We enjoy holi in our guru`s ashram in vrindavan.

इस ब्लॉग में परमात्मा को विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में एक अद्वितीय, अनन्त, और सर्वशक्तिमान शक्ति के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि का कारण है और सब कुछ में निवास करता है। जीवन इस परमात्मा की अद्वितीयता का अंश माना जाता है और इसका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा के साथ मिलन है, जिसे 'मोक्ष' या 'निर्वाण' कहा जाता है। हमारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा प्रभु भक्ति आ सके और हम सत्संग के द्वारा अपने प्रभु की कृपा को पा सके। हमारे जीवन में आ रही निराशा को दूर कर सकें।
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बुधवार, 19 मार्च 2014
शनिवार, 15 मार्च 2014
होली
चल होली खेंले यार
चल ख्वाब रँगे इस बार
चल रूठो को मनाए ,चल बिछड़ो को आज़ मिलाए
दुखी मन को आज़ हंसाए ,चल होली खेले यार
हर रंग का हैं कुछ मतलब ,हर रंग कुछ कहता हैं
चल प्रेम की करे बोछार ,थोड़ा लाल रंग लो यार
चल होली खेले -----------
पूरे देश को शिक्षित कर दो,थोड़ा पीला रंग लो यार
हर एक मॅ साधुता आ जाए ,थोड़ा नारंगी रंग लो यार
चल होली खेले ---------
हर रंग का हैं जब कुछ मतलब ,तो सातो रंग की करो बोछार
चल होली खेले यार ,चल ख्वाब रंगे इस बार .
मंगलवार, 11 मार्च 2014
कर्म और केवल कर्म ही आपका कल्याण कर सकता है।
कर्म योग
अगर आप अपना कल्याण चाहते हैं तो केवल भगवान के साथ सम्बन्ध जोड़ो। दूसरा कोई भी सम्बन्ध कल्याण करने वाला नहीं हैं। संत महात्मा भी भगवान के साथ सम्बन्ध जोड़ते हैं। माता -पिता ,स्त्री -पुत्र ,भाई भोजाई और भतीजे -इतना सम्बन्ध खास कुटुम्ब हैं। इनमे भी आप भगवान को ही देखे। भगवान का सम्बन्ध सदा से हैं और सदा ही रहने वाला हैं ,आप स्वीकार करे या न करे ,आप सदा से भगवान के ही हैं। इसमें संदेह न करे गीता के १५/७ में लिखा हैं आप भगवान से अलग नहीं हो सकते। भगवान में भी इतनी ताकत नहीं कि वे आपसे अलग हो जाए !
आप भगवान कि वस्तु को भी अपना मानते हैं ,पर भगवान को अपना नहीं मानते यही भूल हैं।
अपने स्वार्थ का त्याग करके दुसरो के हित के लिए कर्म करने से कर्मयोग होता हैं। सबका हित चाहने वालो का हित स्वयं होता हैं। सबका हित चाहने वाला घर बेठे ही महात्मा हो जाता हैं।
अनुचित कर्म करने से प्रकृति कुपित हो जाती हैं। प्रकृति बहुत बलवान हैं। वह कुपित हो जाए तो मनुष्य उसका सामना नहीं कर सकता।
अनुचित कर्म करने वाले के चित में शांति ,निर्भयता नहीं रहती। रावण के नाम से त्रिलोकी डरती थी ,पर वही रावण जब सीता जी की चोरी करने जाता हैं तो वह भी डरता हैं। यदि मनुष्य संसार के ,भगवान के ,गुरुजनो के विरुद्ध काम न करें तो वह सदा निर्भय रहता हैं। कर्मयोगी को भय नहीं लगता।
स्वामी रामसुखदास जी के श्री मुख से।
ॐ तत्सत।।
गुरुवार, 6 मार्च 2014
puja for girls who are facing marriage problem
अधिकतर संभ्रांत परिवारो के लोगो को अपनी कन्या के विवाह के लिए विशेष प्रयत्न करने पर भी दहेज़ आदि समस्याओ के कारण तथा अन्य किसी और कारण से विवाह नहीं हो पाता और कन्या भीदुःखी हो जाती हैं और वह उपाय पूछती हैं।
इसके लिए कन्याओ के द्वारा यह अनुष्ठान करना चाहिए इस में जो ऊपर चित्र दिया गया हैं उस का प्रतिदिन चंदन पुष्प आदि से पूजन करके नीचे लिखे मन्त्र कि 11 माला का जप करना चाहिए। 11 न हो सके तो 5 माला का ,और 5 भी न हो सके तो कम -से -कम 1 माला का जप तो जरुर करना चाहिए और सच्चे ह्रदय से माँ से प्रार्थना करते हुए नीचे लिखी हुई चौपाइयों का पाठ करना चाहिए। श्रद्धा -भक्तिपूर्वक करने पर इस प्रयोग से शीघ्र सफलता मिलती हैं। तथा विवाहिक जीवन सुखी होता हैं -
मंत्र यह हैं -
"He Gauri Shankarardhangi! Yatha Tvam Shankarpriya Tatha maam Kuru Kalyani! Kantkaantam Sudurlabhaam"
प्रतिदिन इसका एक बार पाठ अवश्य करे -
जय -जय गिरिराज किशोरी। जय महेश मुख चंद चकोरी।।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
नहि तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहि जाना।।
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहिं सहस सारदा सेष।।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारी पिआरि।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
मोर मनोरथ जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहीं कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहिं। अस कहिं चरन गहे बैदेहीं।।
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोलि गौरी हरषु हियँ भरेऊ।।
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहि मनकामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचिं साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।
उपरोक्त विधि द्वारा पूरे विश्वास के साथ हमे प्रार्थना करनी चाहिए बाकि उसे पूरा करना या न करना सिर्फ हमारी माँ के हाथ में हैं। लकिन वो हम सबकी जगत जननी माँ हैं तो वो जो भी करेगी उसमे ही हमारी भलाई छुपी होगी।
(कल्याण के द्वारा )
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014
चतुर्शलोकीय भागवत(चार शलोको में भागवत)
चार श्लोको में भागवत
चतुरश्लोकि भागवत
अहमेवास मेवाग्रे नान्यद् यत् सद्सत्परम।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सॊस्म्म्यहम।। १
ऋतेSर्थ यत् प्रतीयेत् न प्रतीयेत् चात्मनि।
तद् विद्यादात्मनो मायाँ यथाSSभासो यथातमः।। २
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चाबचेस्वनु।
प्रतिष्टान्य प्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्।। ३
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्व जिज्ञासुनाSSत्मनः।
अन्वय व्यतिरकाम्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा।। ४
अर्थ -
भगवान नारायण ,प्रजापति ब्रह्मा कि तपस्या से सृष्टि के आरम्भ में अति प्रसन्न हुए तब उन्होंने ब्रह्मा जी को वर मांगने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने निम्नलिखित चार वर मांगे जिन्हे हम चतुर्श्लोकीय भागवत भी कहते हैं
१ हे भगवन !आपके सुक्ष्म अप्राकृतिक रूप को जिसे 'पर 'कहते हैं ,तथा स्थूल या प्राकृतिक रूप जिसे 'अपर ' कहते हैं। इन दोनों पर अपर 'स्वरूप का मुझे ज्ञान प्राप्त हो जाए।
२ हे परमात्मन् !आप मुझे वह बुद्धि दीजिये जिससे मैं आपकी लीलाओं के गुह्मतम भेद को समझ सकूँ।
३ आप मेरे ऊपर ऐसी कृपा कीजिये जिससे मैं सृष्टि रचते हुए भी अपने को कर्ता मानकर अहंकार बुद्धि को प्राप्त न होऊं। आलस्य त्याग कर आपकी आज्ञा का पालन कर सकूँ।
४ हे परमात्मन् !उत्त्पति ,भरण -पोषण करने वाला होने के कारण मुझे अभिमान प्राप्त न हो।
जो भी मनुष्य पूरी भागवत पढ़ने में असमर्थ हो उसे यह चतुर्श्लॉर्किये भागवत का पाठ तो कर ही लेना चाहिए।
ॐ श्री हरी।
सोमवार, 10 फ़रवरी 2014
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014
और क्या चाहते हैं हम भगवान् से
और क्या चाहते है भगवान से ?
अपूर्व गुप्त शक्तियाँ
-इसके साथ ही उसने हमे अनेक गुप्त शक्तियाँ दी हैं। हमारी स्मरण शक्ति ,योगशक्ति ,आत्मशक्ति ,इच्छाशक्ति ,कल्पनाशक्ति ,संकल्पशक्ति ,धारणाशक्ति आदि उसी परमपिता कि देन हैं। यही नहीं उन्होंने हमे कर्म करने के लिए दो हाथ भी दिए हैं इन हाथों के बल पर ही हम निर्माण कार्य करने में सफल होते हैं।
यह शरीर एक कल्प वृ क्ष
-कल्पवृक्ष इच्छित फल देता हैं। हम इसी शरीर में छिपी गुप्त शक्तियों से ही मन चाही सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। इसी शरीर में दुर्गा एवं शिव का तृतीय नेत्र भी हैं। आठों सिद्धियाँ और नवों निधिंयाँ हमे इसी शरीर से प्राप्त हो सकती हैं।
कितने मूल्यवान हैं हमारे अंग -
हमारे शरीर का प्रत्येक अंग इतना मूल्यवान हैं कि हमें अपार धन दोलत देकर भी इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते। कोई हमे चाहे कितना ही धन दे दें पर हम अपने हाथ ,पैर ,आखं आदि नहीं दे सकते। अब आप ही अनुमान लगाइये कि ईश्वर ने हमे कितने अमूल्य उपहारों से विभूषित किया हैं।
इश्वर ने जब हमे इतना सब कुछ दिया हैं तो हम क्यों न इसका सदुपयोग करे। अंतिम समय में जब हमारी पेशी उसके सामने होगी तो वह हमसे प्रश्न करेगा मैंने तुम्हे दो हाथ दिए इनसे तुमने कितने उपकार का काम किया कितनो के आंसू पोछें। इतनी धन -सम्पदा दी उसका उपयोग कितना समाज के हित के लिए किया।
इश्वर किसी उद्देश्य के लिए ही हमे मानव शरीर देता हैं। हमारा भी परम कर्त्तव्य हैं कि हम निष्ठा से इस मानव शरीर को सार्थक उद्देश्यों में लगाये। यही मानव जीवन कि सार्थकता हैं और यही इश्वर के प्रति धन्यवाद हैं।
(कल्याण के सोजन्य से )
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