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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

मां का एक मंदिर जहां अखंड ज्योति से टपकता है कि केसर

मां का एक मंदिर जहां अखंड ज्योति से टपकता है केसर


भारत में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसे हैं जो अपने चमत्कारों और रहस्यों की वजह से ख़ासा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। धर्म के नाम पर होने वाले चमत्कारों को कई बार अंधविश्वास का नाम भी दिया जाता है, लेकिन विशेष रूप कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो वास्तव में अपने चमत्कारों की वजह से वैज्ञानिक तथ्यों को भी झूठा साबित कर देते हैं। आज हम आपको मुख्य रूप से माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ चैबीसों घंटे अखंड ज्योत जलती है और उस ज्योत से केसर टपकता है। आइये जानते हैं कहाँ स्थित है ये चमत्कारी मंदिर और क्या है इसके पीछे का रहस्य।

आई जी माता के मंदिर में ज्योति से केसर टपकता है

आपको बता दें कि जहाँ आमतौर पर दीये से कालिक टपकती है वहीं राजस्थान के जोधपुर के निकट स्थित बिलाड़ा नाम के गांव में आई जी माता के मंदिर में अखंड ज्योत से केसर टपकता है। यहाँ आने वाले भक्तों का ऐसा मानना है इस ज्योत से निकलने वाले केसर को आँखों में डालने से आँख से संबंधित सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है। आई जी माता मुख्य रूप से राजस्थान के सीरवी समाज की आराध्य देवी हैं। बता दें कि, राजस्थान के बिलाड़ा स्थित इस मंदिर को मुख्य रूप से देश का सबसे चमत्कारी मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में जिस देवी की मूर्ति स्थापित है उन्हें देवी दुर्गा का ही रूप माना जाता है। इस मंदिर का नाम आई जी माता इसलिए पड़ा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि एक बार देवी माँ स्वयं यहाँ आकर रुकी थी। यहाँ आकर देवी माँ ने अपने भक्तों को ज्ञान दिया था और उसके बाद वो हमेशा के लिए अखंड ज्योति में विलीन हो गयी थी। इसलिए इस मंदिर में आज भी अखंड ज्योत जलती आ रही है जिसकी ख़ासियत ये है कि इससे कालिक नहीं बल्कि केसर टपकता है।

इस मंदिर से जुड़े कुछ महत्वूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं

इस मंदिर के बार में ऐसा कहा जाता है कि, ये आज से करीबन पांच सौ वर्ष पुरानी मंदिर है।
यहाँ माता के अखंड ज्योत के दर्शन के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में भक्त आते हैं।
आई जी माता के इस मंदिर में रोजाना घी से देवी माँ के लिए अखंड ज्योत जलाई जाती है।
नवरात्रि के नौ दिनों में मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है। इस दौरान यहाँ दर्शन के लिए आने वाले भक्तों की संख्या भी दोगुनी हो जाती है।
मंदिर का मुख्य परिसर विशेष रूप से ढाई हज़ार स्क्वायर फ़ीट में फैला है।
बेहद चमत्कारी इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।
मंदिर परिसर में आई जी माता को समर्पित एक छोटी झोपड़ी का भी निर्माण किया गया है, ऐसी मान्यता है कि देवी माँ यहाँ आकर विश्राम करती हैं। 

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

महामृत्युंजय मंत्र और लघु मृत्युंजय मंत्र के लाभ

महामृत्युंजय मंत्र और लघु मृत्‍युंजय मंत्र के जप का लाभ



महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है.शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित ये महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है.स्वयं या परिवार में किसी अन्य व्यक्ति के अस्वस्थ होने पर मेरे पास अक्सर बहुत से लोग इस मन्त्र की और इसके जप विधि की जानकारी प्राप्त करने के लिए आते हैं. इस महामंत्र के बारे में जहांतक मेरी जानकारी है,वो मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.

|| महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

>ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात् !!

||संपुटयुक्त महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

||लघु मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ। किसी दुसरे के लिए जप करना हो तो-ॐ जूं स (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए अनुष्ठान हो रहा हो) पालय पालय स: जूं ॐ

|| महा मृत्‍युंजय जप की विधि ||

महा मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय मंत्र की 11 लाख है.मेरे विचार से तो कोई भी मन्त्र जपें,पुरश्चरण सवा लाख करें.इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है.जप सुबह १२ बजे से पहले होना चाहिए,क्योंकि ऐसी मान्यता है की दोपहर १२ बजे के बाद इस मंत्र के जप का फल नहीं प्राप्त होता है.आप अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किसी भी शिवलिंग का पूजन कर जप शुरू करें या फिर सुबह के समय किसी शिवमंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें और फिर घर आकर घी का दीपक जलाकर मंत्र का ११ माला जप कम से कम ९० दिन तक रोज करें या एक लाख पूरा होने तक जप करते रहें. अंत में हवन हो सके तो श्रेष्ठ अन्यथा २५ हजार जप और करें.ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, रोग, जमीन-जायदाद का विवाद, हानि की सम्भावना या धन-हानि हो रही हो, वर-वधू के मेलापक दोष, घर में कलह, सजा का भय या सजा होने पर, कोई धार्मिक अपराध होने पर और अपने समस्त पापों के नाश के लिए महामृत्युंजय या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया या कराया जा सकता है.

|| महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ ||

त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वालायजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देयसुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधितपुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णतावर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है,स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा मालीउर्वारुकम= ककड़ीइव= जैसे, इस तरहबंधना= तनामृत्युर = मृत्यु सेमुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति देंमा= नअमृतात= अमरता, मोक्ष

||महा मृत्‍युंजय मंत्र का अर्थ ||

समस्‍त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्‍व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।|| इस मंत्र का विस्तृत रूप से अर्थ ||हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं,उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए.जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

|| महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव ||

मेरे विचार से महामृत्युंजय मंत्र शोक,मृत्यु भय,अनिश्चता,रोग,दोष का प्रभाव कम करने में,पापों का सर्वनाश करने में अत्यंत लाभकारी है.महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना या करवाना सबके लिए और सदैव मंगलकारी है,परन्तु ज्यादातर तो यही देखने में आता है कि परिवार में किसी को असाध्य रोग होने पर अथवा जब किसी बड़ी बीमारी से उसके बचने की सम्भावना बहुत कम होती है,तब लोग इस मंत्र का जप अनुष्ठान कराते हैं.
ऊँ नमः शिवाय ।

बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का

                  बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का


एक सेठ के यहां नौकर काम करता था 1 दिन नौकर अनुपस्थित हो गया, तो सेठ ने सोचा इसकी तनख्वाह बढ़ा देता हूं तो यह रोज काम पर आने लगेगा । जब महीने की आखिरी तारीख को सेठ ने तनख्वाह बढ़ा कर दी ,तो उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा चुपचाप तनख्वाह ले ली। कुछ टाइम बाद उसने फिर छुट्टी कर ली , तो सेठ को बहुत गुस्सा आया उसने सोचा कि इस पर कोई असर नहीं हुआ ,मैं इस की तनख्वाह बढ़ाई फिर भी इसने छुट्टी कर ली। तो उसने  सोचा ,मैं इसकी तनख्वाह कम कर देता हूं ।महीने के आखिरी तारीख को जब सेठ में तनख्वाह कम कर ,कर दी तो भी उस व्यक्ति ने चुपचाप ले ली, कुछ नहीं कहा तो सेठ को बहुत हैरानी हुई ,उसने उससे पूछा कि मैंने जब तुम तुम्हारी तनख्वाह बढ़ाई तब भी तुमने कुछ नहीं कहा और जब कम करदी, तब भी तुमने कुछ नहीं कहा तो नौकर बोला मैंने जब पहले छुट्टी ली थी तो मेरे घर मे बच्चे ने जन्म लिया था तो मैंने सोचा ईश्वर ने उसके भाग्य का पैसा मुझे दे दिया, और जब आप ने दूसरी बार मेरी तनख्वाह कम कर दी, उस समय मैंने जब छुट्टी ली तो मेरी मां का देहांत हो गया था तो मैंने सोचा मां अपने भाग्य का पैसा अपने साथ ले गई । तो इसमें चिंता किस बात की। मेरा ईश्वर मेरा ध्यान रखता है तो फिर मैं क्यों चिंता करूं। मेरा ईश्वर मेरी तनख्वाह का सब हिसाब रखता है।
 बहुत मजबूत रिश्ता है मेरा और मेरे परमेश्वर का,ज्यादा मैं मांगता नहीं और कम वह देता नहीं ।

।।जय श्री राधे ,जय सियाराम।।

शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

श्री राधा के 32 प्रमुख नाम

 श्री राधा जी के 32 प्रमुख नाम जिनका श्रवण करने से सभी दुख ~कष्ट दूर हो जाते हैं-


  1. मृदुल भाषणी राधा राधा 
  2. सौंदर्य राषिणी  राधा राधा 
  3. परम पुनीता राधा राधा 
  4. नित्य नवनीता राधा राधा 
  5. रास विलासिनी राधा राधा
  6.  दिव्य सुवासिनी राधा राधा 
  7. नवल किशोरी राधा राधा 
  8. अति ही भोरी राधा राधा 
  9. कंचन वर्णी राधा राधा 
  10. नित्य सुख कर्णी राधा राधा
  11.  सुभग भामिनी  राधा राधा
  12.  जगत स्वामिनी राधा राधा
  13.  कृष्ण आनंदनी राधा राधा
  14.  आनंद कन्दिनी राधा राधा
  15.  प्रेम मूर्ति राधा राधा 
  16. रस आपूर्ति राधा राधा
  17.  नवल बृजेश्वरी राधा राधा
  18.  नित्या रासेश्वरी राधा राधा
  19.  कोमल अंगनी राधा राधा
  20.  कृष्ण संगिनी राधा राधा 
  21. कृपा वर्षिनी राधा राधा
  22.  परम हर्षिनी राधा राधा 
  23. सिंधु स्वरूपा राधा राधा
  24.  परम अनूपा राधा राधा
  25.  परम हितकारी राधा राधा 
  26. कृष्ण सुख कारी राधा राधा
  27.  निकुंज स्वामिनी राधा राधा 
  28. नवल भामिनी राधा राधा
  29.  रास रासेश्वरी राधा राधा
  30.  स्वंय परमेश्वरी राधा राधा 
  31. सकल गुणीता राधा राधा 
  32. रसिकिनी पुनीता राधा राधा

कर जोरी वंदन करूं मैं नित नित करू प्रणाम, रचना से गाती /गाता रहूँ -श्री राधा राधा नाम!!
जो भी श्रद्धा पूर्वक श्री राधा नाम का आश्रय लेता है वह श्रीकृष्ण का स्नेह पाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्री विष्णु जी ने कहा है कि जो व्यक्ति अनजाने में ही श्री राधा नाम का उच्चारण कर लेता है उसके आगे मैं स्वयं सुदर्शन चक्र लेकर चलता हूं और उसके पीछे भगवान शिव त्रिशूल लेकर चलते हैं उसके दाएं ओर इंद्र वज्र लेकर चलते हैं और वरुण देव छत्र लेकर चलते हैं।
!!जय जय श्री राधे!!

बुधवार, 4 सितंबर 2019

19 ऊँटो की कहानी हम पर आधारित हैं।

                        *19 ऊंट की कहानी 




एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे।एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी।मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:
मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।
सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?
19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?
सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।
वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।
सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।
19+1=20 हुए।20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।
10+5+4=19
बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।
इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।
सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।
5 ज्ञानेंद्रियाँ-(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)
5 कर्मेन्द्रियाँ-(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)
5 प्राण-(प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान) और 4 अंतःकरण-(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)कुल 19 ऊँट होते हैं।
सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।
और जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के आध्यात्मिक जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।
यह है 19 ऊंट की कहानी...😌🙏🏽
श्री राम।।
         🙏🏽 *ॐ* 🙏🏽

सोमवार, 19 अगस्त 2019

जिसे आप हर ढूंढ रहे हो वह तो आपके अंदर है।

            *कस्तूरी कूंडल बसे**मृग ढूढें वन माहीं*

एक बहुत बड़े महानगर में एक भिक्षु मर गया था। वह जिस जमीन पर तीस वर्षों से भीख मांगता रहा बैठ कर, जहां उसने अपने गंदे चीथड़े फैला रखे थे, और तीस वर्षों की गंदगी फैला रखी थी।

वह मर गया, तो पड़ोस के लोगों ने उसकी लाश को तो फिंकवा दिया। और चूंकि उस भिखारी ने तीस वर्षों तक गंदगी की थी उस जमीन पर, उन्होंने सोचा, इसे थोड़ा खोद कर जरा इसकी जमीन साफ करवा दें।

वे हैरान रह गए।
जहां उन्होंने खोदा वहां खजाने गड़े थे। और वह भिखारी उन्हीं के ऊपर बैठ कर जीवन भर भिक्षा का पात्र फैलाए बैठा रहा और भीख मांगता रहा।

क्या अर्थ था उस खजाने का जो नीचे गड़ा था? कोई भी नहीं। वह न होने के बराबर था। वह भिखारी और हममें बहुत भेद नहीं।

जिस जमीन पर हम खड़े हैं वहीं बहुत कुछ गड़ा है। जहां हम हैं वहां बहुत कुछ है। ऐसे खजाने हैं जिन्हें पाकर आदमी परम आनंद को उपलब्ध हो जाता है। ऐसा सौंदर्य है, ऐसा सत्य है, ऐसा संगीत है कि जिसमें डूब कर जीवन का अर्थ उपलब्ध हो जाता है।

लेकिन उस तरफ आंख उठनी चाहिए।लेकिन उसके होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह दिखाई पड़ना चाहिए,मगर वह दिखाई नहीं पड़ता,अगर वह दिखाई नही पड़ता, तो हम  भिखमंगे भीख मांगे चले जाएंगे और हम भीख मांगते हुए समाप्त भी हो सकते हैं।

लेकिन उस तरफ आंख तभी उठ सकती है, जब बाहर की तरफ से आंख का धोखा टूट जाए, उसके पहले उसकी तरफ आंख नहीं उठ सकती।

कौन सी चीज है जो रोके हुए है उस तरफ आंख उठने से? कौन सी बात है जो अटकाए हुए है?

एक बात, और केवल एक ही बात, और वह यह कि शायद यह आशा कि बाहर मैं कुछ पा लूं--संपत्ति, शक्ति, पद, वैभव--कुछ पा लूं बाहर तो तृप्ति हो जाएगी मेरी। यह आशा और यह भ्रम भीतर आंख नहीं उठने देता।

चौबीस घंटे, चौबीस घंटे आंख अटकी रहती है कहीं बाहर। फिर यह आंख बाहर भटकते-भटकते परेशान हो जाती है, थक जाती है, बुढ़ापा आ जाता है।

तो हम देखते हैं बूढ़े आदमियों को मंदिरों में जाते, संन्यासियों की बातें सुनते, शास्त्र पढ़ते। थक जाती है आंख, बाहर से ऊब जाती है, परेशान हो जाती है, तो फिर हम सोचते हैं अब धर्म की शरण, क्योंकि मौत आती है करीब और वह जीवन तो हमने गंवा दिया।

लेकिन तब भी हम बाहर ही खोजते हैं। जीवन भर की गलत आदत पीछा नहीं छोड़ती। तब भी हम किसी मंदिर में खोजते हैं जो बाहर है। और किसी गुरु के चरणों में खोजते हैं, वह भी बाहर है। और किसी शास्त्र में खोजते हैं, वह भी बाहर है। और हिमालय पर चले जाएं और संन्यासी हो जाएं, वह सब होना बाहर है।

वह जीवन भर की जो गलत आदत थी बाहर खोजने की, यद्यपि यह दिखाई पड़ गया कि बाहर नहीं मिलता,

लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर भी हम बाहर ही खोजते हैं। पहला भ्रम टूट जाता है तो दूसरा भ्रम उसकी जगह खड़ा हो जाता है।
सवाल यह नहीं है कि बाहर आप धन खोजते हैं, अगर आप धर्म भी बाहर खोजते हैं तो बात वही है, कोई फर्क न हुआ।

सवाल यह नहीं है कि बाहर आप शक्ति खोजते हैं, पद खोजते हैं, राज्य खोजते हैं, अगर ईश्वर को भी बाहर खोजते हैं कोई फर्क न हुआ, बात वहीं की वहीं है।

जो बाहर खोजता है उसकी आंख भीतर नहीं पहुंच पाती, फिर चाहे बाहर वह कुछ भी खोजता हो। एक संन्यासी मोक्ष खोज रहा है कि मरने के बाद मोक्ष चला जाएगा, बाहर खोज रहा है।

एक आदमी परमात्मा को खोज रहा है जगह-जगह, जगह-जगह, बाहर खोज रहा है। बाहर की खोज संसार है। फिर चाहे वह खोज किसी भी चीज की क्यों न हो। भीतर की खोज धर्म है।
भीतर क्या खोजेंगे? भीतर का तो हमें कोई पता ही नहीं, खोजेंगे क्या? ईश्वर को खोजेंगे? धन को खोजेंगे? क्या खोजेंगे भीतर? भीतर तो unknown है, अज्ञात है, क्या खोजेंगे? भीतर का हमें कोई पता नहीं, इसलिए हम क्या खोजेंगे?

बस एक ही बात हो सकती है, बाहर की खोज व्यर्थ दिखाई पड़ जाए तो बाहर से आंख अपने आप भीतर लौटनी शुरू हो जाएगी। जहां हमें सार्थकता दिखाई पड़ती है वहां हमारी आंख अटकी रहती है। वहीं हमारी आंख लगी रहती है जहां हमें अर्थ दिखाई पड़ता है, मीनिंग दिखाई पड़ता है। अगर वह मीनिंग दिखाई पड़ना बंद हो जाए कि वहां नहीं है अर्थ, आंख बदल जाएगी, फौरन बदल जाएगी। जहां हमें दिखाई पड़ता है कि अर्थ है वहीं हम बंधे रह जाते हैं।

-ओशो

मंगलवार, 6 अगस्त 2019

सन्तान के रूप में कौन आता है?

                            कर्म - भोग


 पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता - पिता , भाई - बहन , पति - पत्नि , प्रेमी - प्रेमिका , मित्र - शत्रु , सगे - सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं , सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।

                 *सन्तान के रुप में कौन आता है ?*

 वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --

  *ऋणानुबन्ध  :-* पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो , वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा , जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।

 *शत्रु पुत्र  :-* पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता - पिता से मारपीट , झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।

*उदासीन पुत्र  :-* इस प्रकार की सन्तान ना तो माता - पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस , उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता - पिता से अलग हो जाते हैं ।

 *सेवक पुत्र  :-* पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है , वही तो काटोगे । अपने माँ - बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी , वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।

आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।

इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे , उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये ।

ज़रा सोचिये , "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये , वो कितना सोना - चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना - चाँदी , धन - दौलत बैंक में पड़ा रह गया , समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है , खुद ही खा - कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ , वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"

  मैं , मेरा , तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा , कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ *नेकियाँ* ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके *नेकी* करो *सतकर्म* करो ।

                     *📙 श्रीमद्भभगवतगीता।*

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