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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

एक संत की अमृत वाणी

                         एक संत की अमृत वाणी(आत्म - दर्शन )
संत श्री रामसुखदास जी ने कल्याण मैगजीन में अपने श्री मुख से आत्मदर्शन के ऊपर प्रवचन दिए-

उस परमात्मा का बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करना है जिसने हमें यह बहुमूल्य मानव शरीर दिया है। वरना पशु-पक्षी की योनि मिलने पर किसी अन्य के सहारे को स्वीकारना पड़ता। इस शुभ अवसर को पाकर कितना अच्छा होगा कि हम अपनी   पहचान कर लें। वैसे तो दुनिया में मनुष्य के लिए जानने और मानने में कोई कमी नहीं है। बहुत विस्तार से वह ना जाने कितनी खोजकर्ता जा रहा है किसी ने हवाई जहाज उड़ा दिया तो किसी ने रेडियो-टीवी, कंप्यूटर जैसी आश्चर्यजनक चीजें जुटा डाली हैं फिर भी उसकी समझ का अंत नहीं आया, उसे स्वर को तो जाना समझा ही नहीं कि आखिर मेरा लक्ष्य क्या है? मनुष्य को सबसे बड़ा डर है वह मौत का! जो जन्म के बाद क्रमशः हर पल प्रत्येक सांस पर हो रही है चाहे ब्रह्माजी ही क्यों ना हो। अतः इस बहते हुए जीवन से कुछ ऐसा प्राप्त कर लें, जिसका कभी विनाश ना हो। प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को बहुत हल्का बनाए रखना चाहता है। फिर भी वह जीवन पर्यंत ना जाने कितने अलौकिक कूड़े कचरे को समेटता रहता है बिना किसी समझकर, व्यर्थ में बोझ के  भार से मर रहा है, सभी रो रहे हैं पर इसका कचरे के भार को कोई भी फेकने को तैयार नहीं है जब जीवन की सारी शक्ति उसी शक्तिमान के आश्रित है तो फिर किसी और का सहारा क्यों लेना। चाहे जितने जन्म भी जाए एक दिन शक्तिमान के आश्रित होना ही होगा तभी अपना काम पूरा होगा। सारा सौंदर्य हमारे अंदर ही समाया हुआ है कहीं बाहर की वस्तु - पुस्तक में नहीं, उस सुंदरता का ना तो वाणी द्वारा ही बखान हो सकता है , और ना लिखने के द्वारा लेखन। प्रकृति की बाहरी छटा निहार निहार कर अनंयंत्र  मन पहुंच जाएगा, परंतु जहां सौंदर्य का सौंदर्य स्वता ही विराजमान है उसके बाद तो देखना सुनना सब खत्म हो जाता है। जो जितने दिनों के लिए आया है वह उतनी ही क्षण टिकेगा इसका एक पल भी ज्यादा नहीं, हीं फिर चाहे कोई सारी दुनिया का धन वैभव सब एक दाव पर लगा दे, पर एक पल भी यहां रुका नहीं जा सकता। यहां अधिक रुके रहने की जरूरत भी नहीं है, जरूरत तो है जल्द से जल्द अपना काम निपटा लें। 

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जय श्री राधे

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