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मंगलवार, 15 सितंबर 2020

कुसंग, (बुरा संग)

                             कुसंग, यानि बुरा संग
बचपन का सत्संग जीवन भर के लिए लाभदायक होता है। इसी तरह बचपन का कुसंग भी जीवन को बिगाड़ देता है। दिनभर सत्संग में रहो, एक क्षण भी यदि कुसंग मिल गया तो सत्संग का प्रभाव नष्ट हो जाएगा। व्यक्ति के संग का, वेशभूषा का, खानपान का, कुसंग भी हानिकारक है।
          जे राखे  रघुवीर ते उबरे तेहि काल महूँ।।
 प्रभु ही सत्संग देने वाले हैं और कुसंग से बचाने वाले हैं। अतः हरिः शरणं हरिः शरणं । मैं भगवान की शरण में हूं, मैं भगवान की शरण में हूं। बार-बार कहना चाहिए, स्मरण रखना चाहिए।(दादा गुरु श्री गणेशदास भक्त माली जी के श्री मुख से)

सोमवार, 7 सितंबर 2020

कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं


कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं


जो लोग अपने मन को भगवान में लगाते हैं ,वाणी से नाम गुणों का कीर्तन करते हैं। शरीर से मंदिर में सेवा करते हैं वह भाग्यशाली हैं। इन्हीं कामों को प्रेम पूर्वक करते-करते भगवान के रूपों का ह्रदय में साक्षात्कार कर लेते हैं।संसार में प्राणी निरंतर सुखी नहीं रह सकता है। कभी सुख कभी दुख भाग्य के अनुसार मिलते हैं, इनसे घबराना नहीं चाहिए। सच्चाई के साथ व्यवहार करते हुए, किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए ।अपने साथ बुराई करने वाले को भी सज्जन शाप नहीं देते हैं ।ऐसे परोपकारी पर भगवान प्रसन्न रहते हैं। कष्ट के समय भक्तों की परीक्षा होती है। परीक्षा समझ कर बुद्धि को स्थिर करके कष्ट सहन करना चाहिए। इतिहास देखने से पता चलता है कि बड़े-बड़े भक्तों को अवतार काल में परमात्मा को कष्ट सहन करते देखा जाता है। कष्ट काल में भी अपने धर्म का त्याग ना करके जो उपकार करते हैं, वही धन्य हैं। जो करना चाहिए उसे कर्तव्य कहते हैं। वही धर्म भी है अतः शास्त्र एवं बड़ों की सम्मति से जो कर्तव्य है, उसे तत्परता पूर्वक करना चाहिए। अधिकारी शासक को मालिक बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। भक्त राजा अपने को राजा नहीं मानते थे। अंबरीश चक्रवर्ती सम्राट थे पर प्रभु की सारी सेवाएं अपने हाथ से ही करते थे। सज्जन तपस्वी स्वंय ही दास होते हैं। किसी को अपना दास नहीं बनाते हैं।अधिकारों को भूल ही जाया जाए तो अच्छा है।
श्री राधे।।
( दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से)
                                                                                           
English translation:----

Sometimes happiness and sometimes sorrow are met according to fate



 Those who fix their mind on God, chant the qualities of the name through speech.  Those who serve in the temple with their bodies are fortunate.  By doing these things with love, we get realization of the forms of God in the heart. A creature cannot remain happy continuously in the world.  Sometimes happiness and sometimes sorrow are found according to fate, one should not be afraid of them.  While dealing with truth, one should not think ill of anyone. Even a gentleman does not curse those who do evil to him. God is pleased on such a beneficiary.  Devotees are tested in times of trouble.  Considering the test, one should stabilize the intellect and bear the pain.  Seeing the history shows that great devotees are seen suffering the divine during the incarnation period.  Blessed are those who do favors by not sacrificing their religion even in times of trouble.  What should be done is called duty.  That is also the religion, so whatever duty is there with the consent of the scriptures and elders, it should be done promptly.  The official ruler should not aspire to be the master.  Devotee kings did not consider themselves kings.  Ambareesh Chakravarti was the emperor but used to do all the services of the Lord with his own hands.  Gentle ascetics are themselves slaves.  Do not make anyone your slave. It is better if the rights are forgotten.
 Shree Radhe..
 (From the mouth of Dada Guru Bhakt Mali Ji Maharaj)

रविवार, 23 अगस्त 2020

हम अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं अथवा अवनति यह हमें कैसे पता लगेगा

   हम अपने जीवन में उन्नति कर रहे हैं अथवा अवनति यह         हमें कैसे पता लगेगा


धार्मिक जीवन में आध्यात्मिक जीवन में हम उन्नति कर रहे हैं अथवा हम नीचे गिर रहे हैं, इस पर भी विचार करना चाहिए। जब भगवत चर्चा, सत्संग प्रिय लगे, भगवान की सेवा पूजा प्रिय लगे, दीन दुखी प्राणियों की सेवा प्रिय लगे, तो समझो कि हम उन्नति की ओर बढ़ रहे हैं। कुसंग में संसारी बातें अच्छी लगे दुष्टों के संग में आसक्ति हो जाए, दूसरों को धोखा देकर, छल कपट से संपत्ति बढ़ाने की इच्छा हो जाए, तो समझो कि हमारी अवनति हो रही है। प्रत्येक बुद्धिमान मनुष्य अवनति से बचकर उन्नति चाहता है। हमारा मन हमारी बुद्धि भगवत सेवा में लग रही है या नहीं, यदि लग रही है तो इसे भगवान की कृपा या प्रेरणा ही समझो। कभी कभी मन की आंखों से प्रभु को सामने खड़ा देखो, कभी बैठे हैं, कभी कुछ कह रहे हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे भगवत का सानिध्य प्राप्त करें। मन में कोई संकट हो व्याकुलता हो तो प्रभु के सामने निवेदन करके निश्चिंत हो जाना चाहिए। जो कुछ भी हो उसे प्रभु की इच्छा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए। गुरुदेव की कृपा से शरणागति प्राप्त हुई है। उसका तात्पर्य यह है कि प्रभु हमारे हैं मैं उनका हूं। जिस तरह बच्चे का माता पर, मित्र पर मित्र का, सती साध्वी पत्नी का अपने पति पर प्रेम होता है। अधिकार होता है। उसी प्रकार प्रभु पर प्रेम और अधिकार भक्तों का होता है। ।।जय श्री राधे, जय श्री कृष्णा।।
 (दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से)

मन आपका मित्र भी है और शत्रु भी

                 मन आपका मित्र भी है और शत्रु भी

गीता में प्रभु का कथन है कि अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए अर्थात भवसागर से पार होना चाहिए। यत्न पूर्वक साधन करने से प्रभु कृपा अवश्य करेंगे। मन अपना मित्र है और शत्रु भी है। अपने वश में हुआ मन अपना मित्र है, उसे भजन साधन बनेगा, मित्रता का काम करेगा। विषयी मन, अवश मन,अवश इंद्रियां शत्रु है। यह सब नर्क में गिरा देंगें।अतः मन की ओर से सावधान रहें। हठ करके भजन में लगावे। मन भजन में ना लगे तो भी बिना मन लगे, भजन करने से मन लगने लग जाएगा। सबका मन भगवान में लगे, सब पर प्रभु की कृपा बनी रहे।
 जय श्री राधे
 (परमार्थ के पत्र पुष्प दादा गुरु भक्त माली जी के श्री मुख से)

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

कलयुग बुरा युग नहीं है अगर

कलयुग बुरा युग नहीं है अगर

कलयुग है ऐसा मानकर असत्य, मिथ्या, हिंसा, कपट नहीं करना चाहिए। कलयुग राजा है उसके अधर्म से बचकर उसमें जो गुण हैं उनकी बढ़ाई करनी चाहिए। उसका लाभ उठाना चाहिए। नास्तिक दुष्टों के लिए कलयुग बुरा युग है। आस्तिक भक्तों के, भगवान नाम जपने वालों के लिए यह युग अच्छा है। इसके समान कोई दूसरा युग नहीं है यह बात श्री भागवत, रामायण आदि में बार-बार कही गई है। ज्ञान वैराग्य के साथ प्रभु की भक्ति करनी चाहिए। ज्ञान वैराग्य केवल विरक्त साधु के लिए नहीं है गृहस्थाश्रम में उसकी बड़ी आवश्यकता है।बिना ज्ञान वैराग्य के गृहस्थाश्रम अति दुखदाई है। परिवार के जितने सदस्य हैं वह अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से मिले हैं। अतः उनका प्रेम से पालन करना चाहिए। हमको अच्छा, हमारे मन के अनुकूल यदि कोई पुत्र,स्त्री, भाई आदि नहीं मिले तो उनके दोष नहीं है, वे बुरे नहीं है, हमारी तपस्या पूर्व जन्म का पुण्य ही कम है। ऐसा मानकर संतुष्ट रहना चाहिए ।आग के बिना, बिजली के बिना हमारा काम नहीं चलता है पर यदि हम चुक जाए तो वह हमारे प्राण ले लेंगे।इसी तरह आग बिजली से बचकर हम अपना काम करते हैं। उसी तरह से पड़ोसी या परिवार के सदस्य से सावधान रहकर काम लेना चाहिए।
 जय श्री राधे
 जय श्री कृष्ण
 दादा गुरु भक्त माली जी महाराज के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प से

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


                  हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


हमारा सौभाग्य है कि प्रभु की इस पुष्प वाटिका में हमने जन्म
लिया। उन को प्रसन्न करने के लिए हम एक पुष्प की तरह खिले और उन्हें अर्पण हो जाएं। इष्ट देव को प्रसन्न करना ही प्राणी का कर्तव्य है। जिस प्रकार से आपका मन प्रसन्न रहें, वैसे ही कीजिए। स्वंय प्रभु सत्य दया क्षमा के समुंद्र है तो हमको भी प्राणियों के साथ सत्य व्यवहार करना चाहिए। सब के साथ दयामय  व्यवहार ही कर्तव्य है ।किसी के अपराध पर हम उसे क्षमा कर दें तो प्रभु प्रसन्न होंगे।क्षमा करने में भगवान पृथ्वी से भी अधिक हैं पृथ्वी माता के ऊपर हम अनेक अपराध करते हैं, पर वह सब सहन करती हैं। हमको भी दूसरों के अपराध पर रुष्ट ना होकर क्षमा ही करना चाहिए। यह प्रभु को प्रसन्न करने का साधन है। बदला लेने की इच्छा से फिर जन्म लेना पड़ता है।भजन करने के लिए जन्म लेना अच्छा है, बदला चुकाने के लिए जन्म लेना अच्छा नहीं है। किसी का ऋण रह गया तो उसे चुकाने के लिए पशु बनना पड़ेगा। कष्ट होगा ,सत्संग, भजन सेवा के लिए बार-बार जन्म लेना अच्छा है।
जय श्री राधे जय श्री राधे
 भक्तमाल दादा गुरु के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से

सोमवार, 17 अगस्त 2020

अनजाने में किया गया भगवतश्रवण भी कैसा फल देता है।

       अनजाने में किया गया भगवत का नाम भी कैसा फल देता है।


दुष्ट मन से स्मरण किया गया भी भगवान का नाम, पापों का नाश करता है। जैसे अनजान में स्पर्श की गई अग्नि भी जला देती है ।अतः 'हरी' वह नाम है जो सभी के पाप तापों को हरते हैं। अपने श्रवण कीर्तन द्वारा भक्तों के मन को हरते हैं। अतः हरि यह नाम है जो किसी के मन को भी हरता है। अतः उसका नाम हरा है उसके संबोधन में हरे ऐसा रूप होता है। इसलिए 'हरे राम हरे राम' मंत्र प्रयुक्त हरे का अर्थ है हे राधे। 'कृष्' आकर्षण करने वाला 'ण' आनंद दायक है। सब को आकृष्ट करने वाले आनंद देने वाले का नाम कृष्ण है।
 'रा' का उच्चारण करने से पाप बाहर निकल जाते हैं फिर 'म' का उच्चारण करने पर कपाट बंद हो जाते हैं फिर मुख के बंद होने पर पाप प्रवेश नहीं कर पाते हैं। अतः हरे राम यह महामंत्र विधि अविधि जैसे भी जपा जाय कलयुग में विशेष फल प्रदान
करती है।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
(परमार्थ के पत्र पुष्प में दादागुरु श्री भक्तमाल जी महाराज के श्री मुख से)

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