/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: जब रामजी वनवास जाने लगे तो लक्ष्मण जी की क्या स्थिति थी?

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रविवार, 28 जनवरी 2024

जब रामजी वनवास जाने लगे तो लक्ष्मण जी की क्या स्थिति थी?

 जब रामजी  वनवास जाने लगे तो लक्ष्मण जी की क्या स्थिति थी?

राम-लक्ष्मण संवाद 

समाचार जब लछिमन पाए। ब्याकुल बिलख बदन उठि धाए॥जब लक्ष्मणजी ने समाचार पाए, तब वे व्याकुल होकर उदास मुँह उठ दौड़े।

भगवान के चरणों में गिर गए हैं। और सोच रहे हैं मुझको श्री रघुनाथजी क्या कहेंगे? घर पर रखेंगे या साथ ले चलेंगे? और लक्ष्मण हाथ जोड़ कर कहते हैं की भगवान मेरे लिए क्या आज्ञा है?

भगवान श्री राम ने देखा की लक्ष्मण हाथ जोड़े खड़े हुए है और समझ गए हैं की ये भी साथ चलना चाहते हैं। श्री रामचन्द्रजी वचन बोले- तुम प्रेमवश अधीर मत होओ। मेरी सीख सुनो और माता-पिता के चरणों की सेवा करो। भरत और शत्रुघ्न घर पर नहीं हैं, और तुम यहाँ पर राज काज सम्भालो। यदि मैं तुमको साथ लेकर जाऊंगा तो अयोध्या अनाथ हों जाएगी। गुरु, पिता, माता, प्रजा और परिवार सभी पर दुःख का दुःसह भार आ पड़ेगा॥

प्रेमवश लक्ष्मणजी से कुछ उत्तर देते नहीं बनता। उन्होंने व्याकुल होकर श्री रामजी के चरण पकड़ लिए और कहा- हे नाथ! मैं दास हूँ और आप स्वामी हैं, अतः आप मुझे छोड़ ही दें तो मेरा क्या वश है?

आपने मुझे सीख तो बड़ी अच्छी दी है, पर मैं तो एक प्रेम से पला हुआ एक छोटा बच्चा हूँ। मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला।

 हे नाथ! हे नाथ! स्वभाव से ही कहता हूँ, आप विश्वास करें, मैं आपको छोड़कर गुरु, पिता, माता किसी को भी नहीं जानता॥

 गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू॥

आप ये भी अच्छी तरह जानते हैं की मैं आपके बिना नही रह पाउँगा और मैं ये भी जनता हूँ की आप भी मेरे बिना नही रह पाएंगे।

अब रामजी ने लक्ष्मण को ह्रदय से लगा लिया और कहा – हे भाई! जाकर माता से विदा माँग आओ और जल्दी वन को चलो!

लक्ष्मण और माता सुमित्रा संवाद

अब लक्ष्मण जी बड़े प्रसन्न हुए हैं। और माँ सुमित्रा जी के पास गए हैं। मन में संकोच है की कहीं मेरी माँ मुझे रोक ना लें। क्योंकि मैं रुकने वाला तो हूँ नही और आदेश की अवज्ञा हों जाएगी।

लेकिन धन्य है ऐसी माँ। माँ सुमित्रा जी कहती हैं- बेटा! तू मुझसे आदेश मांगने ही क्यों आया। क्योंकि मैं और दशरथ जी तो केवल कहलाने के लिए तेरे माता-पिता हैं।

क्योंकि आज के बाद तुम्हारे माता-पिता सीता-राम हैं। तात तुम्हारि मातु बैदेही। पिता रामु सब भाँति सनेही॥

अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू॥ जहाँ श्री रामजी का निवास हो वहीं अयोध्या है। जहाँ सूर्य का प्रकाश हो वहीं दिन है। और माँ आज लक्ष्मण को सुंदर शिक्षा दे रही है।

पूजनीय प्रिय परम जहाँ तें। सब मानिअहिं राम के नातें॥  जगत में जहाँ तक पूजनीय और परम प्रिय लोग हैं, वे सब रामजी के नाते से ही (पूजनीय और परम प्रिय) मानने योग्य हैं।

पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई॥ नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी॥

अर्थ: संसार में वही युवती स्त्री पुत्रवती है, जिसका पुत्र श्री रघुनाथजी का भक्त हो। नहीं तो जो राम से विमुख पुत्र से अपना हित जानती है, वह तो बाँझ ही अच्छी। पशु की भाँति उसका ब्याना (पुत्र प्रसव करना) व्यर्थ ही है॥

सुमित्रा जी ने एक बात और स्पष्ट कर दी है। तुम ये मत सोचना ना की केकई के कारण राम वन जा रहे हैं। बेटा! मुझे तो लगता है तुम्हारे भाग्य के कारण राम वन जा रहे हैं। तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं।

ताकि तुम्हे भगवान की सेवा करने का अवसर मिल सके। और माँ कहती है की बेटा! तुम सब राग, रोष, ईर्षा, मद और मोह- इनके वश स्वप्न में भी मत होना। सब प्रकार के विकारों का त्याग कर मन, वचन और कर्म से श्री सीतारामजी की सेवा करना॥

लक्ष्मण जी कहते हैं की माँ! जागते हुए तो ठीक है लेकिन स्वप्न का क्या भरोसा? तब लक्ष्मण कहते हैं माँ यदि तुम्हारी यही आज्ञा है तो सुनो, मैं ये प्राण लेता हूँ की अब 14 वर्षों तक अखंड राम की सेवा करूँगा। और सोऊंगा भी नही।

माँ कहती हैं- मेरा यही उपदेश है तुम वही करना जिससे वन में तुम्हारे कारण श्री रामजी और सीताजी सुख पावें और पिता, माता, प्रिय परिवार तथा नगर के सुखों की याद भूल जाएँ। तुलसीदासजी कहते हैं कि सुमित्राजी ने इस प्रकार हमारे प्रभु श्री लक्ष्मणजी को शिक्षा देकर वन जाने की आज्ञा दी और फिर यह आशीर्वाद दिया कि श्री सीताजी और श्री रघुवीरजी के चरणों में तुम्हारा निर्मल निष्काम और अनन्य एवं प्रगाढ़ प्रेम नित-नित नया हो!

अब लक्ष्मण जी ने माता के चरणों में सिर नवाकर ऐसे दौड़े हैं जैसे कोई हिरन कठिन फंदे को तुड़ाकर भाग निकला हो। लक्ष्मण को अब भी ये डर है की अब वन जाने में कोई विघ्न नही आना चाहिए। अब लक्ष्मण जी सीता-राम के चरणों में आये हैं और चल दिए हैं।

नगर के स्त्री-पुरुष आपस में कह रहे हैं कि विधाता ने खूब बनाकर बात बिगाड़ी!  वे ऐसे व्याकुल हैं, जैसे शहद छीन लिए जाने पर शहद की मक्खियाँ व्याकुल हों। सब हाथ मल रहे हैं और ऐसे हों गए हैं जैसे बिना पंखों के पक्षी हो।

।।जय सिया राम।।

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जय श्री राधे

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