्धकौशिक ऋषिः।
श्रीसीता रामचन्द्रो देवता।
अनुष्टुप् छन्दः।
सीता शक्तिः।
श्रीमद्हनुमान कीलकम्।
श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः॥

१.

ॐ श्रीरामं रमणं मेणि रामं रम्यं भजे सदा।
रामेणाभिहितं स्तोत्रं रामरक्षा शुभप्रदम्॥

२.

ध्यानम् –
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम्॥

३.

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्॥

४.

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥

५.

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत्त्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम्॥

६.

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥

७.

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥

८.

जिव्हां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥

९.

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥

१०.

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥

११.

जानुनी सेतुकृद्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥

१२.

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥

१३.

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।
न द्रष्टुं अपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥

१४.

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति॥

१५.

जगज्जत्रं महेशानं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
एकबाणेन संहर्तुं सदा रामं नमाम्यहम्॥

१६.

रामाज्ञया चतुर्युगं तपो ज्ञानं च धारयन्।
रामरक्षा कृता तेन धर्मात्मना महात्मना॥

श्रीरामराम रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥

।।जय सियाराम।।

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