आपका दिन मंगलमय हो !
मैं एक पेज़ और शु रू करने जा रही हूँ। जिसमे कभी -कभी मेरे अंतर्मन में कुछ विचार उठते हैं जिनको मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ।
इस पेज़ को मैं नाम दे रही हूँ -मेरे अंतर्मन की आवाज !
आजकल धर्म को लेकर बहुत चर्चाए चल रही हैं। धर्म परिवर्तन हो रहे हैं। जगह -जगह धर्म के नाम पर दुखी लोगो का फायदा उठाकर अपनी तिजोरी को भरा जा रहा हैं।
हम आप से यह पूछते हैं कि जब हमे कोई दुःख या कष्ट होता हैं। तो हम उस परमपिता परमेश्वर की ही शरण में क्यों नहीं जाते। हमे उनके पास अपनी बात को पहुंचाने के लिए किसी midiater की ही जरूरत क्यों पड़ती हैं। हम सीधे ही अपने माँ- पिता से सीधे ही बात क्यों नहीं करते। एक बार आप उस परमेश्वर से कोई रिश्ता बना कर तो देखिये। मैं पुरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि फिर आपको किसी अन्य के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कोई भी आपका फायदा नहीं उठा पायगा। लकिन शर्त एक ही हैं कि आपको अपने आपको पूरी तरह से समर्पित करना पड़ेगा। (यहाँ पर मैं समर्पण किसी
इंसान के आगे करने के लिए नहीं कह रही हूँ बल्कि
ईश्वर के आगे समर्पण करने के लिए कह रही हूँ। )मुझेभी कई बार ऐसी उलझन हुई हैं कि मन ने कहाँ कि किसी ज्योतिषी की शरण में चला जाए , लकिन तभी मेरी अंतरात्मा मुझे रोक लेती हैं। जो इस सारे विश्व की देखभाल कर रहा हैं , वो क्या हमको नजरअंदाज करेंगे। हम तो उन्ही की संतान हैं।
अगर आपने कभी गोर किया हो तो जाना होगा की अक्सर हमारे मन में दो विचार आते हैं एक गलत होता हैं व एक सही। यह हमे निर्णय लेना हैं कि हम किस को चुने।
एक बात और कोई भी धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता। मेरा सिर तो जितने आस्था के साथ मंदिर में झुकता हैं। उसी आस्था के साथ मस्जिद में , गुरूद्वारे में , चर्च में भी झुकता हैं। मेरे माता -पिता के रूप में अगर मेरे भोले बाबा व गोऱा माँ हैं, तो वही जीसस , नानक देव , व पीर मोहम्मद भी मेरे माता -पिता ही हैं।
आपके कारण किसी को दुःख न पहुंचे। हर असहाय की तुम सहायता करो। तुम्हारे पास कोई भी वस्तु ज्यादा हैं उसे किसी जरूरत मंद को दे दो।
आप जब किसी के होठों पर मुस्कान लाओगे तब जो खुशी आपको मिलेगी वो सब से हट कर होगी।
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