/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: श्रीमद्भागवत गीता (हिन्दी में) अध्याय 1

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मंगलवार, 17 जुलाई 2018

श्रीमद्भागवत गीता (हिन्दी में) अध्याय 1

                         श्री गीता जी की महिमा


वास्तव में श्रीमद्भागवत गीता का महात्म्य वाणी द्वारा वर्णन करने के लिए किसी की भी सामर्थ्य नहीं है क्योंकि यह एक परम रहस्यमय ग्रंथ है। इस में संपूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया है। इसकी संस्कृत इतनी सुंदर और सरल है कि थोड़ा अभ्यास करने से मनुष्य उसको सहज ही समझ सकता है, परंतु उसका आशय इतना गंभीर है कि आजीवन निरंतर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं आता है प्रतिदिन नए-नए भाव उत्पन्न होते रहते हैं। भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता रूप एक ऐसा अनूपमेय शास्त्र कहा है जिसमें एक भी शब्द  सदुपदेश से खाली नहीं है। श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीता जी का वर्णन करने के उपरांत कहा है कि गीता सुगीता करने योग्य है। अतः श्री गीता जी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है जो कि स्वयं भगवान विष्णु के मुखारविंद से निकली हुई है
                      प्रथम अध्याय
धृतराष्ट्र कह रहे हैं - हे संजय धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया?।।1

संजय ने कहा - उस समय राजा दुर्योधन ने व्यू रचना युक्त पांडवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा।  2
 हे आचार्य आपकी बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पांडू पुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए।। 3
इस सेना में बड़े-बड़े धनुष वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सत्यकि और विराट तथा महा रथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशी राज पुरूजित, कुंतिभोज और मनुष्य में श्रेष्ठ शेब्‍य, पराक्रमी युद्धा मन्यु तथा बलवान उत्तमोजा, सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु एवं द्रोपदी के पांचों पुत्र, यह सभी महारथी हैं।। 4-6।।
हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान है, उनको आप समझ लीजिए। आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के जो जो सेनापति हैं उन को बतलाता हूँ।। 7।।
आप - द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्राम विजय कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोम दत्त का पुत्र भूरिश्रवा।। 8।।
और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाला बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित और सब के सब युद्ध में चतुर है।।9।।
भीष्म पितामह द्वारा रचित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजय है और भीम द्वारा रचित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है।। 10।।
 इसलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें।। 11।।
कोरवा में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया।।12।।
इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृदंग और नर्सिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ।। 13।।
इसके अनंतर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्री कृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये।। 14।.
श्री कृष्ण महाराज ने पाञ्चजन्य नामक ,अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पोणडर्म नामक महा शंख बजाया। ।15।।
कुंती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंत विजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाय।। 16।।
श्रेष्ठ धनुष वाले काशीराज और महारथी शिखंडी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजय सात्यकि, राजा द्रुपद और द्रोपदी के पांचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु इन सभी ने, हे राजन् ! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाय।। 17-18।।
और उन भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुंजाते हुए धृतराष्ट्रअर्थात आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिए। ।19।।
 शेष कल:

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जय श्री राधे

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