/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: गीता माधुर्य प्रथम अध्याय हिंदी मे

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मंगलवार, 7 अगस्त 2018

गीता माधुर्य प्रथम अध्याय हिंदी मे

                                 गीता माधुर्य

श्रीमद्भागवत गीता मनुष्य मात्र को सही मार्ग दिखाने वाला सार्वभौम महाग्रंथ है। लोगों में इसका अधिक से अधिक प्रचार हो, इस दृष्टि से परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ने इस ग्रंथ को प्रश्नोत्तर शैली में बड़े सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। जिससे गीता पढ़ने में सर्वसाधारण लोगों की रुचि पैदा हो जाए और वह इसके अर्थ को सरलता से समझ सके। नित्य पाठ करने के लिए भी है पुस्तक बड़ी उपयोगी है। आप  से मेरा निवेदन है कि इस को स्वयं भी पढ़े व औरों को भी प्रेरित करें।
                               श्री परमात्मने नमः
                                 श्री गणेशाय नमः
                      गीता माधुरी प्रथम पहला अध्याय
वसुदेव सुतम देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
 देवकीपरमानंद कृष्णम वंदे जगतगुरुम् ॥
जिज्ञासापूर्तये  टीका लिखित साधकस्य या।     
संजीवप्रवेशाया माधुर्य  लिख्यते मया॥
पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास समाप्त होने पर जब पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार अपना आधा राज्य मांगा, तब दुर्योधन ने आधा राज्य तो क्या, किसी सुई की नोक जितनी जमीन भी बिना युद्ध के देनी स्वीकार नहीं किया। अतः पांडवों ने माता कुंती की आज्ञा के अनुसार युद्ध करना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होना निश्चित हो गया और दोनों और युद्ध की तैयारी होने लगी। महर्षि वेदव्यास का धृतराष्ट्र पर बहुत स्नेह था उसी के कारण उन्होंने धृतराष्ट्र के पास आकर कहा की युद्ध होना और उसमें क्षत्रियों का महान संहार होना अवश्यंभावी है। इसे कोई टाल नहीं सकता, यदि तुम युद्ध देखना चाहते हो तो मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि दे सकता हूं। जिसे तुम भी बैठे-बैठे युद्ध की अच्छी तरह कैसे देख सकते हो। इस पर धृतराष्ट्र ने कहा कि "मैं जन्म भर अंधा रहा, अब अपने कुल के संहार को मैं देखना नहीं चाहता हूँ। परंतु युद्ध कैसे हो रहा है- यह समाचार जरूर मैं जानना चाहता हूँ। 'व्यास जी ने कहाकि मैं संजय को दिव्य दृष्टि देता हूं, जिससे वह संपूर्ण युद्ध को, संपूर्ण घटनाओं को, सैनिकों के मन में आई हुई बातों को, भी जान लेगा, सुन लेगा, देख लेगा और सब बातें तुम्हें सुना भी देगा। ऐसा कह कर व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की। उधर निश्चित समय के अनुसार कुरुक्षेत्र में दोनों सेना युद्ध के लिए तैयार थी।
अब प्रश्न होता है कि जब युद्ध के लिए दोनों सैन्य सेना तैयार थी ऐसे मौके पर भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश क्यों दिया? 
 शोक दूर करने के लिए ही भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।
अर्जुन को शौक कब हुआ और क्यों हुआ? 
जब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने ही निजी कुटुंबियों को देखा और सोचा कि दोनों तरफ हमारे कुटुंबी मरेंगे, तब ममता के कारण उनको शौक हुआ।
अर्जुन ने दोनों सेनाओं में अपने कुटुंबियों को क्यों देखा?  भगवान श्री कृष्ण ने जब दोनों सेनाओं के बीच में रख खड़ा करके अर्जुन से कहा कि' तुम युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए इन कुरूवंशियों को देखो' तब अर्जुन ने अपने कुटुंबियों को देखा। भगवान ने अर्जुन को दोनों सेनाओं में वंशियों को देखने के लिए क्यों कहा? 
 अर्जुन ने पहले भगवान से कहा था कि 'हे अच्युत! दोनों सेनाओं के बीच में मेरा रथ खड़ा करो, जिससे मैं देखूं कि यहां मेरे साथ दो हाथ करने वाले कौन हैं? '
अर्जुन ने ऐसा क्यों कहा? 
जब युद्ध की तैयारी के बाजे बजे, तब उत्साह से भर कर अर्जुन ने दोनों सेनाओं के बीच में रथ खड़ा करने के लिए भगवान से कहा।
बाजे क्यों बजे? 
कौरव सेना के मुख्य सेनापति भीष्म जी ने जब सिहं की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया, तब कौरव और पांडव सेना के बाजे बजे।
भीष्मजी ने शंख क्यों बजाया?    
दुर्योधन को हर्षित करने के लिए भीष्मजी ने शंख बजाया।
   दुर्योधन अप्रसन्न क्यों था? 
 दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा कि आपके प्रतिपक्ष में पांडवों की सेना खड़ी है, इसको देखिए अथार्त जिन पांडव पर आप प्रेम-स्नेह करते हैं वही आप के विरोध में खड़े हैं। पांडव सेना की व्यूह रचना भी धृष्टधुम्न    के द्वारा की गई है। जो आप को मारने के लिए ही उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार दुर्योधन की चालाकी से, राजनीति से भरी हुई बातों को सुनकर द्रोणाचार्य चुप रहे  कुछ बोले नहीं। इससे दुर्योधन अप्रसन्न हुआ।
द्रोणाचार्य चुप क्यों रहें?
दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को उकसाने के लिए चालाकी से राजनीति की जो बातें कहीं ,वह बातें द्रोणाचार्य को बुरी लगी  । उन्होंने यह सोचा कि अगर मैं इन बातों का खंडन करूं, तो युद्ध के मौके पर आपस में खटपट हो जाएगी। जो उचित नहीं है। मैं इन बातों का अनुमोदन भी नहीं कर सकता क्योंकि यह चालाकी से बातचीत कर रहा है। सरलता से बातचीत नहीं कर रहा है, इसलिए द्रोणाचार्य चुप रहे।
दुर्योधन ने ऐसी बातें कब कहां और क्यों कहीं? 
दुर्योधन ने   व्यूहाआकार  खड़ी हुई पांडव सेना को देखकर गुरु द्रोणाचार्य को उकसाने के लिए ऐसी बातें कहीं  इसका वर्णन संजय ने धृतराष्ट्र के प्रति किया है।
संजय ने यह वर्णन धृतराष्ट्र के प्रति क्यों किया? 
जब धृतराष्ट्र युद्ध की कथा को आरम्भ से विस्तार पूर्वक सुनना चाहा, तब संजय ने यह सब बातें धृतराष्ट्र से कहीं।
धृतराष्ट्र ने संजय से क्यों सुनना चाहा?
10 दिन युद्ध होने के बाद संजय ने अचानक आकर धृतराष्ट्र से यह कहा कि कौरव, पांडवों के पितामह, शांतनु के पुत्र भीष्म मारे गए(रथ से गिरा दिए गए) जो संपूर्ण योद्धाओं में मुख्य और संपूर्ण धनुर्धारियों में श्रेष्ठ थे। ऐसे पितामह भीष्म आज शर शैया पर सो रहे हैं। इस समाचार को सुनकर धृतराष्ट्र को बड़ा दुख हुआ और वह विलाप करने लगे। फिर उन्होंने युद्ध का सारांश सुनाने के लिए कहा और पूछा-
 है संजय! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया? संजय बोले उस समय व्युरचना से खड़ी हुई पांडवों की सेना को देखकर राजा दुर्योधन, द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कहा कि आचार्य आप अपने बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र प्रदुमन के द्वारा  व्युह रचना से खडी की  हुई पांडवों की इस बड़ी सेना को देखिए। पांडवों की सेना में किन-किन को देखूं दुर्योधन? 
पांडवों की सेना में बड़े-बड़े शूरवीर हैं, जिनके बहुत बड़े-बड़े धनुष है, तथा जो बल में भीम के समान है और युद्धकला में अर्जुन के समान है। इन में युयुधान (सात्यकि) राजा विराट और महारथी  द्रुपद भी है। धृष्टकेतु, चेकितान और पराक्रमी काशीराज भी है और पुरूजित और कुंती भोज यह दोनों भाई तथा मनुष्य में श्रेष्ठ शैब्य भी है। पराक्रमी युधामन्यु और बलवान उत्तमोेजा भी है। सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु और द्रोपदी के पांचों पुत्र भी हैं। यह सब के सब महारथी हैं।
पांडव सेना के शूरवीरों के नाम तो तुम ने बता दिए पर अपनी सेना के शूरवीर कौन-कौन है दुर्योधन? 
हे  द्विजोत्तम जो हमारी सेना में जो विशेष विशेष पुरुष हैं, उन पर भी ध्यान दीजिए। आप (द्रोणाचार्य), पितामह भीष्म, कर्ण, संग्राम विजय कृपाचार्य अश्वत्थामा और सोम दत्त का पुत्र भूरिश्रवा तथा इनके सिवाएं और भी बहुत से शुरूवीर है जिन्होंने मेरे लिए अपने जीने की इच्छा का भी त्याग कर दिया है और जो अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुण तथा युद्ध कला में अत्यंत चतुर हैं।
दोनों सेनाओं के प्रधान प्रधान योद्धाओं को दिखाने के बाद दुर्योधन ने क्या किया संजय? 
दुर्योधन ने अपने मन में विचार किया कि वह उभयपक्षपाती (दोनों का पक्ष लेने वाले) भीष्म के द्वारा रक्षित हमारी सेना पांडव सेना पर विजय करने में असमर्थ हैं। और निजपक्ष पाती (केवल अपना ही पक्ष लेने वाले) भीम के द्वारा रचित पांडवों की सेना हमारी सेना पर विजय करने में समर्थ है।
मन में ऐसा विचार करने के बाद दुर्योधन ने क्या किया? 
उसने सभी शूरवीरों से कहा कि आप सब के सब लोग अपने-अपने मोर्चा पर दृढ़ता से स्थित रहते हुए ही पितामह भीष्म की चारों ओर से रक्षा करें।
अपनी रक्षा की बात सुनकर भीष्म जी ने क्या किया?
पितामह भीष्म ने दुर्योधन को प्रसन्न करते हुए बड़े जोर से शंख बजाया
भीष्मजी के द्वारा शंख बजाने के बाद क्या हुआ संजय?
 भीष्मजी ने तो दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए ही शंख बजाया था, पर कौरव सेना ने इसको युद्धारम्भ की घोषणा ही समझी। अत:भीष्मजी के शंख बजाते ही कौरव सेना के शंख, ढोल, बाजे एक साथ बज उठे। उनका शब्द बड़ा भयंकर हुआ।
 कौरव सेना के बाजें बजने के बाद क्या हुआ संजय?
शेष कल-

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जय श्री राधे

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