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रविवार, 19 जुलाई 2020

भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।


भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।
गुरूदेव मलूकापीठेश्वर,वृन्दावन

भगवान का सिमरन करो पद वंदन करो तो सारे विघ्न नष्ट हो जाते हैं। गुरु का पद वंदन करो तो भी सारे कष्ट, नष्ट हो जाते हैं। भक्तों का पद वंदन करो, तो भी सारे कष्ट, विघ्न, नष्ट हो जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कि आमिर के राजा माधव सिंह छोटे भाई थे उनकी पत्नी श्री रत्नावती जी, पहले तो उनकी भक्ति का विरोध किया लोगों ने। लेकिन फिर बाद में उनकी भक्ति का लोहा मान लिया लोगों ने, और परिवार वालों ने, कि यह भक्ति दिखावा नहीं है सच्ची भक्ति है। इसके बाद मान सिंह और माधव सिंह दोनों कहीं नोका में बैठकर कहीं जा रहे थे और नोका आपद् ग्रस्त हो गई लगा कि दोनों डूब जाएंगे। तो मानसिंह ने कहा कि अब क्या करना चाहिए,तो कहा कि आपकी अनुज बधू रत्नावती भक्त है और सिद्ध कोटि की भक्त हैं, उनका स्मरण करें उनका पद वन्दन करें, उनके नाम की दुहाई दे,नैया पार लग जाएगी।तो सचमुच में रत्नावती जी के नाम की दुहाई की, पद वंदन किया, सिमरन किया तो नासे विघ्न अनेक।मान सिंह जी ने इच्छा व्यक्त की कि मैं उनका दर्शन करना चाहता हूं। आ गए दर्शन करने के लिए और दर्शन करके इनको बड़ी प्रसन्नता हुई और बढ़ाई करने लगे तो रत्नावती जी ने कहा इससे मेरी कोई विशेषता नहीं थी, ठाकुर जी की कृपा और  भक्ति महारानी की कृपा थी। जिनके हृदय में भक्ति महारानी आकर विराजमान हो जाए उनका माया कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है 

बुधवार, 15 जुलाई 2020

परमार्थ के पत्र पुष्प भाग 2

( दादा गुरु श्री गणेश दास भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से कुछ प्रवचन हमारे जीवन का उद्धार करने के लिए)



सत्संग करते रहोगे,सत्संग में आते-जाते रहोगे, सत्संग करते-करते सब कुछ का ज्ञान हो जाएगा। सत्संग से जुड़े रहो।सत्संग से जुड़े रहोगे तो  आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? इस बात का ज्ञान आपको हो जाएगा। आपके कर्तव्य का ज्ञान, आपका क्या कर्तव्य है?आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। सत्संग में आते-आते तरह-तरह की कथाएं आपको सुनने को मिलेंगीं। उससे आपको सब कुछ ज्ञान हो जाएगा। हम भगवान के शरण में हैं। अहंकार का त्याग होना जरूरी है।अहंकार का त्याग, जिसमें मैं राजा हूं,मैं धनी -मानी हूं,मैं बलवान हूं ,मैं रूपवान हूं। इस तरह से जाति में, उत्तम जाति में हूं। यह सब अहंकार छोड़ने के लिए होते हैं।एक अहंकार रहना चाहिए केवल, कि मैं भगवान का दास हूं। यह अहंकार नहीं छोड़ा जाएगा। वैष्णव के लक्षण, वैष्णव या भक्तों के लक्षण सभी रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत सभी में बड़े-बड़े, लंबे चौड़े वाक्य में कहे गए हैं। मुख्य चार लक्षण श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।दया में सब धर्म आ जाते हैं। जिसके हृदय में दया होगी ,वह किसी की चोरी नहीं करेगा क्योंकि चोरी करेगा,तो उसे उसे लगेगा कि किसी को कष्ट होगा।किसी को कष्ट ना देना ,यह भक्तों का लक्षण है। सब के ऊपर दया करना प्राणी मात्र के ऊपर दया करना, व्यवहार करना है।जगत में सब प्रकार का व्यवहार करना है, लेना है, देना है। लेकिन उसमें दया रहनी चाहिए। दया होगी तो हम दूसरों को ठगेंगे नहीं। उचित व्यवहार करेंगे। धोखा नहीं देंगे क्योंकि धोखा देने से उसके मन में कष्ट हो जाएगा, इस प्रकार दया पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह वैष्णव का मुख्य लक्षण है। चलते फिरते पैर के नीचे जीव मर जाते हैं, या अनजानें में हो जाता है। तो सायः काल को या प्रातः काल को भगवान के आगे नमस्कार करने से, कीर्तन करने से ,वह अपराध दूर हो जाता है। जानबूझकर के हत्या नहीं करनी चाहिए और अनजाने में जो हो जाती है तो भगवान का नाम लेने से, प्रणाम करने से वह अपराध  दूर हो जाता है।जीवों के प्रति दया का भाव बना रहना चाहिए। भगवान के नाम में रुचि रखना,चलते-फिरते उठते बैठते जिस भी नाम में आपको रुचि है, उसका जाप करते रहना चाहिए। गीता का कहना है कि भगवान ने अर्जुन को कहा तुम युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी करो। तो अर्जुन ने कहाँ कि दोनों काम तो नहीं हो सकते हैं, युद्ध भी करूँ और स्मरण भी करूँ। दोनों काम अगर नहीं हो सकते तो कृष्ण नहीं कहते। तो जो कृष्ण ने अर्जुन को कहा वह सिर्फ अर्जुन को ही नहीं कहा, हम सब को भी कहा है कि संसार में रहकर जाप भी करों। यह संसार भी एक प्रकार का युद्ध है संसार का व्यापार ,व्यवहार जो है। यह एक युद्ध ही है। इसको करते-करते भी भगवान का नाम जपते रहना चाहिए। नाम के वियोग होने पर दुख होना, यह भक्तों का दूसरा लक्षण है ।भगवान का ज्यादा से ज्यादा नाम लेते रहे। मनसे, वाणी से स्वयं भी लेना चाहिए और दूसरा कोई सामने पड़ जाए तो भक्ति का दान करना चाहिए, भक्ति का दान क्या है? सामने कोई आपके आ गया- श्री कृष्ण का नाम लिया, जय श्री कृष्ण, जय श्री सीताराम,जय श्री राधे, तो आपने एक नाम का दान कर दिया।नाम का दान किया तो, तो आपको कोई दुख दरिद्रता नहीं आएगी।

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

प्रभु से प्रार्थना करने पर लाभ




श्री राधे, पाप का रास्ता छोड़ कर के हमें पुण्य के रास्ते पर चलना चाहिए और चलने का हमारा सामर्थ्य नहीं है। अगर हम कहें कि हम से नहीं चला जा सकता, हम से नहीं बन सकता। जाने अनजाने पाप होते रहते हैं। इसके लिए हमें भगवान से प्रार्थना करते रहने चाहिए। जो हमारे बस की नहीं रह जाती है उसके लिए हम क्या करते हैं? भगवान से प्रार्थना करते हैं। कोई काम है, हमारे करे से नहीं हो रहा है। हमारे बनाए से नहीं बन रहा है। तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ठाकुर जी कृपा करें ,हमारा काम बन जाए। इसी तरह से सच के रास्ते पर, पुण्य के रास्ते पर, चलते हम से नहीं बन रहा है। तो पाप के रास्ते से हम बच नहीं पा रहे हैं इसके वास्ते भगवान से हमें प्रार्थना करनी चाहिए ।हर समय हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। ईश्वर हमें पाप के रास्ते से चलने पर बचाएगा। प्रार्थना में अहंकार नहीं होना चाहिए, प्रार्थना के समय दीनता होनी चाहिए। प्रार्थना की बहुत बड़ी महिमा है ।इतनी महिमा है कि पूजा पद्धति में अनंत उपचार हो जाते हैं।राजा लोग अनंत उपचार से पूजा करते हैं लेकिन साधारण इंसान पांच उपचारों से ही पूजा कर देता है। पाँच ही वस्तु रहती है- जल चढ़ा दिया, चंदन चढ़ा दिया, फूल चढ़ा दिया, आरती कर ली, भोग लगा दिया। इन पांच उपचारों के साथ या षोडशोपचारों के साथ या राज उपचार के साथ सब के साथ, अगर आप प्रार्थना नहीं करें, तो भगवान नहीं मानेंगे आप लोग सामने रख दें और कुछ नहीं बोले, ठाकुर जी नहीं खाएंगे। बिना प्रार्थना के भगवान किसी भी उपचार को चाहे भोग हो, जल हो, चंदन हो, बिना प्रार्थना के ईश्वर स्वीकार नहीं करता है। और मंत्र पढ़ने की जो विधि है वह प्रार्थना ही है। पूजा करते समय वैदिक, तांत्रिक, अलौकिक, सब प्रकार की पूजा मंत्र द्वारा की जाती है और इसे ईश्वर स्वीकार करता है। आपको पुराणों की भाषा में, मंत्रों की भाषा में नहीं आता है। तो अपनी भाषा में प्रार्थना करो, कि प्रभु यह जो भी मैं आपको दे रहा हूं। अर्पण कर रहा हूं यह आप ही की वस्तु है। आप इसे स्वीकार करो।भगवान को प्रणाम करते समय,भगवान से कहिए कि मैं आपका हूं।आप मुझे स्वीकार कर लीजिए। इस प्रकार कहने पर भगवान स्वीकार कर लेते हैं। जीव को जब भगवान स्वीकार करते हैं तो वह पवित्र हो जाता है। तो प्रार्थना करनी चाहिए ।अगर आपके पास फल, फूल ,भोग  चंदन कुछ नहीं है। केवल एक प्रार्थना है, तो भगवान से प्रार्थना कीजिए, तब भी भगवान प्रसन्न हो जाते हैं ।इसलिए प्रार्थना का बहुत बड़ा महत्व है।
(हमारे दादा गुरु भक्त माली जी महाराज मलूक पीठ वृंदावन के श्री मुख से)

मंगलवार, 5 मई 2020

दुर्गा कवच का पाठ हिदी में

                          दुर्गा कवच (हिंदी में )

आजकल पूरे विश्व में करोना जैसी महामारी फैली हुई है और सभी परेशान है, हताश है अपने अपने तरीके से सभी पराक्रम कर रहे हैं, इस महामारी  से लड़ रहे हैं ।इसी के साथ ही हमें दुर्गा माता कवच का पाठ नित्य करना चाहिए क्योंकि वह हमारी मां है, अंबे मां, जगदंबे मां है, वह हमारी पुकार को जरूर सुनेगी और हमारी इस महामारी से हमारी रक्षा करेंगी।
ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है।
 मार्कंडेय जी ने कहा- पितामह, जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो ऐसा कोई साधन मुझे बताइए ।
ब्रह्माजी बोले- ब्राह्मण ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है ।जो गोपनीय से भी परम गोपनीय,पवित्र तथा संपूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है।महामुने! उसे श्रवण करो।। देवी की नौ मूर्तियां हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं। उनके पृथक पृथक नाम बतलाए जाते हैं। प्रथम नाम 'शैलपुत्री' दूसरी मूर्ति का नाम 'ब्रह्मचारिणी' हैं . तीसरा स्वररुप 'चंद्रघंटा' के नाम से प्रसिद्ध है. । चौथी मूर्ति को 'कुष्मांडा' कहते हैं ,पांचवी दुर्गा का नाम 'स्कन्दमाता' है, देवी के छठे रूप को' कात्यायनी' कहते हैं सातंवा 'कालरात्रि' और आठवां स्वरूप 'महागौरी' के नाम से प्रसिद्ध है। नवीदुर्गा का नाम 'सिद्धिदात्री' है ।यह नाम वेदभगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ।जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो। रणभूमि में शत्रु से घिर गया हो,तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हैं उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। युद्ध के समय, संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई भी विपत्ति नहीं आती।उन्हें शोंक, दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती। जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है उनका निश्चय ही अभुदय होता है देवेश्वरी जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुम निसंदेह रक्षा करती हो। चामुंडा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैसें  सवारी करती हैं। ऐंद्री का वाहन एरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरूड़ पर आती हैं ।माहेश्वरी वृषभ पर आसन जमाती हैं कुमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की पत्नि लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं ,और हाथों में कमल धारण किए हैं।वृषभ पर सवार ईश्वरी देवी ने श्वेत रुप धारण कर रखा है । ब्राह्मणी देवी हंस पर बैठी हुई है और  विभिन्न प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। इस प्रकार यह सभी माताएं सब प्रकार की योग शक्तियों से संपन्न है इनके सिवा और भी बहुत सी देवियां है जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं।यह संपूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुई है और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती है।यह शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल  खेतक, और तोमर ,परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल उत्तम धनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं। देत्यो के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभय दान देना और देवताओं का कल्याण करना।यही उनके अस्त्र- शस्त्र धारण करने का उद्देश्य है। कवच का पाठ आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए (महान रूद्र रूप, अत्यंत गूढ़ पराक्रम,महान बल और महान उत्साह वाली देवी तुम महान भय का नाश करने वाली हो ,तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी और देखना भी कठिन है,शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदंबिके हमारी रक्षा करो)पूर्व दिशा में इंद्र शक्ति हमारी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्णिशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नेऋत्य कोण  खड़गधारण मेरी रक्षा करें। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारनी देवी रक्षा करें। ब्राह्मणी ऊपर से, नीचे की ओर  वैष्णवी हमारी रक्षा करें। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुंडा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजय पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें। वाम भाग में अजीता और दक्षिण भाग में अपराजिता मेरी रक्षा करें, उधौतिनी शिखा की रक्षा करें ।उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें। ललाट में माला धारी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। दोनों भवों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें । कानों में द्वारबासिनी रक्षा करें कालिका देवी कपोलो की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करें, नासिका में सुगंधा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें, नीचे की ओठ में अमृत कला और जीव्हा में सरस्वती देवी रक्षा करें, कौमारी दांतो की और चंडिका देवी कंठ प्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोड़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें,भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धारी पृष्ठ वंश मे( मेरूदंड) में रहकर रक्षा करें,कंठ के बाहरी में भाग में नीलग्रीवी और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें, दोनों कंधों में खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की व्रजधारिणी रक्षा करें। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों की अंबिका देवी रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें कुलेश्वरी कुक्षी (पेट)में रहकर रक्षा करें। महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशनी देवी मन की रक्षा करें, ललिता देवी ह्रदय में और शूल धारिणी उदर में रहकर रक्षा करें, नाभि में कामिनी और  गुह्यभाग की वह गुह्येश्वरी रक्षा करें, पूतना और कामिका लिंग और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें।
भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें संपूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें, नारसिंही दोनों घुटनों की और तेजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें, श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासनी पैरों के तलवों में रहकर रक्षा करें, अपनी दाढो़ के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दृंष्टा कराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशनी देवी केशो की रक्षा करें रोमावलियों के छिद्रों में कोबेरी और त्वचा की बागेश्वरी देवी रक्षा करें ,पार्वती देवी रक्त,मज्जा, वसा ,मांस  हड्डी और मेद की रक्षा करें ,आंतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी देवी रक्षा करें ,मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें, नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें, जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता वह अभेध्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
ब्राह्मणी आप मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्म धारणी देवी मेरे अहंकार मन और बुद्धि की रक्षा करें, हाथ में व्रज धारण करने वाली व्रजहता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान,वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें, रस,रूप ,गंध ,शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें, तथा सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।वाराही आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी धर्म की रक्षा करें, तथा  चक्रधारण करने वाली देवी यश ,कीर्ति, लक्ष्मी ,धन तथा विद्या की रक्षा करें, इंद्राणी आप मेरे गोत्र की रक्षा करें ।चण्डिके आप पशु और पक्षियों की रक्षा करें ,महालक्ष्मी पुत्र और पुत्री की रक्षा करें ,भैरवी पत्नी/ पति की रक्षा करें, मेरे पथ की सुपथा और मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें ,राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें। तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।
देवी ! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब आपके द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजय शालिनी और पाप नाशिनी हो। यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी ना जाए । कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहां जहां भी जाता है ,वहां-वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करता है, उस उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान  ऐश्वर्य का भागी होता है। सब ओर से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथागत तीनो लोक में पूजनीय होता है। देविका यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम पूर्वक तीनों संध्याओ के समय श्रद्धा के साथ का पाठ करता है ,उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता है।
इसलिए आप सब से विन्रम निवेदन है कि प्रतिदिन इस कवच का पाठ अवश्य करें।

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप

                   (  ढलती हुई शाम होते हैं मां बाप, संभल ना कहीं तुम्हारे जीवन में रात ना हो जाए?


एक दंपत्ति दिवाली की खरीदारी करने की हड़बड़ी में थे। पति ने पत्नी से जल्दी करने को कहा और कमरे में बाहर निकल गया, तभी बाहर लॉन में बैठी 'मां' पर उसकी नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए पति वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला 'शालू! तुमने मां से पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए? शालिनी बोली, नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा, दो वक्त की रोटी और 2 जोड़ी कपड़े। इसमें पूछने वाली क्या बात है?
 वह बोला 'यह बात नहीं है शालू... मां पहली बार दिवाली पर हमारे घर रुकी हुई है, वरना तो हर बार गांव में ही रहती हैं, तो औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती ।
' अरे, इतना ही मां पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते',झल्लाकर चीखी थी शालू, और कंधे पर हैंड बैग लटकाकर हुए तेजी से बाहर निकल आई।
 सूरज मां के पास जाकर बोला,' मां हम लोग दिवाली की खरीदारी करने के लिए बाजार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो बताइए। माँ बीच में ही बोल पड़ी,' मुझे कुछ नहीं चाहिए ।बेटा- सोच लो कुछ चाहिए, तो बता दीजिए।
 सूरज के बहुत जोर देने पर मां बोली, ठीक है तुम रुको, मैं लिख कर देती हूं ।तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है कहीं भूल ना जाओ। कहकर सूरज की मां अपने कमरे में चली गई और कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्टसूरज को थमा दी। सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, 'देखा मां को भी कुछ चाहिए था ,पर बोल नहीं रही थी। मेरी जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है रोटी और कपड़े के अलावा भी उसे बहुत कुछ चाहिए होता है।
 अच्छा बाबा ठीक है, पहले मैं अपनी जरूरत का सामान लूंगी, बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना। पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली,' अब मैं बहुत थक गई हूं ,मैं कार में एसी चालू करके बैठी हूं। आप मांजी का समान देख लो। अरे चलते हैं ,अच्छा देखता हूं माँ ने इस दिवाली पर क्या मंगवाया है , कहकर मां की लिखी पर्ची जेब से निकालता है ,पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा। जरूर अपने गांव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगवाए होंगे। 'और बनो श्रवण कुमार,'के गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी, यह क्या सूरज की आंखों में आंसू और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते से काँप रहे थे ,पूरा शरीर कांप रहा था।
शालिनी बहुत घबरा गई,' क्या हुआ, ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी मां ने?' कहकर हाथ से पर्ची झपट ली, हैरान थी शालिनी, की इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था... बेटा सूरज! मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो तुम्हारी शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ पल ले आना। ढलती हुई शाम हूं मैं, मुझे गहराते अंधेरे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है ,हर पल पर अपनी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर... जानती हूँ कि टाला नहीं जा सकता ,पूर्ण सत्य है, पर अकेलेपन में बहुत घबराहट होती है। सूरज! तो जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठकर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही, मेरे बुढ़ापे का अकेलापन बांट लिया करो। बिन दीप जलाए ही रोशन हो जाएगी मेरे जीवन की सांझ। कितने साल हो गए हैं बेटा, तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हाथी तेरे सर को सहलाऊँ। एक बार फिर से इतराए हुए मेरा हृदय मेरे अपनों को करीब बहुत करीब पाकर।और  मुस्कुराए और फिर मैं मौत के गले मुस्कुराती हुई लगूँ। क्या पता अगली दिवाली तक रहूं या ना रहूं। पर्ची की आखिरी लाइन पढ़ते-पढ़ते शालीनी फफक कर रो पड़ी।
 ऐसी होती है माँ। हम लोग अपने घर के विशाल हृदय वाले लोग, जिनको हम बूढ़े और बुुद्या श्रेणी में रखते हैं, वे हमारी जीवन के कल्पतरु हैं। उनको यथोचित सम्मान आदर और देखभाल करें। यकीन मानिए हमारे भी बूढ़े होने के दिन नजदीक ही हैं। उनकी तैयारियां आज से ही कर ले। इसमें कोई शक नहीं है ,हमारे अच्छे बुरे कर्म देर सवेरे हमारे पास ही लौट कर आते हैं।
जय श्री राधे।।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?

                 हम कैसी भक्ति से प्रभु को आकर्षित करें?



वृन्दावन में संत है -प्रेमानंदजी महाराज,कभी आपको समय मिलें तो उनका youtube chanle है।उनको जरूर सुनिएगा।आपके बहुत से सवालों के जवाब मिल जाऐंगें।उनकी एक video आपके समक्ष भेज़ रही हूँ। सुनिएगा जरुर,और अपने विचार जरूर बताइएगा।
https://youtu.be/-oX_xUsgEHwhttps://youtu.be/-oX_xUsgEHw

रविवार, 19 अप्रैल 2020

                           हरे कृष्णा श्री राधे



 हम औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि के प्रति 1000 प्रार्थनाओं की एक कड़ी अर्पित कर रहे हैं । हमारा उनसे विनम्र निवेदन है कि वे कोरोना वायरस कोविड19 से हम सभी को सुरक्षित रखें।  कृपया यह प्रार्थना बोलकर इसे अन्य लोगों के पास भेज दें ताकि हम सभी मिलकर अपनी रक्षा के लिए उनसे निवेदन कर सकें।


ॐ नमो भगवते
महा सुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृत कलश हस्ताय
सर्व भय विनाशाय
सर्व रोग निवारणाय
त्रैलोक्य पतये
त्रैलोक्य निधये
श्री महा विष्णु स्वरूप
श्री धन्वंतरि  स्वरुप
श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा


"अनुवाद"-


मैं उन भगवान धन्वंतरि को सादर नमन करता हूं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं और जिन्हें *सुदर्शन वासुदेव धनवंतरी* के नाम से जाना जाता है । आपके हाथों में अमरता के अमृत से भरा कलश है । हे ईश्वर आप सभी रोगों और भय से मुक्ति देने वाले हैं। आप तीनों लोगों के रक्षक हैं और सभी जीवों के शुभचिंतक हैं। आप आयुर्वेद के अधिपति हैं और भगवान विष्णु के अवतार हैं ।आप सभी जीवो के लिए परम कल्याणकारी हैं ।हम सभी आपकी आराधना करते हुए सभी के कल्याण के लिए आपसे निवेदन  करते हैं।

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