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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

(सच्चाई ) पढो़, समझो और करों

                       गरीब महिला की ईमानदारी

 जय श्री राधे ,गीता प्रेस वालों की कल्याण मैगजीन को मैं हमेशा पढ़ती रहती हूं, उसी में कुछ हमें शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को मिलती हैं ,जिसमें सच्चाई होती है। उसी में से यह एक कहानी मैंने पढ़ी और मुझे लगा कि आप सबके साथ भी इसको शेयर करूँ-

घटना इस प्रकार है- मुझे कुछ प्लास्टिक डिब्बे तथा स्टील के बर्तनों की खरीदारी करनी थी और इसके लिए मैं अपने पौत्र के साथ सोनिया विहार स्थित मार्केट में एक दुकान पर गया जहां पर अष्टमी - नवमी की वजह से वह काफी बड़ी भीड़ थी दुकानदार को मैंने अपना सामान नोट कराया तथा उसने कहा कि आपको आधे घंटे प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं दुकान में एक तरफ खड़ा हो गया। तभी मेरी दृष्टि एक महिला पर पड़ी जो दुकानदार से दो - 4 मिनट अपनी भाषा में झगड़ती और फिर एक तरफ बैठ कर रोने लगती, ऐसा तीन - चार बार हुआ। दुकानदार को कोई परवाह नहीं थी। लेकिन उस महिला के आंसू देख कर, मेरी व्याकुलता बढ़ती गई और एक समय ऐसा आया कि मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और उससे जानना चाहा कि आखिर हुआ क्या है?परेशानी की वजह से उसकी भाषा स्पष्ट समझ नहीं आ रही थी लेकिन जो कुछ मैं समझ पाया उसके अनुसार ऐसा लगा कि महिला ने अपना सामान ख़रीदा और भुगतान करते समय उसने दुकानदार को एक की जगह ₹500 के दो नोट गलती से दे दिए और अब वह ₹500 का एक नोट वापस लेना चाहती है। दुकानदार इस बात को कतई मानने को तैयार नहीं था, और बार - बार यह कह रहा था कि एक नोट तुम से कहीं गिर गया होगा। महिला कुछ बोलती और फिर बैठ कर रोने लगते। वेशभूषा से महिला गरीब परिवार की लग रही थी। लेकिन उसके दृढ़ता तथा आंसू उसकी इमानदारी की गवाही दे रहे थे। मुझे उसकी सहायता करने की इच्छा हुई और मैंने ₹500 का एक नोट निकालकर उसको देना चाहा। तो वह और जोर से रोने लगी। उस नोट को काफी प्रयत्न्न करने के पश्चात भी मुझसे नहीं लिया और दुकानदार की ओर इशारा करते रही, जिससे लगता था कि वह दुकानदार से ही लेना चाहती है । लेकिन दुकानदार को उसकी कोई परवाह नहीं थी। मेरा सामान अभी तक नहीं हुआ था 15 मिनट और बीत गए। मैंने एक तरकीब निकाली और चुपके से ₹500 का नोट दुकानदार को पकड़ा दिया और इशारो- इशारो में उसको देने के लिए कह दिया। थोड़ी देर बाद दुकानदार ने उस महिला को दिया तो उसने उसे लेने से मना करते हुए धीरे-धीरे बताया कि ₹500 नहीं, केवल सो रुपए चाहिए। 1 घंटे के घटना क्रम के पश्चात पता चला कि उस महिला ने ₹200 का सामान लेकर ₹500 का नोट दिया जिसमें दुकानदार ने गलती से 300 स्थान पर उस महिला को मात्र ₹200 वापस किए थे ।अब दुकानदार को भी धीरे-धीरे याद आ रहा था और उसने उस महिला को सो रुपए का नोट दे दिया। जिसे लेकर वर आँसू पोंछती हुई अपने घर चली गई। मैं उससे बस इतना कुछ पाया कि उस के पति क्या करते हैं? उसने मुस्कुराती उत्तर दिया- अखबार बेचते हैं। ऐसी देवी को मेरा प्रणाम है। जिसे ₹500 के नोट की जगह अपनी मेहनत का ₹१०० का नोट अधिक मूल्यवान लगा। दुकानदार ने मेरा नोट धन्यवाद के साथ वापस किया और काफी कोशिश करने के पश्चात भी महिला को दिये ₹१00 भी नहीं लिये जिन्हें मैं देना चाहता था।
एम एल शर्मा( कल्याण मैगजीन के द्वारा सच्ची घटना पर आधारित)

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