/ "ईश्वर के साथ हमारा संबंध: सरल ज्ञान और अनुभव: सूर्य देव की उपासना -आदित्य हृदय स्त्रोत हिंदी में

यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 25 जुलाई 2018

सूर्य देव की उपासना -आदित्य हृदय स्त्रोत हिंदी में

                     सूर्य देव की उपासना -आदित्य हृदय स्त्रोत हिंदी में

                                  ॥श्री हरि॥


२१जून को सूर्य गृहण है इस दिन इसका पाठ करना चाहिए।इसके बाद ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात"का जाप करना चाहिए।
'उधर श्री रामचंद्र जी युद्ध से थक कर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आए थे श्री राम के पास जाकर बोले' ॥१-२॥
'सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्त्रोत सुनो। वत्स इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे। इस गोपनीय स्त्रोत का नाम है 'आदित्यहृदय'। यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्त्रोत है। संपूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है'॥३-५॥
' भगवान सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित (रश्मिमान् )है। यह नित्य उदय होने वाले (समुधन) देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका [रश्मिमते नमः, समुधते नम:,देवासुर नमस्कृताय
नमः, वैवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन मंत्रों के द्वारा] पूजन करो। 'संपूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। यह तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। यह ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित संपूर्ण लोकों का पालन करते हैं। यही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कंध, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनी कुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण  ऋतुओको प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज है। इन्हीं के नाम आदित्य (अदिति पुत्र) सविता, (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरण वाले)  पूषा( पोषण करने वाले ), गभस्तिमान (प्रकाशमान)  सुव्रणसदृश, भानु, (प्रकाशक) हिरण्यरेता, (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीच), दिवाकर( रात्रि का अंधकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले) हरिदश्व( दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्त्राची (हजारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़े वाले), मरीचमान्( किरणों से सुशोभित), तिम्रोमंथन (अंधकार का नाश करने वाले), शंभू (कल्याण के उद्गम स्थान)  त्वष्टा( भक्तों का दुख दूर करने वाले अथवा जगत का सहार करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्मांड को जीवन प्रदान करने वाले)  अंशुमान (किरण धारण करने वाले)  हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करनेवाले), अहस्कर (दिनकर), रवि (सब की स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले)  अदिति पुत्र, शंख (आनंदस्वरूप एंव व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी  (अंधकार को दूर करने वाले), ऋग, यजु, और सामवेद के पार गामी, घनवृष्टी( घनी वृष्टि के कारण) , अपां मित्र( जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथी प्लवंगम( आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी( घाम उत्पन्न करने वाले), मंडली (किरण समूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल( भूरे रंग वाले)  सर्वतापन( सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्व सरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंग), वाले सर्वभवोद्भव (सब की उत्पत्ति के कारण) नक्षत्र, ग्रह, और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले)  तेजस्वी में भी अति तेजस्वी तथा  द्वादशात्मा(बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्य देव! आपको नमस्कार है। '॥६-१५
' पूर्णागिरि- उदयाचल तथा पश्चिमगिरी - अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणो ( ग्रहों और तारों) - के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है। आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जूते रहते हैं। आप को बारंबार नमस्कार हैं। सहस्त्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है आपको नमस्कार हैं। उग्र(अभक्तों के लिए भयंकर), वीर (शक्ति संपन्न) और सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलो को विकसित करने वाले, प्रचंड तेज धारी मार्तंड को प्रणाम है। (परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्य मंडल आपका ही तेज हैं, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आप का ही स्वरुप है, आप रौद्र रूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप अज्ञान और अंधकार के नाशक, जडता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय  है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले  संपूर्ण जोतियों के स्वामी और देव स्वरूपं हैं ;आपको नमस्कार है। आपकी प्रभा तपाये हुए स्वर्ण के समान हैं, आप हरी (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं ;तम के नाशक, प्रकाश स्वरूप और जगतं के साक्षी हैं; आपको नमस्कार है`॥१६-२१
'रघुनंदन! यह भगवान सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। यह ही अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं। यह सब भूतों में अंतर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। यह ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं। (यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता  यज्ञ और यज्ञों के फल भी यही है। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएं होती हैं, उन सब का फल देने में यही पूर्ण समर्थ है। राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्य देव का कीर्तन करता है  , उसे दुख नहीं भोगना पड़ता । इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इस देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का 3 बार जप करने से कोई भी युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है। महाबाहो  तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे । यह कहकर अगस्त जी जैसे आए थे, उसी प्रकार चले गए ॥२२-२७॥
'उनका उपदेश सुनकर महा तेजस्वी श्री रामचंद्र जी का शौक दूर हो गया उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्ध चित्त से आदित्य हृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ । फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठा कर रावण की ओर देखा और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न्न करके रावण के वध का निश्चय किया। उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्री रामचंद्र जी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्ष पूर्वक कहा- रघुनंदन! अब जल्दी करो '॥२८-३१॥
वाल्मीकि रामायण से प्रस्तुत
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगर आपको मेरी post अच्छी लगें तो comment जरूर दीजिए
जय श्री राधे

Featured Post

भक्ति का क्या प्रभाव होता है?

                        भक्ति का क्या प्रभाव होता है? एक गृहस्थ कुमार भक्त थे। एक संत ने उन्हें नाम दिया वे भजन करने लगे, सीधे सरल चित् में ...