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बुधवार, 27 जून 2018

ईश्वर को कैसे पुकारें

                         पुकार की महिमा

यद्यपि भीतर में राग द्वेष काम क्रोध ,मोह आदि वृत्तियाँ रहने के कारण सच्ची प्रार्थना होती नहीं फिर भी बार-बार प्रार्थना करते रहो। जैसे मोटर को स्टार्ट करते समय बार-बार चाबी घुमाते घुमाते कभी एक ही चाबी से मोटर स्टार्ट हो जाती है, ऐसे ही प्रार्थना करते -करते कभी हृदय से सच्ची प्रार्थना निकलेगी तो एक ही पुकार से काम हो जाएगा।
१- भगवत प्राप्ति का सबसे सरल उपाय है व्याकुलता। व्याकुलतापूर्वक पुकारो यह नाम जप आदि सब साधनो से तेज है। इसे पापी, पुण्यात्मा, मूर्ख ,विद्वान आदि सभी कर सकते हैं।
२- ज्ञान योग ,कर्म योग ,भक्ति योग आदि कोई उपाय समझ में ना आए ,तो कोई जरूरत नहीं बस सच्चे हृदय से पुकारो।
३- मंत्रों में ,अनुष्ठानों में, इतनी शक्ति नहीं है जितनी शक्ति प्रार्थना में है अतः हे नाथ हे -नाथ पुकारो।
४- पुकारने से सब बीमारी ,आफत, शंका मिट जाएगी। यह सब रोगों की रामबाण दवा है।
५- चलते-फिरते ,उठते-बैठते ,रात में ,दिन में ,काम करते हुए ,हर समय व्याकुलता पूर्वक सच्चे हृदय से पुकारो ,अनंत जन्मों के सब पाप भस्म हो जाएंगे।
६- अपनी निर्बलता का अनुभव और भगवान की कृपा शक्ति पर विजय।-यह दो बातें हो तो पुकारने से काम क्रोध आदि दोष अवश्य मिट जाएंगे।
७- अगर भगवान से प्रेम चाहते हो तो भगवान के चरणों की शरण हो जाओ ।जो काम वर्षों में नहीं हुआ वह एकाएक हो जाएगा पर आप लगे रहो।

मंगलवार, 26 जून 2018

भगवान का ध्यान संपूर्ण विपत्तियों का नाश करता है

                  हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं

स्वामी रामसुखदास जी कहते हैं सभी व्यक्ति सावधान होकर भगवान के ध्यान में लग जाए क्योंकि एक भगवान का ध्यान से ही संपूर्ण विपत्तियों का नाश होता है हर समय यह कहते रहे," हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं " यह अंधकार में लालटेन का काम करता है सहारा देने वाला है इसके सिवाय संसार में कोई सहारा नहीं है भगवान के स्मरण मात्र से मनुष्य संसार बंधन से  छूट जाता है- यस्य स्मरण मात्रेण जन्म संसार बंधनात् विमुच्यते।
भगवान को याद करने से सब काम ठीक हो जाते हैं इसलिए सच्चे हृदय से पुकारो हे नाथ ,हे नाथ! एक श्लोक होता है- शंभू श्वेतार्क पुष्पेंण चंद्रमा वस्त्र तंतुना।
अच्युत स्मृति मात्रेण साधव: कर सम्पुटै:
अथार्त शंभू श्वेत सफेद आक के फूल से, चंद्रमा वस्त्र के तंतु से और साधु जन हाथ जोड़ने से प्रसन्न हो जाते हैं, पर भगवान विष्णु स्मरण करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं, ध्यान के सिवाय किसी वस्तु की, किसी उद्योग की जरूरत नहीं। कुंती माता ने भगवान से कहा कि देखो तुम्हारे भाई वन में, दुख पा रहे हैं ,तुम्हें दया नहीं आती तो भगवान ने ही उत्तर दिया कि बुआ जी मैं क्या करूं द्रोपदी का चीर खींचा गया तो उसने मेरे को याद किया और युधिष्ठिर ने सब कुछ दाव पर लगा दिया और मेरे को याद ही नहीं किया ,कम से कम मेरे को याद तो कर लेते ।तात्पर्य यह है कि भगवान को याद करने मात्र से कल्याण हो जाता है सदा के लिए दुख मिट जाता है। महान आनंद की प्राप्ति हो जाती है ,इतना सस्ता सौदा और क्या होगा।
साधन तो इतना सुगम, पर फल इतना महान। इतना सुगम काम भी हम ना कर सकें तो क्या करेंगे ।इसलिए आपसे यह कहना है कि सुबह नींद खुलने से लेकर रात्रि नींद आने तक हरदम हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं है, कहना शुरू कर दो, फिर सब काम ठीक हो जाएंगे इसमें संदेह नहीं।
                                       परम श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी महाराज के प्रवचन मे से।

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

प्रभु के नाम लेने से लाभ


प्रभु के सभी नाम परम कल्याण कारक है। राम,कृष्ण ,हरि,नारायण ,दामोदर ,शिव, खुदा ,जीसस ,वाहे गुरु आदि नामों  की बड़ी महिमा है। भगवान को किसी भी नाम से पुकारो ,वे सबकी भाषा समझते है। पुकारने वाले मे श्रद्धा और विशवास होना चाहिए। पुकारने वाले को यह बात ध्यान होनी चाहिए कि मेै भगवान को पुकार रहा / रही हूँ। फिर नाम चाहे कोई भी हो । जल,पानी ,नीर,वाटर आदि कुछ भी पुकारने पर उसे जल ही मिलेगा ।इतना होने पर भी साधक को जिस नाम मे विशेष रुचि ,प्रेम, विशवास हो  ,उसके लिए वही लाभप्रद होता है। राम और कृष्ण मे कोई अन्तर नही है जैसे तुलसीदास जी को 'राम 'नाम प्रिय है और सुरदास जी को 'कृष्ण' नाम।
इसलिए भगवान के किसी भी नाम का जप ,किसी भी काल,किसी भी निमित्त से,किसी के भी द्वारा ,केैसे भी किया जाए वह परम कल्याण करने वाला है। 
यह शरीर बहुत ही दुर्लभ है और  नाशवान और सुखरहित है।
दुर्लभ इसलिए है क्योंकि  इस शरीर  से ही परम कल्याण हो सकता है। केवल मनुष्य योनि ही है जिसे  जप करने का लाभ मिलता है और वो कर भी सकता है। 
(परम श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका )


शनिवार, 5 अगस्त 2017

कलयुग में आसान है भगवत्त प्राप्ति


सतयुग मे ध्यान करने से,त्रेता युग मे यज्ञ करने से,द्वापर मे पुजा करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल कलियुग मे केवल श्री केशव के,राम,भोलेनाथ के  कीर्तन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है।
हरे  राम हरे राम ,राम राम हरे हरे
हरे  कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

सत्संग का प्रभाव

                                                                                                           सत्संग से क्या होता हैं
                            
                     जब हमारे मे भक्ति का छोटा पोधा पनपने लगता है तो बकरी रुपी काम,लोभ ,मोह,गुस्साआदि भक्ति रुप पोध को खाने के लिए तैयार रहता है। हमे इसको बचाने के लिए अपने चारो और सतसंग का आवरण कर देना चाहिए ,ताकि कोई  भी  इसे नष्‍ट न कर सके। यदि  एक बार यह बड़ा पेड़ बन गया ,फिर कितना आस पास का वातावरण खराब हो पर आपकी परिपक्व भक्ति को कोई हानि नहीं  हो सकती , सतसंग के आवरण का अर्थ है-  कथा , सतसंग ,मन  न  चिन्तन सब इश्वर के लिए हो। यह सतसंग आपको    जिन्दगी मे  कभी निराश नहीं  होने देगा।आपके अनदर  एक सकारात्मक सोच   उत्पन्न करेगा जिसके कारण आप जिन्दगी मे   ऊंचाई  पर आगे बढते जाएँगे,   वेैसे भी  कहते है कि जिसको इश्वर  का  सहारा होता है वो सबको सहारा देने वाला बन जाता है।
जय  श्री  राधे।

मंगलवार, 25 जुलाई 2017

मन शांत कैसे हो ?

कलयाण


कहते हैकि बवंडर-(चकर्वात) के ठीक बीच में एक ऐसा  स्थान भी रहता है,जँहा कोई हलचल नही। वँहा वायू का थोडा सा भी प्रकोप नही है,बल्कि इतनी शान्ति रहती है कि यदि किसी छोटे शिशु को वहाँ  सुला दिया जाए तो वह सुख की नींद सोता रहेगा ।ठीक इसी प्रकार इस संसार के कोलाहल के मध्य मे प्रभु विराजित हैं तथा जहाँ वे हैं वहाँ न तो जगत की हलचल है और न ही त्रिताप की विषमयी ज्वाला ,वँहा सर्वदा ,हर जगह सुख शान्ति बनी रहती हैं।
हम अपने जीवन पर विचार करके देखे तो पता चलेगा कि उसमे न जाने कितने उतार चढाव हुए हैं कितनी बार हम हँसें है ,कितनी बार रोये है । संसार के इस प्रवाह मे बहते जा रहे हैं,अब तक एसा कोई स्थान नही मिला जँहा हमे शान्ति मिली हो हम अपनी थकान मिटा सके।शान्ति के लिये जिसका भी सहारा लेने लगते है ,पता लगता है वो भी हमारी तरह हलचल मे है और विचलित हैं।इन्द्रिया हर जगह सुख की तलाश में भटकती रहती हैं पर सुख या तो मिलता नही हैं या फिर थोडे से समय के लिये ही मिलता हैं । मन अनुकुलता ढुढँने के लिये भटकता रहता हैं,अमुक परििस्थति मेरे अनुकूल बन जाये ,अमुक व्यक्ति एसा बन जाये ,आपके अनुसार कोई बदल नही सकता और आप कुंठित होकर मानसिक तनाव में जीना शुरू कर देते हैं।इस प्रकार हमारा जीवन इस संसार के बवंडर में भर्मण करता रहता हैं और सदा अशांत बना रहता हैं।किन्तु हम अगर इस बवडंर से खिसककर , बीच में स्थापित प्रभु से जुड जायें ,उनकी छत्रछाया में विश्राम करने की ठान लें तो निश्चय ही हमें उनका सान्निध्य प्राप्त हो जायेगा और हमें शान्ति ,सु ख की प्राप्ति हो जायेगी ।साधना में, सत्संग में लग जाये फिर चाहे वो जिह्वा से राम नाम लेकर हो, कानो से कथा,लीला सुन कर हो,अच्छे लोगों का संग करने से हो।आप प्रभु की शरण हो जायें,तब संसार की हलचल कितनी प्रबल क्यों न हो हम उससे कभी विचलित नही हो सकते ,क्योंकि हमें प्रभु का सहारा मिल जाता हैं और जिसके पास सहारा हैं वो कैसे घबरा सकता हैं,और सहारा भी परमपिता का।

।।जय श्री राधे।।

सोमवार, 17 जुलाई 2017

भक्त और भगवान की लीला

                 
                                                       वामन भगवान के चरित्र में यह बात पता लगती हैं कि प्रभु ने कृपा करके  सर्वस्व ले लिया।बलि राजा को तो कुछ क्षण के लिए बंधन में बांधा गया पर प्रभु तो राजा बलि के बंधन से सर्वथा बंध गए , द्वार पर हाजिर रहते हैं। उस चरित्र में शिक्षा यही हैं कि बलि की तरह प्रभु में विश्वास करके उनके द्वारा दिए गए कष्टों में भी कृपा का अनुभव करे। हमारा तन मन सर्वस्व प्रभु ले ले , बंधन में डाले , मारे या रक्षा करे वे ही हमारी गति हैं। प्रभु प्रेमी को अपना जो पथ और दृढ़ विचार हैं उसका त्याग नहीं करना चाहिए।

द्रोपदी का चीर दुःशासन खींच रहा था उस समय द्रोपदी को पूर्ण विश्वास था कि सभा में बैठे हुए उसके अपने उसकी रक्षा जरूर करेंगे उसने पुकार पुकार कर सबसे सहायता मांगी , गुरु द्रोण आपका शिष्य अन्याय कर रहा हैं , पितामह भीष्म आपकी पुत्र बहु को भरी सभा में निवस्त्र किया जा रहा हैं मेरी रक्षा करो , पर किसी ने नहीं सुना यहाँ तक कि उसके पति पांचो पांडव भी नोचे आँखे करके बैठे रहे।

उधर द्वारका में प्रभु रुकमणीजी के साथ चौसर खेल रहे थे पर बीच बीच में व्याकुल होकर खड़े हो जाते , तो रुकमणीजी ने पूछा क्या बात हैं हारने का डर लग रहा हैं ? बोले नहीं , द्रोपदी पर संकट हैं दुष्ट लोग उसे निवस्त्र कर रहे  हैं। अरे ! तो तुम उसे बचाते क्यों नहीं ?  प्रभु बोले वो मुझे पुकार ही नहीं रही हैं। यह सुनकर श्री जी ने अपने हांथ का नील कमल फेंका , तब द्रोपदी को प्रेरणा हुई , श्रीजी की कृपा से श्री कृष्ण को पुकारने की सुधि आई। तब उन्होंने पुकारा हे नाथ द्वारका वासी ! सुनते ही श्री कृष्ण ने वस्त्रा अवतार लिया। श्री कृष्ण शरणम ममः 

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