यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

गीता माधुर्य अध्याय 1 का शेष

                   गीता माधुर्य अध्याय 1 का शेष


 कौरव सेना के बाजे बजने के बाद पांडव सेना के बाजे बजने चाहिए थे पर उस सेना को कोई आज्ञा नहीं मिली। तब सफेद घोड़ों से युक्त महान रथ पर बैठे हुए भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक और अर्जुन ने देवदत्त नामक दिव्य शंख को बड़ी जोर से बजाया। उसके बाद भीम ने पाैण्ड्र नामक, युधिष्ठिर ने अनंत विजय नामक, नकुल ने सुघोष नामक और सहदेव ने मणिपुष्पक नामक अलग अलग शंख बजाये
फिर और किसने शंख बजाये? 
हे राजन्! पांडव सेना के श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज, महारथी शिखंडी, तथा धृष्टधुम्न, राजा विराट, अजय सत्यकि, राजा द्रुपद, द्रोपदी के पांचों पुत्र और महाबाहु सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु - इन सभी महारथियों ने अपने-अपने शंख बजाएं।
पांडव सेना की उस शंख ध्वनि का क्या परिणाम हुआ? 
पांडव सेना की उस शंखो की ध्वनि ने आकाश और पृथ्वी को गुँजाते हुए अन्याय पूर्वक राज्य हड़पने वाले कौरवों के ह्दय विदीर्ण कर दिए।
शंख बजाने के बाद पांडवों ने क्या किया संजय?

है महीपते! शंखो के बजने के बाद युद्ध आरंभ होने के समय आप के संबंधियों(कौरवों) को देखकर कपिध्वज अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठा लिया और अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण से बोले कि 'हे अच्युत! आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दीजिए।'
रथ को बीच में क्यों खड़ा करूं अर्जुन? 
मैं इस रणभूमि में खड़े हुए युद्ध की इच्छा वाले शूरवीरों को देख लूं कि मुझे किन किन के साथ युद्ध करना है। यहां युद्ध में जो यह  राजा लोग दुर्योधन का प्रिय करने की इच्छा से इकट्ठे   हुए है, उनको भी मैं देख लूं।
अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान ने क्या किया संजय  
संजय बोले - हे राजन! निद्राविजयी अर्जुन के ऐसा कहने पर अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण ने दोनों सेनाओं के मध्य भाग में पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के सामने तथा संपूर्ण राजाओं के सामने रथ को खड़ा करके कहा कि 'हे पार्थ! इन इकट्ठे हुए कुरूवंशियों को देख'।
भगवान के कहने पर क्या हुआ? 
तब हम दोनों सेना में स्थित पिता, पितामह  आचार्य, मामा  भाई, पुत्र, पौत्र तथा मित्र  ससुर तथा इनके सिवाय अंन्य कई संबंधियों को देखकर अर्जुन अत्यंत कायरता युक्त होकर विषाद करते हुए बोले।
अर्जुन क्या बोले संजय? 
अर्जुन बोले- हे कृष्ण! अपने खास कुटुंबियों को युद्ध के लिए सामने खड़े देख कर मेरे सब अंग शिथिल हो रहे हैं, मुंह सूख रहा है, शरीर में कँपकँपी आ रही है, रोंगटे खड़े हो रहे हैं, हाथों से गांडीव धनुष गिर रहा है और अभी त्वचा भी जल रही है। मेरा मन भ्रमित हो रहा है और मैं खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहा हूं।
इसके सिवा और क्या देख रहे हो अर्जुन?
हे केशव! मैं शकुनों को भी विपरीत दिशा में देख रहा हूं और युद्ध में इन कुटुंबियों को मारकर कोई लाभ भी नहीं देख रहा हूं ।
इनको मारे बिना राज्य कैसे मिलेगा? 
हे कृष्ण! मैं ना तो विजय चाहता हूं, ना राज्य चाहता हूं और ना सुखों को ही चाहता हूं। हे गोविंद! हम लोगों को राज्य से, भोंगों से अथवा जीने से क्या लाभ?
तुम विजय अादि क्यों नहीं चाहते? 
हम जिनके लिए राज्य, भोग और सुख चाहते हैं वही सब के सब लोग अपने प्राणों की और धन की आशा को छोड़कर युद्ध के लिए खड़े हैं।
वह लोग कौन है अर्जुन? 
आचार्य, पिता, पुत्र, पितामह, मामा, ससुर, पुत्र तथा और भी बहुत से संबंधी हैं।
यही लोग अगर तुम्हें मारने के लिए तैयार हो जाए, तो? 
यह भले ही मुझे मार डालें, पर हे मधुसूदन! मुझे त्रिलोकी का राज्य मिल जाए तो भी मैं इन को मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के राज्य के लिए तो कहना ही क्या है?
अरे भैया राज्य   मिलने पर भी तो बड़ी प्रसन्नता होती है क्या तुम उसको भी नहीं चाहते?
 हे जनार्दन! इन धृतराष्ट्र के संबंधियों को, (जो कि हमारे भी संबंधी हैं) मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारने से तो हमें पाप ही लगेगा। इसलिए हे माधव!इन धृतराष्ट्र- संबंधियों को हम मारना नहीं चाहते; क्योंकि हे माधव! अपने कुटुंबियों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं।
यह तो तुम्हें मारने के लिए तैयार ही हैं, तुम ही पीछे क्यों हट रहे हो? 
महाराज! इन को तो लोभ के कारण विवेक - विचार लुप्त हो गया है, इसलिए यह दुर्योधन आदि कुल के नाश से होने वाले दोष को और मित्र द्रोह से होने वाले पाप को नहीं देख रहे हैं। तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से होने वाले दोष को जानने वाले हम लोगों को तो इस पाप से बचना ही चाहिए।
अगर कुल का नाश हो भी जाए तो क्या होगा? 
कुल का नाश होने पर सदा से चले आए कुलधर्म, कुल परम - परंपरा नष्ट हो जाते हैं।
कुल धर्म के नष्ट होने पर क्या होता है  
कुलधर्म के नष्ट होने पर संपूर्ण कुल में अधर्म फैल जाता है। अधर्म के फैल जाने से क्या होता है? 
अधर्म के फैल जाने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं।
स्त्रियोंके  दूषित होने से क्या होता है?
स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर पैदा होता है।
वर्णसंकर  पैदा होने से क्या होता है? 
यह वर्णसंकर कुलघातियों( कुल का नाश करने वालों) को और संपूर्ण कुल को नर्क में ले जाने वाला होता है तथा पिंड और पानी (श्राद्ध- तर्पण) ना मिलने से उनके पितर भी अपने स्थान से गिर जाते हैं।इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषों से कुल घाटियों के सदा से चलते आए कुल धर्म और जाति धर्म - - दोनों नष्ट हो जाते हैं।
जिनके कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, उन मनुष्य का क्या होता है?
हे जनार्दन! उन मनुष्य को बहुत समय तक नरक में निवास करना पड़ता है। ऐसा हम सुनते आए हैं,।
युद्ध के परिणाम को जब तुम पहले से ही जानते हो तो फिर युद्ध  के लिए तैयार क्यों हुए? 
यही तो बड़े आश्चर्य और खेद की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो कि राज्य और सुख के लोभ से अपने कुटुंबियों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं। अब तुम क्या करना चाहते हो? 
मैं अस्त्र-शस्त्र छोड़कर युद्ध से हट जाऊंगा। अगर मेरे द्वारा ऐसा करने पर भी हाथों में शस्त्र लिये दुर्योधन आदि मुझे मार दे तो वह मारना भी मेरे लिए बड़ा हितकर होगा।
ऐसा कहने के बाद अर्जुन ने क्या किया संजय? 
संजय बोले- ऐसा कहकर शौक से व्याकुल मन वाले अर्जुन ने बाण सहित धनुष का त्याग कर दिया औरत के मध्य भाग में बैठ गए।
पहला अध्याय समाप्त
॥ जय श्री कृष्ण॥

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

शुभ विचार

                                  शुभ विचार

पत्थर व लाठी से हड्डियां टूट जाती है परन्तु शब्दों से प्रायः संबंध टूट जाते हैं, इसलिए यदि आप क्रोध में हैं ,तो शांत रहिए और बोलना है तो सोच समझ कर बोलिए।
 जय श्री राधे

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

गीता माधुर्य प्रथम अध्याय हिंदी मे

                                 गीता माधुर्य

श्रीमद्भागवत गीता मनुष्य मात्र को सही मार्ग दिखाने वाला सार्वभौम महाग्रंथ है। लोगों में इसका अधिक से अधिक प्रचार हो, इस दृष्टि से परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ने इस ग्रंथ को प्रश्नोत्तर शैली में बड़े सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। जिससे गीता पढ़ने में सर्वसाधारण लोगों की रुचि पैदा हो जाए और वह इसके अर्थ को सरलता से समझ सके। नित्य पाठ करने के लिए भी है पुस्तक बड़ी उपयोगी है। आप  से मेरा निवेदन है कि इस को स्वयं भी पढ़े व औरों को भी प्रेरित करें।
                               श्री परमात्मने नमः
                                 श्री गणेशाय नमः
                      गीता माधुरी प्रथम पहला अध्याय
वसुदेव सुतम देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
 देवकीपरमानंद कृष्णम वंदे जगतगुरुम् ॥
जिज्ञासापूर्तये  टीका लिखित साधकस्य या।     
संजीवप्रवेशाया माधुर्य  लिख्यते मया॥
पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास समाप्त होने पर जब पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार अपना आधा राज्य मांगा, तब दुर्योधन ने आधा राज्य तो क्या, किसी सुई की नोक जितनी जमीन भी बिना युद्ध के देनी स्वीकार नहीं किया। अतः पांडवों ने माता कुंती की आज्ञा के अनुसार युद्ध करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होना निश्चित हो गया और दोनों और युद्ध की तैयारी होने लगी। महर्षि वेदव्यास का धृतराष्ट्र पर बहुत स्नेह था उसी के कारण उन्होंने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा की युद्ध होना और उसमें क्षत्रियों का महान संहार होना अवश्यंभावी है। इसे कोई टाल नहीं सकता, यदि तुम युद्ध देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हूं। जिसे तुम भी बैठे-बैठे युद्ध की अच्छी तरह कैसे देख सकते हो। इस पर धृतराष्ट्र ने कहा कि "मैं जन्म भर अंधा रहा, अब अपने कुल के संहार को मैं देखना नहीं चाहता हूँ। परंतु युद्ध कैसे हो रहा है- यह समाचार जरूर मैं जानना चाहता हूँ। 'व्यास जी ने कहाकि मैं संजय को दिव्य दृष्टि देता हूं, जिससे वह संपूर्ण युद्ध को, संपूर्ण घटनाओं को, सैनिकों के मन में आई हुई बातों को, भी जान लेगा, सुन लेगा, देख लेगा और सब बातें तुम्हें सुना भी देगा। ऐसा कह कर व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की। उधर निश्चित समय के अनुसार कुरुक्षेत्र में दोनों सेना युद्ध के लिए तैयार थी।
अब प्रश्न होता है कि जब युद्ध के लिए दोनों सैन्य सेना तैयार थी ऐसे मौके पर भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश क्यों दिया? 
 शोक दूर करने के लिए ही भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।
अर्जुन को शौक कब हुआ और क्यों हुआ? 
जब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने ही निजी कुटुंबियों को देखा और सोचा कि दोनों तरफ हमारे कुटुंबी मरेंगे, तब ममता के कारण उनको शौक हुआ।
अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने कुटुंबियों को क्यों देखा?  भगवान श्री कृष्ण ने जब दोनों सेनाओं के बीच में रख खड़ा करके अर्जुन से कहा कि' तुम युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए इन कुरूवंशियों को देखो' तब अर्जुन ने अपने कुटुंबियों को देखा। भगवान ने अर्जुन को दोनों सेनाओं में वंशियों को देखने के लिए क्यों कहा? 
 अर्जुन ने पहले भगवान से कहा था कि 'हे अच्युत! दोनों सेनाओं के बीच में मेरा रथ खड़ा करो, जिससे मैं देखूं कि यहां मेरे साथ दो हाथ करने वाले कौन हैं? '
अर्जुन ने ऐसा क्यों कहा? 
जब युद्ध की तैयारी के बाजे बजे, तब उत्साह से भर कर अर्जुन ने दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करने के लिए भगवान से कहा।
बाजे क्यों बजे? 
कौरव सेना के मुख्य सेनापति भीष्म जी ने जब सिहं की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया, तब कौरव और पांडव सेना के बाजे बजे।
भीष्मजी ने शंख क्यों बजाया?    
दुर्योधन को हर्षित करने के लिए भीष्मजी ने शंख बजाया।
   दुर्योधन अप्रसन्न क्यों था? 
 दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा कि आपके प्रतिपक्ष में पांडवों की सेना खड़ी है, इसको देखिए अथार्त जिन पांडव पर आप प्रेम-स्नेह करते हैं वही आप के विरोध में खड़े हैं। पांडव सेना की व्यूह रचना भी धृष्टधुम्न    के द्वारा की गई है। जो आप को मारने के लिए ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार दुर्योधन की चालाकी से, राजनीति से भरी हुई बातों को सुनकर द्रोणाचार्य चुप रहे  कुछ बोले नहीं। इससे दुर्योधन अप्रसन्न हुआ।
द्रोणाचार्य चुप क्यों रहें?
दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को उकसाने के लिए चालाकी से राजनीति की जो बातें कहीं ,वह बातें द्रोणाचार्य को बुरी लगी  । उन्होंने यह सोचा कि अगर मैं इन बातों का खंडन करूं, तो युद्ध के मौके पर आपस में खटपट हो जाएगी। जो उचित नहीं है। मैं इन बातों का अनुमोदन भी नहीं कर सकता क्योंकि यह चालाकी से बातचीत कर रहा है। सरलता से बातचीत नहीं कर रहा है, इसलिए द्रोणाचार्य चुप रहे।
दुर्योधन ने ऐसी बातें कब कहां और क्यों कहीं? 
दुर्योधन ने   व्यूहाआकार  खड़ी हुई पांडव सेना को देखकर गुरु द्रोणाचार्य को उकसाने के लिए ऐसी बातें कहीं  इसका वर्णन संजय ने धृतराष्ट्र के प्रति किया है।
संजय ने यह वर्णन धृतराष्ट्र के प्रति क्यों किया? 
जब धृतराष्ट्र युद्ध की कथा को आरम्भ से विस्तार पूर्वक सुनना चाहा, तब संजय ने यह सब बातें धृतराष्ट्र से कहीं।
धृतराष्ट्र ने संजय से क्यों सुनना चाहा?
10 दिन युद्ध होने के बाद संजय ने अचानक आकर धृतराष्ट्र से यह कहा कि कौरव, पांडवों के पितामह, शांतनु के पुत्र भीष्म मारे गए(रथ से गिरा दिए गए) जो संपूर्ण योद्धाओं में मुख्य और संपूर्ण धनुर्धारियों में श्रेष्ठ थे। ऐसे पितामह भीष्म आज शर शैया पर सो रहे हैं। इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुख हुआ और वह विलाप करने लगे। फिर उन्होंने युद्ध का सारांश सुनाने के लिए कहा और पूछा-
 है संजय! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया? संजय बोले उस समय व्युरचना से खड़ी हुई पांडवों की सेना को देखकर राजा दुर्योधन, द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कहा कि आचार्य आप अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र प्रदुमन के द्वारा  व्युह रचना से खडी की  हुई पांडवों की इस बड़ी सेना को देखिए। पांडवों की सेना में किन-किन को देखूं दुर्योधन? 
पांडवों की सेना में बड़े-बड़े शूरवीर हैं, जिनके बहुत बड़े-बड़े धनुष है, तथा जो बल में भीम के समान है और युद्धकला में अर्जुन के समान है। इन में युयुधान (सात्यकि) राजा विराट और महारथी  द्रुपद भी है। धृष्टकेतु, चेकितान और पराक्रमी काशीराज भी है और पुरूजित और कुंती भोज यह दोनों भाई तथा मनुष्य में श्रेष्ठ शैब्य भी है। पराक्रमी युधामन्यु और बलवान उत्तमोेजा भी है। सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु और द्रोपदी के पांचों पुत्र भी हैं। यह सब के सब महारथी हैं।
पांडव सेना के शूरवीरों के नाम तो तुम ने बता दिए पर अपनी सेना के शूरवीर कौन-कौन है दुर्योधन? 
हे  द्विजोत्तम जो हमारी सेना में जो विशेष विशेष पुरुष हैं, उन पर भी ध्यान दीजिए। आप (द्रोणाचार्य), पितामह भीष्म, कर्ण, संग्राम विजय कृपाचार्य अश्वत्थामा और सोम दत्त का पुत्र भूरिश्रवा तथा इनके सिवाएं और भी बहुत से शुरूवीर है जिन्होंने मेरे लिए अपने जीने की इच्छा का भी त्याग कर दिया है और जो अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण तथा युद्ध कला में अत्यंत चतुर हैं।
दोनों सेनाओं के प्रधान प्रधान योद्धाओं को दिखाने के बाद दुर्योधन ने क्या किया संजय? 
दुर्योधन ने अपने मन में विचार किया कि वह उभयपक्षपाती (दोनों का पक्ष लेने वाले) भीष्म के द्वारा रक्षित हमारी सेना पांडव सेना पर विजय करने में असमर्थ हैं। और निजपक्ष पाती (केवल अपना ही पक्ष लेने वाले) भीम के द्वारा रचित पांडवों की सेना हमारी सेना पर विजय करने में समर्थ है।
मन में ऐसा विचार करने के बाद दुर्योधन ने क्या किया? 
उसने सभी शूरवीरों से कहा कि आप सब के सब लोग अपने-अपने मोर्चा पर दृढ़ता से स्थित रहते हुए ही पितामह भीष्म की चारों ओर से रक्षा करें।
अपनी रक्षा की बात सुनकर भीष्म जी ने क्या किया?
पितामह भीष्म ने दुर्योधन को प्रसन्न करते हुए बड़े जोर से शंख बजाया
भीष्मजी के द्वारा शंख बजाने के बाद क्या हुआ संजय?
 भीष्मजी ने तो दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए ही शंख बजाया था, पर कौरव सेना ने इसको युद्धारम्भ की घोषणा ही समझी। अत:भीष्मजी के शंख बजाते ही कौरव सेना के शंख, ढोल, बाजे एक साथ बज उठे। उनका शब्द बड़ा भयंकर हुआ।
 कौरव सेना के बाजें बजने के बाद क्या हुआ संजय?
शेष कल-

सोमवार, 6 अगस्त 2018

यमुना स्तुति भावार्थ के साथ(विनय पत्रिका)

                                यमुना स्तुति

जमुना ज्यों-ज्यों लागी बाढन। 
त्यों त्यों  सुकृत - सुभट कली भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न॥१॥ 
ज्यों ज्यों जल मलिन त्यों त्यों  जमगन मुखमलीन लहै आढ़ न। 
तुलसीदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न॥२॥ भावार्थ-
यमुना जी
जैसे जैसे बढने लगी, वैसे ही पुण्य रूपी योद्धागण कलयुग रूपी राजा का निरादर करते हुए उसे निकालने लगे। बरसात में यमुना जी का जल बढ़कर जो जो मैला होने लगा, त्यों त्यों यमदूतों का मुख भी काला होता गया, अंत में उन्हें कोई भी आसरा नहीं रहा, अब वह  किस को यमलोक में ले जाएं। तुलसीदास जी कहते हैं कि यमुनाजी के बढ़ते हुए पुण्य रूपी मेघ ने संसार के पाप रूपी जवासे को जलाकर भस्म कर डाला। 

गंगा स्तुति( विनय पत्रिका)

                                 गंगा स्तुति(विनय पत्रिका)

जय जय भगीरथ नंदिनी, मुनि चय चकोर - चंदनी,
नर - नाग- विबुध- बंदिनी जय जह्नु बालिका।
विष्णुपद सरोजजासी, ईस-सीस पर बिभासि,
त्रिपथगासि, पुण्यराशि, पापछालिका॥१॥
विमल विपुल बहसि बारी, शीतल त्रयताप - हारी,
भंवर बर बिभंगतर तरंग मलिका।
पुरजन पूजाेपहार, शोभित शशि धवलदार,
भंजन भव भार, भक्ति कल्पथालिका ॥२॥
निज तटबासी बिहंग, जल-थर-चर पशु पतंग 
की, जटिल तापस सब सरिस पालिका।
तुलसी तब तीर तीर सुमिरत रघुवंश बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका॥३॥
 भावार्थ- हे भगीरथ नंदिनी! तुम्हारी जय हो ,जय हो। तुम मुनियों के समूह रूपी चकोरों के लिए चंद्रिका रूप हो। मनुष्य नाग, देवता तुम्हारी वंदना करते हैं। यह जह्नु की पुत्री! तुम्हारी जय हो। तुम भगवान विष्णु के चरण कमल से उत्पन्न हुई हो  शिवजी के मस्तक पर शोभा पाती हो। स्वर्ग, भूमि और पाताल इन तीन मार्गो से तीन धाराओं में होकर बहती हो। पुण्य की राशि और पापों को धोने वाली हो। तुम आगाध निर्मल जल को धारण किए हो। वह जल शीतल और तीनों तापों को हरने वाला है  तुम सुंदर भँवर और अति चंचल तरंगों की माला धारण किए हो ।नगर- निवासियों ने पूजा के समय जो सामग्री भेंट चढ़ाई हैं, उनसे तुम्हारी चंद्रमा के समान धवल धारा शोभित हो रही है। यह धारा संसार के जन्म - मरण रूप भार को नाश करने वाली तथा भक्ति रूपी कल्पवृक्ष की रक्षा के लिए थाल्हारूप है। तुम अपनी तीर पर रहने वाले पक्षी, जलचर, थलचर, पशु, पतंग की औल जटाधारी तपस्वी आदि सबका समान भाव से पालन करती हो। हे मोह रूपी महिषासुर को मारने के लिए काली का रूप गंगाजी ! मुझे ऐसी बुद्धि दो जिससे वह श्री रघुनाथ जी का स्मरण करता हुआ तुम्हारे तीर पर विचरा करें। 

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

सब के सब सुखी हो जाए

       
           सभी लोग एक दूसरे के सुख की कामना करें
  गीता आश्रम में ऋषिकेश मे एक संत हुए स्वामी रामसुखदास जी उन्हीं के मुख से बोले गए ये प्रवचन हैं जिसमें वह बता रहे हैं कि यदि हमने ईश्वर को अपना मान लिया है तो इस संसार में रहने वाली प्रत्येक जीव और निर्जीव ईश्वर के ही हैं । तो हमें उन सब का भी आदर , प्यार और सहायता करनी चाहिए।
प्रभुके साथ हमारा अपनापन सदासे है और सदा रहेगा। केवल हम ही भगवान से विमुख हुए हैं, भगवान् हमसे विमुख नहीं हुए। हम भगवान् के हैं और भगवान् हमारे हैं—
अस अभिमान जाइ जनि भोरे। मैं सेवक रघुपति पति मोरे॥
(मानसअरण्य ११। २१)
मीराबाई इतनी ऊँची हुई, इसका कारण उसका यह भाव था कि ।‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।’ केवल एक भगवान् ही मेरे हैं, दूसरा कोई मेरा नहीं है।
सज्जनो ! हम भगवान् के हो जाते हैं तो भगवान् की सृष्टिके साथ उत्तम-से-उत्तम बर्ताव करना हमारे लिये आवश्यक हो जाता है। यह सब सृष्टि प्रभुकी है, ये सभी हमारे मालिक के हैं—ऐसा भाव रखोगे तो उनके साथ हमारा बर्ताव बड़ा अच्छा होगा। त्यागका, उनके हितका, सेवाका बर्ताव होगा। इससे व्यवहार तो शुद्ध होगा ही, हमारा परमार्थ भी सिद्ध हो जायगा, हम संसारसे मुक्त हो जायँगे। अत: हम भगवान के होकर भगवान का काम करें। ये सब प्राणी भगवान के हैं, इन सबकी सेवा करें। अपना यह भाव बना लें—
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग्भवेत्॥
सब-के-सब सुखी हो जायँ, सब-के-सब नीरोग हो जायँ, सबके जीवनमें मङ्गल-ही-मङ्गल हो, कभी किसीको दु:ख न हो— ऐसा भाव हमारेमें हो जायगा तो दुनियामात्र सुखी होगी कि नहीं, इसका पता नहीं; परन्तु हम सुखी हो जायँगे, इसमें सन्देह नहीं।(स्वामी रामसुखदासजी के श्री मुख से ) 

देवि स्तुति भावार्थ के साथ (विनय पत्रिका)

                                 देवि स्तुति(विनय पत्रिका)

 जय जय जग जननी देवी सुर- नर- मुनि - असुर सेवि, 
भुक्ति- मुक्ति- दायिनी, भय-हारणि कालिका। 
मंगल - मुद-सिद्धि- सदनि  पर्वशर्वरीश-वदनि, 
ताप-तिमिर- तरुण - तरणि- किरणमालिका॥१॥
 वर्म, चर्म कर कृपाण, शूल- शैल- धनुषबाण,
 धरणि दलनि दानव दल, रण-करालिका।
 पूतना- पिशाच - प्रेत - डाकिनी- शाकिनी - समेत, 
भूत-ग्रह- बेताल खग- मृगाली- जालिका॥२॥
 जय महेश -भामिनी, अनेक रुप नामिनी ,
समस्त लोकस्वामनी, हिमशैल बालिका ।
रघुपति -पद परम प्रेम, तुलसी यह अचल नेम, 
देहु ह्वै प्रसन्न  पाहि प्रणत- पालिका॥३॥
 भावार्थ- हे जगत की माता! हे देवी!! तुम्हारी जय हो, जय हो देवता, मनुष्य, मुनि और असुर सभी तुम्हारी सेवा करते हैं। तुम भोग और मोक्ष दोनों को ही देने वाली हो ।भक्तों का भय दूर करने के लिए तुम कालिका हो ,कल्याण सुख और सिद्धियों की शान हो, तुम्हारा सुंदर मुख पूर्णिमा के चंद्र के सदृश है। तुम आध्यात्मिक, आधिभौतिक, और आधिदैविक ताप रुपी अंधकार का नाश करने के लिए मध्याह्न के तरुण सूर्य की किरण माला हो॥१॥ तुम्हारे शरीर पर कवच है। तुम हाथों में ढाल ,तलवार ,त्रिशूल, सांगी और धनुष बाण लिए हो। दानवों के दल का संहार करने वाली हो ,रण में विकराल रूप धारण कर लेती हो। तुम पूतना, पिशाच, प्रेत और डाकिनी शाकनियों के सहित भूत ग्रह और बेताल रूपी पक्षी और मृर्गों के समूह को पकड़ने के लिए जागरूक हो॥२॥ हे शिवे! तुम्हारी जय हो।। तुम्हारे अनेक रूप और नाम है। तुम समस्त संसार के स्वामिनी और हिमाचल की कन्या हो। हे शरणागत की रक्षा करने वाली! में तुलसीदास श्री रघुनाथ जी के चरणों में परम प्रेम और अचल नेम चाहता हूं, तो प्रसन्न होकर मुझे दो और मेरी रक्षा करो। 

Featured Post

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र भावार्थ के साथ

                    गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र   भावार्थ के साथ गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र श्रीमद्भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में आता है। इसमें एक ...