/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: गीता माधुर्य अध्याय 1 का शेष

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

गीता माधुर्य अध्याय 1 का शेष

                   गीता माधुर्य अध्याय 1 का शेष


 कौरव सेना के बाजे बजने के बाद पांडव सेना के बाजे बजने चाहिए थे पर उस सेना को कोई आज्ञा नहीं मिली। तब सफेद घोड़ों से युक्त महान रथ पर बैठे हुए भगवान श्री कृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक और अर्जुन ने देवदत्त नामक दिव्य शंख को बड़ी जोर से बजाया। उसके बाद भीम ने पाैण्ड्र नामक, युधिष्ठिर ने अनंत विजय नामक, नकुल ने सुघोष नामक और सहदेव ने मणिपुष्पक नामक अलग अलग शंख बजाये
फिर और किसने शंख बजाये? 
हे राजन्! पांडव सेना के श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज, महारथी शिखंडी, तथा धृष्टधुम्न, राजा विराट, अजय सत्यकि, राजा द्रुपद, द्रोपदी के पांचों पुत्र और महाबाहु सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु - इन सभी महारथियों ने अपने-अपने शंख बजाएं।
पांडव सेना की उस शंख ध्वनि का क्या परिणाम हुआ? 
पांडव सेना की उस शंखो की ध्वनि ने आकाश और पृथ्वी को गुँजाते हुए अन्याय पूर्वक राज्य हड़पने वाले कौरवों के ह्दय विदीर्ण कर दिए।
शंख बजाने के बाद पांडवों ने क्या किया संजय?

है महीपते! शंखो के बजने के बाद युद्ध आरंभ होने के समय आप के संबंधियों(कौरवों) को देखकर कपिध्वज अर्जुन ने अपना गांडीव धनुष उठा लिया और अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण से बोले कि 'हे अच्युत! आप मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कर दीजिए।'
रथ को बीच में क्यों खड़ा करूं अर्जुन? 
मैं इस रणभूमि में खड़े हुए युद्ध की इच्छा वाले शूरवीरों को देख लूं कि मुझे किन किन के साथ युद्ध करना है। यहां युद्ध में जो यह  राजा लोग दुर्योधन का प्रिय करने की इच्छा से इकट्ठे   हुए है, उनको भी मैं देख लूं।
अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान ने क्या किया संजय  
संजय बोले - हे राजन! निद्राविजयी अर्जुन के ऐसा कहने पर अंतर्यामी भगवान श्री कृष्ण ने दोनों सेनाओं के मध्य भाग में पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के सामने तथा संपूर्ण राजाओं के सामने रथ को खड़ा करके कहा कि 'हे पार्थ! इन इकट्ठे हुए कुरूवंशियों को देख'।
भगवान के कहने पर क्या हुआ? 
तब हम दोनों सेना में स्थित पिता, पितामह  आचार्य, मामा  भाई, पुत्र, पौत्र तथा मित्र  ससुर तथा इनके सिवाय अंन्य कई संबंधियों को देखकर अर्जुन अत्यंत कायरता युक्त होकर विषाद करते हुए बोले।
अर्जुन क्या बोले संजय? 
अर्जुन बोले- हे कृष्ण! अपने खास कुटुंबियों को युद्ध के लिए सामने खड़े देख कर मेरे सब अंग शिथिल हो रहे हैं, मुंह सूख रहा है, शरीर में कँपकँपी आ रही है, रोंगटे खड़े हो रहे हैं, हाथों से गांडीव धनुष गिर रहा है और अभी त्वचा भी जल रही है। मेरा मन भ्रमित हो रहा है और मैं खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहा हूं।
इसके सिवा और क्या देख रहे हो अर्जुन?
हे केशव! मैं शकुनों को भी विपरीत दिशा में देख रहा हूं और युद्ध में इन कुटुंबियों को मारकर कोई लाभ भी नहीं देख रहा हूं ।
इनको मारे बिना राज्य कैसे मिलेगा? 
हे कृष्ण! मैं ना तो विजय चाहता हूं, ना राज्य चाहता हूं और ना सुखों को ही चाहता हूं। हे गोविंद! हम लोगों को राज्य से, भोंगों से अथवा जीने से क्या लाभ?
तुम विजय अादि क्यों नहीं चाहते? 
हम जिनके लिए राज्य, भोग और सुख चाहते हैं वही सब के सब लोग अपने प्राणों की और धन की आशा को छोड़कर युद्ध के लिए खड़े हैं।
वह लोग कौन है अर्जुन? 
आचार्य, पिता, पुत्र, पितामह, मामा, ससुर, पुत्र तथा और भी बहुत से संबंधी हैं।
यही लोग अगर तुम्हें मारने के लिए तैयार हो जाए, तो? 
यह भले ही मुझे मार डालें, पर हे मधुसूदन! मुझे त्रिलोकी का राज्य मिल जाए तो भी मैं इन को मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के राज्य के लिए तो कहना ही क्या है?
अरे भैया राज्य   मिलने पर भी तो बड़ी प्रसन्नता होती है क्या तुम उसको भी नहीं चाहते?
 हे जनार्दन! इन धृतराष्ट्र के संबंधियों को, (जो कि हमारे भी संबंधी हैं) मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारने से तो हमें पाप ही लगेगा। इसलिए हे माधव!इन धृतराष्ट्र- संबंधियों को हम मारना नहीं चाहते; क्योंकि हे माधव! अपने कुटुंबियों को मारकर हम कैसे सुखी हो सकते हैं।
यह तो तुम्हें मारने के लिए तैयार ही हैं, तुम ही पीछे क्यों हट रहे हो? 
महाराज! इन को तो लोभ के कारण विवेक - विचार लुप्त हो गया है, इसलिए यह दुर्योधन आदि कुल के नाश से होने वाले दोष को और मित्र द्रोह से होने वाले पाप को नहीं देख रहे हैं। तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से होने वाले दोष को जानने वाले हम लोगों को तो इस पाप से बचना ही चाहिए।
अगर कुल का नाश हो भी जाए तो क्या होगा? 
कुल का नाश होने पर सदा से चले आए कुलधर्म, कुल परम - परंपरा नष्ट हो जाते हैं।
कुल धर्म के नष्ट होने पर क्या होता है  
कुलधर्म के नष्ट होने पर संपूर्ण कुल में अधर्म फैल जाता है। अधर्म के फैल जाने से क्या होता है? 
अधर्म के फैल जाने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं।
स्त्रियोंके  दूषित होने से क्या होता है?
स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर पैदा होता है।
वर्णसंकर  पैदा होने से क्या होता है? 
यह वर्णसंकर कुलघातियों( कुल का नाश करने वालों) को और संपूर्ण कुल को नर्क में ले जाने वाला होता है तथा पिंड और पानी (श्राद्ध- तर्पण) ना मिलने से उनके पितर भी अपने स्थान से गिर जाते हैं।इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषों से कुल घाटियों के सदा से चलते आए कुल धर्म और जाति धर्म - - दोनों नष्ट हो जाते हैं।
जिनके कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, उन मनुष्य का क्या होता है?
हे जनार्दन! उन मनुष्य को बहुत समय तक नरक में निवास करना पड़ता है। ऐसा हम सुनते आए हैं,।
युद्ध के परिणाम को जब तुम पहले से ही जानते हो तो फिर युद्ध  के लिए तैयार क्यों हुए? 
यही तो बड़े आश्चर्य और खेद की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो कि राज्य और सुख के लोभ से अपने कुटुंबियों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं। अब तुम क्या करना चाहते हो? 
मैं अस्त्र-शस्त्र छोड़कर युद्ध से हट जाऊंगा। अगर मेरे द्वारा ऐसा करने पर भी हाथों में शस्त्र लिये दुर्योधन आदि मुझे मार दे तो वह मारना भी मेरे लिए बड़ा हितकर होगा।
ऐसा कहने के बाद अर्जुन ने क्या किया संजय? 
संजय बोले- ऐसा कहकर शौक से व्याकुल मन वाले अर्जुन ने बाण सहित धनुष का त्याग कर दिया औरत के मध्य भाग में बैठ गए।
पहला अध्याय समाप्त
॥ जय श्री कृष्ण॥

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