> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव

यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत का अर्थ

                     श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत(हिंदी में)



 भावार्थ= ब्रजमंडल के भूषण तथा समस्त पापों के नाश करने वाले सच्चे भक्त के चित्त में विहार कर आनंद देने वाले नंदनंदन का मै  सर्वदा भजन करता हूं। जिनके मस्तक पर मनोहर मोर पंखों के गुच्छे हैं। जिनके हाथों में सुरीली मुरली है तथा जो प्रेम तरंगों के समुंद्र हैं उन् नटनागर श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

कामदेव का गर्व नाश करने वाले बड़े-बड़े चंचल लोचनों वाले, ग्वाल बालों का शौक नष्ट करने वाले, कमल लोचन को मेरा नमस्कार है। कर कमल पर गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले, मुस्कान युक्त सुंदर चितवन वाले, इंद्र का मान मर्दन करने वाले, गजराज के सदृश मत्त श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

कदम्ब पुष्पों के कुंडल धारण करने वाले, अत्यंत सुंदर गोल कपोलों वाले, ब्रिजांगनाओं के लिए ऐसे परम दुर्लभ श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। ग्वाल बाल और श्री नंद राय जी के सहित मोदमयी यशोदा जी को आनंद देने वाले श्री गोप नायक को मेरा नमस्कार है।

मेरे हृदय में सदा अपने चरण कमलों को स्थापन करने वाले, सुंदर घूंघराली अलकों वाले नंदलाल को मैं नमस्कार करता हूं ।समस्त दोषों को भस्म कर देने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले, समस्त गोपकुमारों के हृदय तथा श्री नंद राय जी की वात्सल्य लालसा के आधार श्री कृष्ण को मेरा नमस्कार है।

भूमि का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले, कर्णधार श्री यशोदा किशोर चित्तचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण, सर्वदा दिव्य सखियों से सेवित, नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नंदलाल को मेरा नमस्कार है।

गुणों की खान और आनंद के निधान, कृपा करने वाले तथा कृपा पर अर्थात कृपा करने के लिए तत्पर, देवताओं के शत्रु दैत्यों का नाश करने वाले गोप नंदन को मेरा नमस्कार है। नवीन गोप सखा नटवर, नवीन खेल खेलने के लिए लालायित,घनश्याम अंग वाले, बिजली सदृश सुंदर पितांबर धारी श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

समस्त गोपों को आनंदित करने वाले, हृदय कमल को प्रफुल्लित करने वाले, निकुंज के बीच में विराजमान, प्रसन्न मन सूर्य के समान प्रकाशमान श्री कृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। संपूर्ण अभिलाषित कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चितवन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंज नायक को मैं नमस्कार करता हूं।

चतुर गोपीकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन करने वाले, कुंज वन में बड़ी हुई बिरहा अग्नि को पान करने वाले तथा श्री वृषभानु किशोरी की अंग कांति से जिनके अंग झलक रहे हैं। जिनके नेत्रों में अंजन शोभा दे रहा है। गजराज को मोक्ष देने वाले तथा श्री जी के साथ विहार करने वाले, श्री कृष्ण चंद्र भगवान को मेरा नमस्कार है।

जहां कहीं भी जैसी परिस्थिति में मैं रहूं, सदा श्री कृष्ण चंद्र की सरस कथाओं का मेरे द्वारा सर्वदा गान होता रहे। बस ऐसी कृपा रहे। श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्त्रोत तथा श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत इन दोनों सिद्ध स्त्रोतों को जो प्रातकाल उठकर, भक्ति भाव में स्थित होकर नित्य पाठ करते हैं। उनको ही साक्षात श्री कृष्ण चंद्र मिलते हैं।

।। जय श्री राधे।।

भगवान की भक्ति और श्रद्धा पाने के लिए क्या करना चाहिए?

              भगवान की भक्ति के लिए क्या करना चाहिए?

केवल इच्छा करने मात्र से संसार का कोई काम नहीं बनेगा ,उसके लिए तन मन धन से मेहनत करनी पड़ेगी। परंतु श्री हरि की भक्ति, उत्कट इच्छा मात्र से प्राप्त हो जाएगी। प्रभु हमें हर जीव को सदा देखा करते हैं। मन की कामना को पूर्ण करने के लिए वाणी और शरीर से कर्म बनने लग जाएंगे। मन की कामनाओं को पूर्ण करने के लिए प्राणी परिश्रम करता है। मानसिक परिश्रम श्रेष्ठ है। उसी से प्रभु प्रसन्न होते हैं शारीरिक परिश्रम से संसारी संतुष्ट होते हैं। संसार प्रभु का स्वरूप है। ऐसा मानना भक्ति ही है। जो कुछ जीवो के भले के लिए किया जाएगा उससे भगवान संतुष्ट होंगे। भगवान के संतुष्ट होने पर सभी देवी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए सब कुछ करना चाहिए। शास्त्र का रहस्य यही हैं। भक्ति के साथ-साथ निष्ठा और श्रद्धा का होना भी बहुत जरूरी है। अगर हमारे अंदर भक्ति है लेकिन श्रद्धा नहीं है तो वह पूर्ण नहीं मानी जाएगी। यह ऐसे ही होगा जैसे कि हम ईश्वर की भक्ति में तो आनंद का अनुभव करते हैं लेकिन मंत्र जाप, दान पुण्य,आरती में श्रद्धा नहीं रखते हैं। ईश्वर को तो हम मानते हैं लेकिन श्रद्धा में कमी है। जब हमारी श्रद्धा में कमी होगी तो फिर धीरे-धीरे हमारी भक्ति लुप्त हो जाएगी, खत्म हो जाएगी। श्रद्धा का अभाव होगा इसलिए भक्ति के साथ श्रद्धा का भी परिपक्व होना बहुत जरूरी है।

मंगलवार, 2 मार्च 2021

श्रीराम और शिव में कभी मतभेद न कीजिए।

                     श्रीराम और शिव में कभी मतभेद न कीजिए।


'भगवान शिव' राम के इष्ट एवं 'राम' शिव के इष्ट हैं। ऐसा संयोग इतिहास में नहीं मिलता कि उपास्य और उपासक में परस्पर इष्ट भाव हो , इसी स्थिति को संतजन 'परस्पर देवोभव' का नाम देते हैं। 

 शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' एवं 'श्रीराम जय राम जय जय राम' मंत्र का उच्चारण कर शिव को जल चढ़ाने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। 

भगवान राम ने स्वयं कहा है–

 शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा।'

 अर्थात्‌* :- जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्वपूर्ण होता है। 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल के बीच जब जाबालि ऋषि की तपोभूमि मिलने आए तब भगवान गुप्त प्रवास पर नर्मदा तट पर आए। उस समय यह पर्वतों से घिरा था। रास्ते में भगवान शंकर भी उनसे मिलने आतुर थे, लेकिन भगवान और भक्त के बीच वे नहीं आ रहे थे। भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें इसीलिए शंकरजी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया। इसलिए कंकर-कंकर में शंकर बोला जाता है। ज

जबप्रभु श्रीराम रेवा तट पर पहुंचे तो गुफा से नर्मदा जल बह रहा था। श्रीराम यहीं रुके और बालू एकत्र कर एक माह तक उस बालू का नर्मदा जल से अभिषेक करने लगे। आखिरी दिन शंकरजी वहां स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम-शंकर का मिलन हुआ। 

शिवप्रिय मैकल सैल सुता सी, सकल सिद्धि सुख संपति राशि..., रामचरित मानस की ये पंक्तियां श्रीराम और शिव के चरण पड़ने की साक्षी है।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

त्रिपुरारिसिरधामिनी (गंगा जी का यह नाम कैसे पडा़

                            त्रिपुरारिसिरधामिनी( शिव के मस्तक में निवास करने वाली)


जब महाराज भगीरथ ने ब्रह्मलोक से गंगा जी को प्राप्त कर लिया,तब यह कठिनाई सामने आई कि यदि गंगा जी की धारा वहां से सीधे भूलोक पर गिरेगी तो उससे भूलोक जलमग्न हो जाएगा। इसलिए उन्होंने भव भय हारी भगवान शंकर की स्तुति की और शंकर जी ने ब्रह्मलोक से अवतरित होती हुई गंगा की धारा को, अपनी जटा जाल में रोक लिया। इसी से श्री गंगा जी को त्रिपुरारी (शिव )के मस्तक में निवास करने वाली कहा जाता है।

जह्नु बालिका(गंगा जी)

                               जह्नु बालिका(गंगा जी)


जब महाराज भगीरथ गंगा जी को अपने रथ के पीछे पीछे भुलोक में ला रहे थे, उस समय गंगा का प्रवाह जह्नु मुनि के आश्रम से होकर निकला, मुनि ध्यानावस्थितथे, प्रवाह को आते देख उन्होंने उसे उठाकर पी लिया। पीछे महाराज भगीरथ ने उनकी स्तुति कर उनको प्रसन्न किया। तब मुनि ने जगत के हितार्थ गंगा जी को अपने जंघे से निकाल दिया। तभी से गंगा जी का नाम जह्नु सुता या जाह्नवी पड़ा।

कालकूट विष

                                 कालकूट विष




देवता और असुरों ने एक बार मेरु पर्वत की मथानी और शेषनाग का दण्ड बनाकर समुद्र का मंथन किया।उसमें सबसे पहले हलाहल विष निकला और उसने दसों दिशाओं को अपनी ज्वाला से व्याप्त कर दिया। फिर तो देवता और असुर सभी त्राहि-त्राहि करने लगे, सबों ने मिलकर विचारा कि बिना भक्तवत्सल भगवान शंकर के इस महाघातक वि‌ष से त्राण पाना कठिन है।इसलिए उन्होंने एक साथ आर्त स्वर से भगवान शंकर को पुकारा। भक्त आर्ति हर करुणामय भगवान शंकर जी प्रकट हुए और उनको भयभीत देखकर हलाहल विष को उठाकर पान कर गए। परंतु शीघ्र ही उन्हें स्मरण हुआ कि हृदय में तो ईश्वर अपनी अखिल सृष्टि के साथ विराजमान है। इसलिए उन्होंने इस विष को कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया गया और उस विघ्न के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और दोषपूर्ण वह विष भगवान का भूषण बन गया। तभी से शिव 'नीलकंठ' कहलाने लगे।

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

काशी स्तुति(विनय पत्रिका)

                                 काशी स्तुति

इस कलयुग में काशी रूपी कामधेनु का प्रेम सहित जीवन भर सेवन करना चाहिए। यह शोक, संताप, पाप और रोग का नाश करने वाली तथा सब प्रकार के कल्याण की खानी है। काशी के चारों ओर की सीमा इस कामधेनु के सुंदर चरण है। स्वर्गवासी देवता इसके चरणों की सेवा करते हैं। यहां के शक्ति स्थान इसके शुभ अंग है और राष्ट्रहित अगणित शिवलिंग इसके रूप है अंतर्गत काशी का मध्य भाग इस कामधेनु का ऐन यानी के गद्दी है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों के चार थन है। वेद शास्त्रों पर विश्वास रखने वाले आस्तिक लोग इस के बछड़े हैं। विश्वासी पुरुषों को ही इस में निवास करने से मुक्ति रूपी अमृत में दूध मिलता है। सुंदर वरुणा नदी इसकी गल कंबल के समान शोभा बढ़ा रही है और असी नामक नदी पूछ के रूप में शोभित हो रही है। दंड धारी भैरव इसके सींग है, पाप में मन रखने वाले दुष्टों को उन सींगो से यह सदा डराती रहती है। लोलार्क कुंड और त्रिलोचन( एक तीर्थ) इसके नेत्र हैं और कर्ण घंटा नामक तीर्थ इसके गले का घंटा है। मणिकर्णिका  इसका चंद्रमा के समान सुंदर मुख है। गंगा जी से मिलने वाला पाप ताप नाश रूपी सुख इसकी शोभा है। भोग और मोक्ष रूपी सुखों से परिपूर्ण पंचकोशी की परिक्रमा इसकी महिमा है। दयालु ह्रदय विश्वनाथ जी इस कामधेनु का पालन पोषण करते हैं और पार्वती सरीखी स्मनेहमयी जगजननी इस पर सदा प्यार करती रहती हैं। आठों सिद्धियां सरस्वती और इंद्राणी शची उसका पूजन करती हैं ।जगत का पालन करने वाली लक्ष्मी सरीखी इसका रुख देखती रहती हैं। 'नमः शिवाय' यह पंचाक्षरी मंत्र ही इसके पांच प्राण है ।भगवान बिंदुमाधव ही आनंद है। पंच नदी पंचगंगा तीर्थ ही इसके पंचगव्य है। यह संसार को प्रकट करने वाले राम नाम के दो अक्षर र कार और मकार इस के अधिष्ठाता ब्रह्मा और जीव हैं। यहां मरने वाले जीवो का सब सुकर्म और कुकर्म रुपी  घास यह चार जाती है। जिससे उनको वही परम पद रूपी पवित्र दूध मिलता है, जिसको संसार के विरक्त महात्मा गण चाहा करते हैं। पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु ने संपूर्ण कला लगाकर अपने हाथों से इसकी रचना की है। हे तुलसीदास! यदि तू सुखी होना चाहता है तो काशी में रहकर श्री राम नाम का जप कर।।

Featured Post

रक्षा बंधन 2025 : भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व

रक्षा बंधन : भाई-बहन के प्रेम का पर्व और इसका आध्यात्मिक महत्व       रक्षा बंधन 2025: भाई-बहन का प्रेम व धार्मिक महत्व भाई-बहन के रिश्ते क...