/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: श्रीमद भगवत गीता हिंदी में अध्याय 1 का शेष( पार्ट 2)

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बुधवार, 18 जुलाई 2018

श्रीमद भगवत गीता हिंदी में अध्याय 1 का शेष( पार्ट 2)

                           श्रीमद्भागवत गीता(प्रथम अध्याय)

अर्जुन ने कहा- हे राजन! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांधकर डटे हुए धृतराष्ट्र संबंधियों को देखकर,उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठा कर हृषीकेश श्री कृष्ण महाराज से यह वचन कहा - हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए।। 20-21।।
 और जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं कि इस युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन किन के साथ युद्ध करना योग्य है तब तक उसे खड़ा रखिए ।।22।।
दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो जो यह राजा लोग इस सेना में आए हैं, इन युद्ध करने वालों को मैं देखूंगा।। 23।।
संजय ने कहा
 संजय बोले- हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्री कृष्ण चंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा संपूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार का कि हे पार्थ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कोंरवों देख।। 24-25।।
 इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ- चाचा को, दादा- परदादा को, गुरु को  मामा को, भाइयों को, पुत्रों को, पोत्रों को तथा मित्रों को, ससुर  को भी देखा।। 26-27
उन उपस्थित संपूर्ण बंधुओं को देखकर वह कुंती पुत्र अर्जुन अत्यंत करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले।। 27
अर्जुन बोले- हे कृष्ण !युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुंह सुखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कंपन एवं रोमांच हो रहा है।। 28-29
हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित सा हो रहा है इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूं।।30
हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं तथा युद्ध में स्वजन समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता।। 31।।
 हे कृष्ण! मैं ना तो विजय चाहता हूं ना राज्य तथा सुखों को ही। हे गोविंद! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे लोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है?।।32।।
 हमें जिनके लिए राज्य, भोग  सुखआदि अभीष्ट हैं, वे ही यह सब धन और जीवन की आशा को त्याग कर युद्ध में खड़े हैं।  33।।
गुरुजन, ताऊ, चाचा, लड़के और उसी प्रकार दादा, मामा,  ससुर, पुत्र, साले तथा और भी संबंधी लोग हैं।। 34।।
 हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सब को मारना नहीं चाहता.; फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है?।।35।।
 यह जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी ?इन आतताइयों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा ।।36।।
अतएव हे माधव !अपने ही बांधव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं; क्योंकि अपने ही कुटुंब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?।। 37।।
यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित हुए यह लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोस्तों और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिए क्यों नहीं विचार करना चाहिए?।। 38-39
 कुल के नाश से सनातन कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर संपूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है।। 40।।
 हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय!  स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है।। 41।।
वर्णसं‍कर कुलघाटियों को और कुल को नर्क में ले जाने के लिए ही होता है।लुप्त हुई पिंड और जल की क्रिया वाले अथार्थ श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितरलोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं।। 42।।
इन वर्णसंकर कारक दोषों से कुल घाटियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।।43।।
यह जनार्दन! जिनका कुल धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्य का अनिश्चित काल तक नर्क में वास होता है ऐसा हम सुनते आए हैं ।। 44।।
हां !शोक! हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिए उद्यत हो गए हैं।। 45।।
यदि मुझ शस्त्र रहित एवं सामना ना करने वाले को शस्त्र हाथ में लिए हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डाले तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा।। 46।।
संजय बोले -रणभूमि में शोक से उदास मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर बाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गए।। 47।।
ॐ तत्सत श्री कृष्ण अर्जुन संवाद का प्रथम अध्याय सम्पूर्ण 
( यह श्रीमद्भागवत गीता श्लोक अर्थ सहित महातम्य हिंदी अनुवाद मैं गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा रचित में से पढ़कर आप सबके समक्ष लिख रही हूं) जय श्री राधे

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जय श्री राधे

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