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सोमवार, 8 जनवरी 2024

श्रीमद भागवत गीता सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

                        श्रीमद् भागवत  गीता सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 1 से 4 तक


1प्रश्न – गौरव सेना के तो शंख ,भेरी, ढोल आदि कई बाजे बजे ,पर पांडव सेना के केवल शंख ही बजे, ऐसा क्यों?

उत्तर- युद्ध में विपक्ष की सेना पर विशेष व्यक्तियों का ही असर पड़ता है, सामान्य व्यक्तियों का नहीं। कौरव सेना के मुख्य व्यक्ति भीष्म जी के शंख बजाने के बाद संपूर्ण सैनिकों ने अपने-अपने कई प्रकार के बाजे बजाए, जिसका पांडव सेना पर कोई असर नहीं पड़ा। परंतु पांडव सेना के मुख्य व्यक्तियों ने अपने-अपने शंख बजाए जिनकी तुमुल ध्वनि ने कौरवों के हृदय को विदीर्ण कर दिया।

2 प्रश्न – भगवान तो जानते ही थे कि भीष्मजी ने दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए ही शंख बजाया है, यह युद्ध आरंभ की घोषणा नहीं है। फिर भी भगवान ने शंख क्यों बजाया?

उत्तर –भीष्म जी का शंख बजते ही कौरव सेवा के सब बाजे एक साथ बजे उठे। अतः ऐसे समय पर अगर पांडव सेना के बाजे ना बजते तो बुरा लगता, पांडव सेना की हार सूचित होती और व्यवहार भी उचित नहीं लगता। अतः भक्तपक्षपाती भगवान ने पांडव सेना के सेनापति धृष्टधुम्न की परवाह न करके सबसे पहले शंख बजाया।

3 प्रश्न– अर्जुन ने पहले अध्याय में धर्म की बहुत सी बातें कही है, जब वह धर्म  की इतनी बातें जानते थे, तो फिर उनका मोह क्यों हुआ?

उत्तर –कुटुंब की ममता विवेक को दबा देती है, उसकी मुख्यता  को नहीं रहने देती और मनुष्य को मोह ममता में तल्लीन कर देती है। अर्जुन को भी कुटुंब की ममता के कारण मोह हो गया।

4 प्रश्न –जब अर्जुन पाप के होने में लोभ को कारण मानते थे, तो फिर उन्होंने ‘मनुष्य ना चाहता हूं भी पाप क्यों करता है’ यह प्रश्न क्यों किया?

उत्तर –कोतुम्बिक मोह के कारण अर्जुन पहला अध्याय में युद्ध से निवृत होने को धर्म और युद्ध में प्रवृत होने को धर्म मानते थे अर्थात शरीर आदि को लेकर उनकी दृष्टि केवल भौतिक थी, अत: वह युद्ध में स्वजनों को मारने में लोभ को हेतु मानते थे। परंतु आगे गीता का उपदेश सुनते-सुनते उनमें अपने कल्याण की इच्छा जागृत हो गई अतः वह पूछते हैं कि मनुष्य ना चाहते हुए भी ना करने योग्य काम में प्रवृत क्यों होता है? तात्पर्य यह है कि पहला अध्याय में तो अर्जुन मोहाविष्ट होकर कह रहे हैं और तीसरे अध्याय में वे साधक की दृष्टि से पूछ रहे हैं।

यह प्रश्न उत्तर गीता दर्पण (स्वामी रामसुखदास जी के वचन) पुस्तक से लिए गए हैं।

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जय श्री राधे

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