> परमात्मा और जीवन"ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव

यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 1 अक्टूबर 2025

गोवर्धन पर्वत | कथा, पूजा, परिक्रमा और महत्व

गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व, श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, गोवर्धन पूजा और 21 किमी परिक्रमा की सम्पूर्ण जानकारी यहाँ पढ़ें। मथुरा स्थित इस पावन स्थल की यात्रा गाइड।


🌿 गोवर्धन पर्वत: श्रीकृष्ण की दिव्य लीला, पूजा, परिक्रमा और महत्व

✨ प्रस्तावना

भारत की पावन भूमि पर अनेकों तीर्थ स्थल हैं, लेकिन गोवर्धन पर्वत का स्थान अनोखा और दिव्य है। मथुरा के समीप स्थित यह पर्वत न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला का जीवंत प्रतीक भी है। भक्तों का विश्वास है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण आज भी गोवर्धन पर्वत में निवास करते हैं।


📖 गोवर्धन पर्वत की कथा

भागवत पुराण और श्रीमद्भागवत गीता में वर्णित है कि जब इन्द्र देव ने गोकुलवासियों पर निरंतर वर्षा कर उनका जीवन संकट में डाल दिया, तब नन्हें बालक कृष्ण ने अपनी छोटी उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सम्पूर्ण वृज को सुरक्षा दी। सात दिन तक पर्वत धारण कर भगवान ने यह संदेश दिया कि प्रकृति और धरती माता की पूजा सर्वोच्च है।
यही कारण है कि आज भी गोवर्धन को "श्रीकृष्ण का स्वरूप" मानकर पूजा जाता है।


🌸 गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव



दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन अन्नकूट का विशेष आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के पकवान बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।

  • गोबर से गोवर्धन पर्वत का स्वरूप बनाया जाता है।
  • उस पर फूल, दीपक और तरह-तरह के व्यंजन सजाए जाते हैं।
  • परिवार और समुदाय मिलकर यह पूजा करते हैं।

इस दिन भक्त भगवान को यह संदेश देते हैं कि हम प्रकृति, अन्न और धरती की महत्ता को कभी नहीं भूलेंगे।

🚶 गोवर्धन परिक्रमा का महत्व

गोवर्धन यात्रा का मुख्य आकर्षण है 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा। भक्तगण नंगे पाँव चलते हुए पर्वत की परिक्रमा करते हैं और “जय श्री गोवर्धनधारी” का उद्घोष करते हैं।
परिक्रमा मार्ग में कई पवित्र स्थल आते हैं, जैसे –

  • दानघाटी – जहाँ से परिक्रमा प्रारंभ होती है।
  • मुखारविंद – गोवर्धन का मुख स्वरूप, जहाँ विशेष पूजा होती है।
  • राधाकुंड और श्यामकुंड – यह सरोवर अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।
  • पुनर्स्थलियाँ – जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएँ कीं।

भक्त मानते हैं कि गोवर्धन परिक्रमा करने से जीवन के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और भक्ति-भाव बढ़ता है।


🙏 धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

  • गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।
  • यह प्रकृति पूजन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
  • यहाँ आकर हर भक्त अनुभव करता है कि भक्ति ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।

🏞️ पर्यटन दृष्टिकोण


गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है।

  • कैसे पहुँचें?
    • मथुरा से दूरी: लगभग 22 किमी
    • वृंदावन से दूरी: लगभग 26 किमी
    • दिल्ली से दूरी: लगभग 150 किमी
  • रुकने की व्यवस्था: मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन कस्बे में धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं।
  • यात्रियों के लिए सुझाव:
    • परिक्रमा प्रातःकाल या संध्या में करना उत्तम है।
    • गर्मी के दिनों में जल, टोपी और छाता साथ रखें।
    • स्थानीय नियमों और परंपराओं का पालन करें।

🌺 निष्कर्ष

गोवर्धन पर्वत न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि प्रकृति की रक्षा, अन्न का सम्मान और ईश्वर पर विश्वास ही जीवन का सार है।
यदि आपने अभी तक गोवर्धन यात्रा नहीं की है, तो एक बार अवश्य जाएँ और श्रीकृष्ण के उस दिव्य स्वरूप का अनुभव करें।

👉 क्या आपने गोवर्धन परिक्रमा की है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें


मंगलवार, 30 सितंबर 2025

दुर्गा नवमी 2025 का महत्व, पूजा विधि और व्रत नियम जानें। मां सिद्धिदात्री की पूजा, कन्या पूजन और दान का विशेष महत्व। महानवमी से प्राप्त करें सुख-समृद्

🌺 दुर्गा नवमी (महानवमी) – महत्व, पूजा विधि और व्रत




✨ दुर्गा नवमी क्या है?

  • दुर्गा नवमी, शारदीय नवरात्रि का नवां दिन है।
  • इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है।
  • मान्यता है कि इसी दिन महिषासुर का वध हुआ और देवी दुर्गा ने धर्म की पुनः स्थापना की।

🕉️ दुर्गा नवमी का महत्व

  1. इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
  2. मां सिद्धिदात्री की कृपा से विद्या, बुद्धि और आध्यात्मिक शक्तियों की प्राप्ति होती है।
  3. इस दिन कन्या पूजन (कन्या भोज) का विशेष महत्व है।
  4. नवमी का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

🌼 दुर्गा नवमी पूजा विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर घर को स्वच्छ करें और पूजास्थल को सजाएँ।
  2. देवी मां की मूर्ति या चित्र स्थापित कर गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
  3. लाल फूल, चुनरी, नारियल, फल और मिठाई अर्पित करें।
  4. दुर्गा सप्तशती या देवी के 108 नामों का पाठ करें।
  5. कन्या पूजन करें – 9 छोटी कन्याओं और 1 छोटे बालक (लंगूर) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराएँ और उपहार दें।
  6. दीपक जलाकर आरती करें और प्रसाद बाँटें।

🌸 दुर्गा नवमी पर क्या करें?

  • गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान करें।
  • कन्याओं को उपहार (कपड़े, चुनरी, कुमकुम, फल, खिलौने) दें।
  • परिवार के साथ देवी माँ के भजन व स्तुति करें।

📖 निष्कर्ष

दुर्गा नवमी नवरात्रि का परम पवित्र दिन है। इस दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति, समृद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है।

श्री हनुमान चालीसा का संपूर्ण पाठ, महत्व और लाभ जानें। भय, रोग और संकट दूर करने तथा सुख-समृद्धि पाने के लिए हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।

     श्री हनुमान चालीसा का संपूर्ण पाठ, महत्व और लाभ जानें। भय, रोग और संकट दूर करने तथा सुख-समृद्धि पाने के लिए हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।


🕉️ श्री हनुमान चालीसा – पाठ, अर्थ और लाभ

✨ परिचय

हनुमान चालीसा एक अमर काव्य है जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा। इसके पाठ से भय, रोग, संकट और नकारात्मकता दूर होती है। हनुमान जी को प्रसन्न करने का यह सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।

🙏 श्री हनुमान चालीसा (पूरा पाठ)

  🙏 श्री हनुमान चालीसा 🙏

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥

चालीसा
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरी नन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥

विद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर संहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।
लिल्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही ।
जलधि लांघि गये अचरज नाही ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक ते काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥


🌸 हनुमान चालीसा का महत्व

  • हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से जीवन में साहस, बल और भक्ति का संचार होता है।
  • यह काव्य मन को शांत करता है और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
  • संकट के समय इसका पाठ करने से मार्ग सरल होता है।

🌺 हनुमान चालीसा पाठ के लाभ

  1. भय, रोग और संकट दूर होते हैं।
  2. मन, बुद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  3. घर-परिवार में शांति और सुख-समृद्धि आती है।
  4. हनुमान जी की कृपा से कार्य सिद्ध होते हैं।
  5. नियमित पाठ से आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।


🪔 हनुमान चालीसा का पाठ कब और कैसे करें?

  • सुबह या शाम स्वच्छ होकर शांत मन से।
  • दीपक और अगरबत्ती जलाकर हनुमान जी के सामने बैठें।
  • कम से कम 11 बार या 108 बार पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
  • मंगलवार और शनिवार को पाठ का विशेष महत्व है।

📖 निष्कर्ष

हनुमान चालीसा का पाठ केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि आत्मबल और सकारात्मकता का स्रोत है। इसे जीवन में अपनाकर हम न सिर्फ़ आध्यात्मिक शांति पा सकते हैं बल्कि सांसारिक समस्याओं से भी मुक्ति पा सकते हैं।      

🌺 हनुमान चालीसा के लाभ

  1. भय, रोग और संकट दूर होते हैं।
  2. मन, बुद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  3. घर-परिवार में शांति और सुख-समृद्धि आती है।
  4. हनुमान जी की कृपा से कार्य सिद्ध होते हैं।
  5. नियमित पाठ से आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

।।जय सियाराम ।।



शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ)

      माँ दुर्गा के 108 नाम (संस्कृत + सरल अर्थ)



१. दुर्गा – कठिनाइयों को दूर करने वाली
२. देवी – सबकी आराध्या शक्ति
३. त्र्यंबका – तीन नेत्रों वाली
४. काली – समय और मृत्यु की अधिष्ठात्री
५. कात्यायनी – ऋषि कात्यायन की पुत्री
६. चामुंडा – चंड और मुंड का वध करने वाली
७. महिषासुरमर्दिनी – महिषासुर का वध करने वाली
८. चंडिका – क्रोधमूर्ति
९. भवानी – संसार की माता
१०. भव्या – कल्याणमयी

११. जया – सदैव विजय देने वाली
१२. आद्या – आदिशक्ति
१३. विन्ध्यवासिनी – विंध्याचल में वास करने वाली
१४. रुद्राणी – रुद्र की अर्धांगिनी
१५. शिवा – मंगलमयी
१६. शर्वाणी – भगवान शंकर की शक्ति
१७. अम्बिका – सबकी माता
१८. आनन्दमयी – आनंद देने वाली
१९. भवप्रिया – भक्तों को प्रिय
२०. भद्रकाली – कल्याण करने वाली काली

२१. शूलधारिणी – त्रिशूल धारण करने वाली
२२. खड्गधारिणी – खड्ग (तलवार) वाली
२३. घण्टायुधध्वनि – घंटी की ध्वनि से दुष्टों को भयभीत करने वाली
२४. शंखिनी – शंख धारण करने वाली
२५. चक्रिणी – चक्र धारण करने वाली
२६. धनुर्धारिणी – धनुष वाली
२७. पिनाकधारिणी – पिनाक (शिवधनुष) धारण करने वाली
२८. शक्तिधारिणी – शक्ति (भाला) धारण करने वाली
२९. खड्गमुण्डधारिणी – खड्ग व मुण्ड धारण करने वाली
३०. सिंहवाहिनी – सिंह पर आरूढ़

३१. महालक्ष्मी – धन-समृद्धि देने वाली
३२. महाकाली – महान शक्ति रूपी काली
३३. महासरस्वती – ज्ञान की अधिष्ठात्री
३४. त्रिनेत्री – तीन नेत्रों वाली
३५. त्रिशूलिनी – त्रिशूल वाली
३६. खड्गिनी – तलवार धारण करने वाली
३७. भीषणा – भयानक रूप वाली
३८. भीमरूपा – अत्यंत प्रचंड रूप वाली
३९. स्कन्दमाता – स्कन्द (कार्तिकेय) की माता
४०. पार्वती – पर्वतराज हिमालय की पुत्री

४१. हेमवती – स्वर्ण के समान कान्तिवाली
४२. गिरिजा – पर्वत से उत्पन्न
४३. शैलजा – शैल (पर्वत) की पुत्री
४४. दक्षयज्ञविनाशिनी – दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली
४५. सती – पतिव्रता
४६. भवानी – संसार की माता
४७. जगन्माता – जगत की जननी
४८. जगद्धात्री – जगत की धारिणी
४९. जगदम्बा – जगत की अम्बा
५०. जगद्गुरु – जगत को ज्ञान देने वाली

५१. त्रैलोक्यसुन्दरी – तीनों लोकों में सुन्दरी
५२. सर्वेश्वरी – सबकी अधीश्वरी
५३. सर्वमङ्गला – सर्वकल्याणमयी
५४. सर्वकारणरूपिणी – समस्त कारण की मूर्ति
५५. ब्रह्मस्वरूपिणी – ब्रह्म की स्वरूप
५६. विष्णुमाया – विष्णु की माया
५७. ईश्वरी – ईश्वर की शक्ति
५८. नारायणी – भगवान विष्णु की सहचरी
५९. वैष्णवी – विष्णु की शक्ति
६०. महादेवी – महान देवी

६१. महेश्वरी – महेश्वर की अर्धांगिनी
६२. चण्डेश्वरी – चण्ड रूपिणी
६३. कालरात्रि – अंधकार को हरने वाली
६४. शम्भवी – शंकर की शक्ति
६५. गौरी – गोरी, सौम्य स्वरूपा
६६. सौम्या – शान्त रूप वाली
६७. भीमा – भयंकर रूप वाली
६८. दुर्गातरणी – कठिनाइयों से पार लगाने वाली
६९. दुर्गनाशिनी – संकट दूर करने वाली
७०. दुर्गमप्रणाशिनी – कठिन बाधाओं का नाश करने वाली

७१. दुर्गदाहिनी – कष्टों का दहन करने वाली
७२. दुर्गमापहा – दुर्गम को हरने वाली
७३. दुर्गमार्तिनाशिनी – कठिन पीड़ा का नाश करने वाली
७४. दुर्गमदहनकरी – बाधाओं को जलाने वाली
७५. दुर्गसङ्घारिणी – बाधाओं को मिटाने वाली
७६. दुर्गतोद्धारिणी – दुर्गति से बचाने वाली
७७. दुर्गविनाशिनी – कष्ट हरने वाली
७८. दुर्गमापहा – दुष्टता मिटाने वाली
७९. दुर्गहन्त्री – दुष्टों का हरण करने वाली
८०. दुर्गमशमनी – संकट शान्त करने वाली

८१. शरण्ये – शरण देने वाली
८२. त्राहि – रक्षक रूपिणी
८३. भीतिहन्त्री – भय को हरने वाली
८४. भयप्रहा – भय मिटाने वाली
८५. मोक्षदायिनी – मुक्ति देने वाली
८६. कामदायिनी – मनोकामना पूर्ण करने वाली
८७. धर्मधारिणी – धर्म की रक्षिका
८८. धर्मसंरक्षिणी – धर्म की संरक्षिका
८९. सुखप्रदा – सुख देने वाली
९०. शान्तिदायिनी – शांति देने वाली

९१. सौख्यप्रदा – जीवन में आनन्द देने वाली
९२. आयुष्प्रदा – आयु देने वाली
९३. आरोग्यप्रदा – आरोग्य देने वाली
९४. ऐश्वर्यप्रदा – वैभव देने वाली
९५. पुत्रप्रदा – संतान देने वाली
९६. विद्यारूपिणी – ज्ञान स्वरूपिणी
९७. भोगप्रदा – भोग देने वाली
९८. यशस्विनी – यश देने वाली
९९. तेजस्विनी – तेजस्विनी
१००. कीर्तिदायिनी – कीर्ति देने वाली

१०१. वैरिनाशिनी – शत्रु नाशिनी
१०२. दुष्टदमनकरी – दुष्टों का दमन करने वाली
१०३. सौम्यरूपा – सौम्य स्वरूपिणी
१०४. करुणामयी – दयामयी
१०५. कृपामयी – कृपा की मूर्ति
१०६. भक्तवत्सला – भक्तों को स्नेह देने वाली
१०७. सर्वान्तर्यामिनी – सबके भीतर वास करने वाली
१०८. सर्वमङ्गला – सबका कल्याण करने वाली


इन नामों का माला जप (108 बार), या रोज़ केवल 11/21 नाम पढ़ना भी बहुत शुभ माना जाता है।
विशेषकर नवरात्रि, शुक्रवार या अष्टमी के दिन इनका पाठ करने से माँ की कृपा शीघ्र मिलती है।


कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित

          कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित


"कृष्ण कृपा कटाक्ष" का अर्थ है –
भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रहपूर्ण दृष्टि-पात (कृपापूर्ण नज़र डालना)।

यह वाक्यांश भक्ति-साहित्य में बहुत मिलता है। इसका भाव है –
जब भगवान कृष्ण अपनी कृपादृष्टि (कटाक्ष) भक्त पर डालते हैं, तो उसके जीवन के कष्ट मिट जाते हैं, मन में शांति आ जाती है और भक्ति का मार्ग सरल हो जाता है।

कभी इसे प्रार्थना के रूप में भी प्रयोग किया जाता है –
"हे नंदलाल! मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि डालो।"
इसका अर्थ है –
"हे कृष्ण! अपनी दयालु नज़र से मेरी ओर देखो और मेरे जीवन के अंधकार को दूर करो।"

श्लोक १
वन्दे नन्द व्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः।
यासां हरिकथोद्गीतं पुणाति भुवनत्रयम्॥
अर्थ:
मैं नन्दगाँव की गोपियों के चरणों की धूल को बार-बार प्रणाम करता/करती हूँ।
जिनके मुख से निकली श्रीकृष्ण लीला की कथाएँ तीनों लोकों को पवित्र कर देती हैं।

श्लोक २
कृष्ण कृपा कटाक्षेण भूरिभाग्यं प्रसिद्ध्यति।
तत्प्रसादात्सदा साम्यं स्वपदं प्राप्यते नरः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि मात्र से ही जीव अत्यंत भाग्यशाली हो जाता है।
उनकी कृपा से मनुष्य अंत में श्रीकृष्ण के परम धाम को प्राप्त कर लेता है।

श्लोक ३
कृष्णेति नाम यः प्रोक्तं नारदेन पुरा हरेः।
तस्य सङ्कीर्तनादेव सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
अर्थ:
जिस "कृष्ण" नाम का उच्चारण स्वयं नारद मुनि ने किया था,
उस नाम का कीर्तन करने से मनुष्य सारे पापों से मुक्त हो जाता है।

श्लोक ४
दुःखदारिद्र्यविषमं हर्षमायुर्यशः श्रियः।
प्रददातु सदानन्दः कृष्णः कृपाकटाक्षतः॥
अर्थ:
हे सदानन्द कृष्ण! आपकी कृपा दृष्टि से
हमारा दुःख, दरिद्रता और विषम परिस्थिति दूर हो जाए,
हमें सुख, दीर्घायु, यश और लक्ष्मी प्राप्त हो।

श्लोक ५
सर्वे विष्णुमया देवा वसुन्ध्रा विष्णुमायिनी।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन विष्णुमेव समाश्रयेत्॥
अर्थ:
समस्त देवता विष्णु के ही रूप हैं, यह पृथ्वी भी विष्णु की शक्ति से चल रही है।
इसलिए हमें सम्पूर्ण प्रयत्न से केवल भगवान विष्णु (कृष्ण) का ही आश्रय लेना चाहिए।

श्लोक ६
कृष्णस्य दर्शनं पुण्यं जन्मकोटि सुखावहम्।
तस्य स्मरणमात्रेण मनुष्याणां विघ्ननाशनम्॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का दर्शन जन्म-जन्मांतर के पुण्य से मिलता है,
और उनके स्मरण मात्र से ही मनुष्य के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।

श्लोक ७
कृष्णस्य नाम सङ्कीर्त्य पापं नश्यति तत्क्षणात्।
गङ्गास्नानसहस्राणि फलं प्राप्नोति मानवः॥
अर्थ:
श्रीकृष्ण का नाम जपते ही पाप उसी क्षण नष्ट हो जाते हैं।
मनुष्य को सहस्रों गंगास्नान के समान पुण्य प्राप्त हो जाता है।

श्लोक ८
य इदं पठते स्तोत्रं भक्त्या श्रद्धासमन्वितः।
कृष्णकृपाकटाक्षेण लभते मोक्षमुत्तमम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता है,
वह श्रीकृष्ण की कृपा दृष्टि से उत्तम मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

यह अर्थ समझकर यदि आप प्रतिदिन इसे प्रेम से पढ़ेंगे, तो न केवल मन को शांति मिलेगी बल्कि जीवन में सकारात्मकता और भक्ति भी बढ़ेगी।

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो-------

यह एक ऐसा कुआं है जिसमें आदमी एक बार गिरता है तो------





 एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?* *इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।* *छः दिन बीत चुके थे।राज पंडित को जबाव नहीं मिला था।निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?* *यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा।इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कल तक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।

 गड़रिया बोला मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।

 राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं ? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।

 गड़रिया बोला पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी । मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।

 राज पंडित बोला ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है ? गड़रिया बोला अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।

राजपंडित ने कहा तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा ? तो जाओ, गड़रिया बोला राज पंडित बोला मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को।गड़रिया बोला वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।राजपंडित ने खूब विचार कर कहा है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।* *गड़रिया बोला मिल गया जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।

 जो प्राप्त है-पर्याप्त है 

जिसका मन मस्त है

 उसके पास समस्त है!!

मंगलवार, 23 सितंबर 2025

श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व

           श्री कृष्ण के जीवन में आठ अंक का महत्व


कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।

आठ का अंक

 कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।

कृष्ण के नाम

 नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

कृष्ण के माता-पिता

 कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं।

कृष्ण के गुरु

 गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।

कृष्ण के भाई

कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।

कृष्ण की बहनें

कृष्ण की 3 बहनें थी : 

1.एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)।

2.सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3.द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे।

4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण की पत्नियां

 रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।

कृष्ण के पुत्र

रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…अर्थात प्रत्येक पत्नी से 10/ 10 पुत्र हुए।

कृष्ण की पुत्रियां

रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।

कृष्ण के पौत्र

प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।

कृष्ण की 8 सखियां 

 राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं-

 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।

कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।

 इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। 

कृष्ण के 8 मित्र

 श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। 

इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।

कृष्ण के शत्रु

कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।

कृष्ण के शिष्य

कृष्ण ने किया जिनका वध : पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।

कृष्ण चिन्ह

 सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।

कृष्ण लोक

 वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।

कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता

कृष्ण का कुल

यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।

शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुरा के मथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।

कृष्ण पर्व

 श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।

*मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं*

मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।

भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:

सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।

Featured Post

करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है

🌕 करवा चौथ पर चंद्रमा को जल क्यों चढ़ाया जाता है? करवा चौथ   का पर्व भारतीय स्त्रियों की श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का सबसे पवित्र प्रतीक है ...