गीता के आठवें अध्याय का सरल अर्थ
अंतकालीन चिंतन के अनुसार ही जीव की गति होती है। इसलिए मनुष्य को हरदम सावधान रहना चाहिए, जिससे अंत काल में भागवत स्मृति बनी रहे। अंत समय में शरीर छुटते समय मनुष्य जिस वस्तु व्यक्ति आदि का चिंतन करता है, उसी के अनुसार उसको आगे का शरीर मिलता है। जो अंत समय में भगवान का चिंतन करता हुआ शरीर छोड़ता है वह भगवान को ही प्राप्त होता है। उसका फिर जन्म मरण नहीं होता। अतः मनुष्य को सब समय में, सभी अवस्थाओं में और शास्त्र विहित सब काम करते हुए भगवान को याद रखना चाहिए जिससे अंत समय में भगवान ही याद आए। जीवन भर रागपूर्वक जो कुछ किया जाता है प्राय: वहीं अंत समय में याद आता है।
इस अध्याय में भगवान कृष्ण ने स्वभाव, प्रकृति, और पुरुष के तात्पर्य को स्पष्ट किया है। वह यह बताते हैं कि सभी जीवों का अधिष्ठान प्रकृति है और उनका नियंत्रण पुरुष करता है। कर्मों के माध्यम से पुरुष को प्रकृति से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ ही, भक्ति और ज्ञान के माध्यम से भी व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। यह अध्याय जीवन को संतुलित रूप से जीने के लिए उपयुक्त मार्गदर्शन प्रदान करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे