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सोमवार, 1 जनवरी 2024

चौथा अध्याय का सरल अर्थ

                  चौथा अध्याय का सरल अर्थ


सम्पूर्ण कर्मों के लीन करने के , संपूर्ण कर्मों के बंधन से रहित होने के दो उपाय हैं– कर्मों के तत्वों को जानना और तत्व ज्ञान को प्राप्त करना।

 भगवान सृष्टि की रचना तो करते हैं, पर उस कर्म में और उसके फल में कर्तव्य अभिमान एवं आसक्ति ना होने से बंधते  नहीं। कर्म करते हुए जो मनुष्य कर्म फल की आसक्ति, कामना, ममता आदि नहीं रखते अर्थात कर्म फल से सर्वप्रथम निर्लिप्त रहते हैं और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करते हैं। वह संपूर्ण कर्मों को काट देते हैं। जिसके संपूर्ण कर्म संकल्प और कामना से रहित होते हैं, उसके संपूर्ण कर्म जल जाते हैं। जो कर्म और कर्म फल की आसक्ति नहीं रखता वह कर्मों में सांगोपांग प्रवृत होता हुआ भी कर्मों से नहीं बंधता। जो केवल शरीर निर्वाह के लिए ही कर्म करता है तथा जो कर्मों की सिद्धि, असिद्धि में सम रहता है, वह कर्म करके भी नहीं बंधता। जो केवल कर्तव्य परंपरा सुरक्षित रखने के लिए ही कर्म करता है उसके संपूर्ण कर्म लीन हो जाते हैं। इस तरह कर्मों के तत्वों को ठीक तरह से जानने से मनुष्य कर्म बंधन से रहित हो जाता है।

 जड़ता से सर्वथा संबंध विच्छेद हो जाना ही तत्व ज्ञान है । यह तत्व ज्ञान पदार्थ से होने वाले यज्ञों से श्रेष्ठ है। इस तत्वज्ञान में संपूर्ण कर्म समाप्त हो जाते हैं। तत्व ज्ञान के प्राप्त होने पर भी कभी मोह नहीं होता।पापी से पापी मनुष्य ज्ञान से संपूर्ण पापों को हर ले जाता है। जैसे अग्नि संपूर्ण इर्धन को जला देती है, ऐसे ही ज्ञान रूपी अग्नि संपूर्ण कर्मों को भस्म कर देती है।

 भगवान ने साधना के माध्यम से मन की शुद्धि, अंतरंग सामर्थ्य, और भगवान के प्रति भक्ति की भूमि को स्पष्ट किया है। यह अध्याय जीवन को सार्थक बनाने और आत्मा को समझाने के मार्ग की महत्वपूर्ण बातें साझा करता है।

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जय श्री राधे

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