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सोमवार, 20 अगस्त 2018

गीता माधुर्य अध्याय 2 का शेष( श्रीमद्भागवत गीता का सरल भावार्थ)

                   गीता माधुर्य अध्याय 2 का शेष -

वह स्थिर मन बोलता कैसे हैं ?
उसको बोलना साधारण क्रिया रूप से नहीं होता है बल्कि भाव रूप से होता है ।वर्तमान में व्यवहार करते हुए दुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होगा और सुखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में स्पर्ह  नहीं होती तथा जो राग ,द्वेष, क्रोध से रहित हो गया है। वह मनुष्य  स्थितप्रज्ञ कहलाता है ।सब जगह आसक्ति रहित हुआ ,जो मनुष्य प्रारब्धः  के अनुसार अनुकूल परिस्थिति आने पर हर्षित नहीं होता और प्रतिकूल परिस्थिति के द्वेश नहीं करता ,उसकी बुद्धि स्थिर हो गई है अथार्थ पहले उसने मुझे परमात्मा की प्राप्ति ही करनी है ।ऐसा जो निश्चय किया था वह अब सिद्ध हो गया है ।वह स्थितप्रज्ञ अवस्था कैसे हो ?
जैसे कछुआ अपने चारों पैर ,गर्दन और पूछं इन 6 अंगों को समेट  कर बैठता है ।ऐसा ही जिस समय गया कर्म योगी संपूर्ण इंद्रियों और मन को अपने अपने विषयों से समेट कर हटा लेता है, समेट लेता है। उस समय उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।
 इंद्रियों को समेटने की वास्तविक पहचान क्या है?
 इंद्रियों को अपने विषयों से हटाने वाले देहाभिमानी मनुष्य के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं पर रस बुद्धि -सुख, भोग ,बुद्धि निवर्त  नहीं होती। परंतु परमात्मा की प्राप्ति होने से इस मनुष्य के रस ,बुद्धि, विवेक निवर्त हो जाती है।
 रसबुद्धि रहने से क्या हानि होती है ?
हे कुन्ती नंदन !रस बुद्धि रहेने से साधनपरायण विवेकी  मनुष्य की इंद्रियां उसके मन को जबरदस्ती विषयों की तरफ खींच ले जाती हैं।
इस रस बुद्धि को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए ?
कर्मयोगी साधक ईन्द्रियों को वश में कर के मेरे  परायण बैठ जाए ,इह तरह जिसकी ईन्द्री बस में है उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।
 आपके परायण न होने से  क्या होगा ?
मेरे परायण ना होने से भोगों का चिंतन होगा।
 भोगो के चिंतन से क्या होगा?
 मनुष्य की उस विषय में आसक्ति हो जाएगी ।
आसक्ति होने से क्या होगा ?
उन भोगों को प्राप्त करने की कामना पैदा होगी?
 कामना  पैदा होने से क्या होगा?
 कामना की पुर्ति न होने  पर क्रोध आ जाएगा ।
क्रोध आने से क्या होगा ?
सन्मोह हो जाएगा, अच्छा जाएगा,मूढ़ता आ जायेगी ।
 मूढ़ता आने से क्या होगा?
मै साधक हीं, मुखे एसा व्यवहार कलना चाहिये ।  मुझे याद करना चाहिए ,ऐसा बोलना चाहिए ,जो पहले विवेक किया था उसकी स्मर्ति नष्ट हो जाएगी ।
स्मर्ति नष्ट होने पर क्या होगा?
 नया विचार करने की शक्ति ,बुद्धि नष्ट हो जाएगी ।इस समय मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ।क्या होगा मनुष्य का पतन हो जाएगा ।
दुखों का नाश हो जाता है और उसकू एक निश्चय वाली बुद्धि नहीं होती एक निश्चयबुद्धि ना होने से उसकी मुझे अपने कर्तव्य का पालन करना है ऐसी भावना ऐसा विचार नहीं होता ऐसी भावना ना होने से होने से उस को शांति नहीं मिलती।
जिस मनुष्य की सभी कामनाएं , अहंकार ममता रहितं  होकर विचरता है ,उस को शांति प्राप्त हो जाती है। उसकी स्थिति बह्न  में होती है ।इसको प्राप्त होने पर मनुष्य कभी मोहित नहीं होता ,यदि मनुष्य इस ब्राह्मणी स्थिति  में अंत काल में भी स्थित हो जाए अथार्त अंतकाल में भी ममता रहित हो जाए तो वह शांति ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।
दूसरा अध्याय समाप्त

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जय श्री राधे

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