/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: श्री राम स्तुति का सरल अर्थ।।

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शनिवार, 6 जनवरी 2024

श्री राम स्तुति का सरल अर्थ।।

                       ।।श्री राम स्तुति का सरल अर्थ।।



"श्री रामचंद्र कृपालु भजुमन" का स्वरूप इस प्रकार है:


1. श्री रामचंद्र: स्तुति का आरंभ हो रहा है भगवान राम की महिमा के साथ।

2. हरण भवभय दारुणं: भगवान राम भक्तों के लिए संसारिक भयों को दूर करने वाले हैं।

3. नव कंज लोचन... कंजारुणं:यह श्लोक भगवान के सुंदर रूप, आँखें, मुख, हाथ, और पैर की प्रशंसा करता है।

हे मन, कृपानिधान प्रभु श्रीरामचंद्र को नित्य भज जो भवसागर के जन्म-मृत्यु रूपी कष्टप्रद भय को हरने वाले हैं। उनके नयन नए खिले कमल की तरह हैं। मुँह-हाथ और पैर भी लाल रंग के कमल की तरह हैं ॥१॥


4. कन्दर्प अगणित अमित छवि... नोमि जनक सुतावरं इसमें हरिवंश (कृष्ण) के अनगिनत रूपों की प्रशंसा है और राम को  कहकर स्तुति की जा रही है।

उनकी सुंदरता की अद्भुत छ्टा अनेकों कामदेवों से अधिक है। उनके तन का रंग नए नीले-जलपूर्ण बादल की तरह सुन्दर है। पीताम्बर से आवृत्त मेघ के समान तन विद्युत के समान प्रकाशमान है। ऐसे पवित्र रूप वाले जानकीपति प्रभु राम को मैं नमन करता हूं। ॥२॥


5. भजु दीनबन्धु... चन्द दशरथ नन्दनं: इसमें भक्त को भगवान की पूजा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जो दीनबंधु हैं और दैत्यों के वंश को नष्ट करने वाले हैं।हे मन, दीनबंधु, सूर्य देव की तरह तेजस्वी, दैत्य-दानव के वंश का विनाश करने वाले, आनंद के मूल, कोशल-देश रूपी व्योम में निर्दोष चन्द्रमा की तरह दशरथ के पुत्र भगवान राम का स्मरण कर ॥३॥


6. शिर मुकुट कुंडल तिलक... संग्राम जित खरदूषणं:श्री राम के शिर पर रत्नों से मंडित मुकुट है, कानों में कुंडल विद्यमान हैं, माथे पर तिलक है और अंग-प्रत्यंग में मनोहर आभूषण शोभायमान हैं। उनकी भुजाएँ घुटनों तक दीर्घ हैं। वे धनुष व बाण धारण किए हुए हैं और संग्राम में खर-दूषण को पराजित कर दिया है।भगवान के रूप, भूषण, और धनुष धारण का वर्णन है, जो खरदूषण जैसे राक्षसों को जीतने के लिए संग्राम करते हैं।


7. इति वदति तुलसीदास... कामादि खलदल गंजनं:जो श्रीराम भगवान शंकर, शेष और ऋषि-मुनियों के मन को आनंदित करने वाले तथा कामना, क्रोध, लालच आदि खलों को विनष्ट करने वाले हैं, गोस्वामी तुलसीदास वंदन करते हैं कि वे रघुनाथ जी हृदय-कमल में हमेशा निवास करें ।

यह श्लोक संत तुलसीदास द्वारा बोला जा रहा है, जो अपने मन की निवास स्थान के रूप में भगवान से भक्ति की गुजारिश करते हैं और कामादि खलदल से मुक्ति की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।


8. मन जाहि राच्यो... स्नेह जानत रावरो:जिसमें मन रचा-बसा हो, वही सहज सुन्दर साँवला भगवान राम रूपी वर तुमको मिले। वह जो करुणा-निधान व सब जानने वाला है, तुम्हारे शील को एवं तुम्हारे प्रेम को भी जानता है।

इस श्लोक में साधक को भगवान के साथ संबंध में सरलता और भक्ति की भावना है।


9. एहि भांति गौरी असीस सुन सिय... मुदित मन मन्दिर चली:इस तरह माता पार्वती का आशीर्वचन सुन भगवती सीता जी समेत उनकी सभी सहेलियाँ अन्तःकरण में अह्लादित हुईं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, आदि शक्ति भवानी का पुनः-पुनः पूजन कर माता सीता पुलकित हृदय से राजमहल को लौट गयीं।

 स्तुति अपने अंत में सीता जी, भगवान राम की पत्नी, की कृपा की आशीर्वाद को प्राप्त होने की इच्छा का अभिव्यक्ति करती है और संत तुलसीदास का मन मंदिर में भगवान की पूजा चलता है।

"श्री राम चंद्र कृपालु भजमन" स्तुति का भावार्थ निम्नलिखित है:


1. श्री राम चंद्र: यह भगवान राम को संदर्भित करता है, जो हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता है।

2. कृपालु:यह शब्द कृपा करने वाले को दर्शाता है, और यहां इससे भगवान की कृपा और अनुग्रह की बात है।

3. भजमन: इसका अर्थ है 'भजना' या 'पूजना'। यहां भक्ति और पूजा के माध्यम से भगवान की उपासना की जा रही है।

4.  काव्यिक रूप से भगवान की प्रशंसा और स्तुति का अभिव्यक्ति करने के लिए उपयुक्त है।

इस स्तुति में भक्त का भगवान राम के प्रति प्रेम, श्रद्धा, और समर्पण व्यक्त होता है। हनुमान को भगवान के प्रमुख भक्त के रूप में स्वीकार किया जाता है और भक्त की माध्यम से भगवान से कृपा की प्राप्ति की गुजारिश की जाती है। इसमें आत्मा की मुक्ति की प्राप्ति और भगवान के साथ एकता की इच्छा का व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त होता है। सम्पूर्ण स्तुति भक्ति और साधना के माध्यम से अपने आत्मा को भगवान के साथ मिलाने की आग्रह करती है।

।।जय सिया राम।।

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