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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


                  हम प्रभु के भेंजें हुए सुन्दर पुष्प है


हमारा सौभाग्य है कि प्रभु की इस पुष्प वाटिका में हमने जन्म
लिया। उन को प्रसन्न करने के लिए हम एक पुष्प की तरह खिले और उन्हें अर्पण हो जाएं। इष्ट देव को प्रसन्न करना ही प्राणी का कर्तव्य है। जिस प्रकार से आपका मन प्रसन्न रहें, वैसे ही कीजिए। स्वंय प्रभु सत्य दया क्षमा के समुंद्र है तो हमको भी प्राणियों के साथ सत्य व्यवहार करना चाहिए। सब के साथ दयामय  व्यवहार ही कर्तव्य है ।किसी के अपराध पर हम उसे क्षमा कर दें तो प्रभु प्रसन्न होंगे।क्षमा करने में भगवान पृथ्वी से भी अधिक हैं पृथ्वी माता के ऊपर हम अनेक अपराध करते हैं, पर वह सब सहन करती हैं। हमको भी दूसरों के अपराध पर रुष्ट ना होकर क्षमा ही करना चाहिए। यह प्रभु को प्रसन्न करने का साधन है। बदला लेने की इच्छा से फिर जन्म लेना पड़ता है।भजन करने के लिए जन्म लेना अच्छा है, बदला चुकाने के लिए जन्म लेना अच्छा नहीं है। किसी का ऋण रह गया तो उसे चुकाने के लिए पशु बनना पड़ेगा। कष्ट होगा ,सत्संग, भजन सेवा के लिए बार-बार जन्म लेना अच्छा है।
जय श्री राधे जय श्री राधे
 भक्तमाल दादा गुरु के श्री मुख से परमार्थ के पत्र पुष्प में से

सोमवार, 17 अगस्त 2020

अनजाने में किया गया भगवतश्रवण भी कैसा फल देता है।

       अनजाने में किया गया भगवत का नाम भी कैसा फल देता है।


दुष्ट मन से स्मरण किया गया भी भगवान का नाम, पापों का नाश करता है। जैसे अनजान में स्पर्श की गई अग्नि भी जला देती है ।अतः 'हरी' वह नाम है जो सभी के पाप तापों को हरते हैं। अपने श्रवण कीर्तन द्वारा भक्तों के मन को हरते हैं। अतः हरि यह नाम है जो किसी के मन को भी हरता है। अतः उसका नाम हरा है उसके संबोधन में हरे ऐसा रूप होता है। इसलिए 'हरे राम हरे राम' मंत्र प्रयुक्त हरे का अर्थ है हे राधे। 'कृष्' आकर्षण करने वाला 'ण' आनंद दायक है। सब को आकृष्ट करने वाले आनंद देने वाले का नाम कृष्ण है।
 'रा' का उच्चारण करने से पाप बाहर निकल जाते हैं फिर 'म' का उच्चारण करने पर कपाट बंद हो जाते हैं फिर मुख के बंद होने पर पाप प्रवेश नहीं कर पाते हैं। अतः हरे राम यह महामंत्र विधि अविधि जैसे भी जपा जाय कलयुग में विशेष फल प्रदान
करती है।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
(परमार्थ के पत्र पुष्प में दादागुरु श्री भक्तमाल जी महाराज के श्री मुख से)

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

मन को काबू में लाना हो तो,

मन को काबू में लाना हो तो,


समय सार्थक होगा, समय सार्थक वही है जो भगवान अथवा
भगवान के भक्तों के गुणों पर चर्चा हो कहने को मिले, चाहे सुनने को मिले,चाहे किसी  सदग्रंथ में पढ़ने को मिले और अंतःकरण से उनपर  विचारने का अवसर मिले। तो समय की सार्थकता होती हैं धन्य घड़ी सोई जब सत्संगा धन्य जन द्विज भक्तिअभंगा समय की सार्थकता होगी और जो गायेंगे उनकी वाणी पवित्र होगी और जो सुनेंगे उनके कान पवित्र होंगे और क्या होगा? मन की वृत्ति सधी रहे। बोले महाराज- मन बहुत भटकता है। मन बहुत भटकाता  है। चंचल  बंचक जानिए मनहि भूत विकराल, कबहूँ जाए आकाश में कबहूँ जाए पाताल। मन काबू में नहीं आता है, तो कहते हैं मन को काबू में लाना हो तो, तो भक्तों का चरित्र गाने बैठ जाओ, सुनने बैठ जाओ ।मजाल है जो मन इधर-उधर भाग जाए। कम से कम इतनी देर के लिए मन की वृत्ति सधी रहे और बुद्धि,बुद्धि कंप्यूटर वाली बात उतनी देर नहीं सोच सकती है।
 मन की वृती सधी रहे ,बुद्धि प्रभु से बंधी रहे। अंतर की ही स्वच्छता और आवे प्रीत रीत ज्यों
मन की स्वच्छता जरूरी है जैसे घर में  गंदगी आ जाती है तो बुहारी से स्वच्छता हो जाती है, पोछा लगा कर के स्वच्छता हो जाती हैं और गाड़ी में गंदगी आ जाती है तो सर्विसिंग स्टेशन पर  ले जाकर  सफाई कराते हैं कपड़े में गंदगी आ जाती है तो धोबी घाट पर ले जाकर सफाई करा देते हैं। शरीर में गंदगी आ जाती है तो  स्नान इत्यादि प्रक्रिया से पूरी हो जाती है और अगर मन के भीतर कोई गंदगी आ गई तो कहते हैं भक्तों के चरित्र,भक्तमाल पढो़गें तो एकदम धो के पोंछ के उसको निर्मल बना देते हैं। प्रभु के चरणों में पहुंचने लायक बना देते हैं और ऐसे बना देंगे कि प्रभु ललक उठेंगे। आजा बेटा! तुम बहुत अच्छे लग रहे हो, भक्तों का चरित्र सुनते हो,पढ़ते हो और अनुसरण कर रहे हो। तो मुझे बहुत प्यारे लगते हो, आओ तो मैं गोदी में बैठा लूँ। तुम्हें प्यार दूं ।इस प्रकार से ही प्रभु की प्रीति की रीति आएगी और प्रभु का प्यार मिलेगा। अंतःकरण की स्वच्छता हो जाएगी।
इसलिए अपने मन को भटकने से बचाने के लिए भक्तो का चरित्र,भक्तमाल ग्रन्थ का अध्यन जरूर करना चाहिए।
(मामा जी महाराज श्री नारायणदास भक्तमाली जी)

सोमवार, 10 अगस्त 2020

ह्रदय व्याकुल हो जाए प्रभु से मिलने के लिए तो, प्रभु दूर नहीं है।

ह्रदय व्याकुल हो जाए प्रभु से मिलने के लिए तो, प्रभु दूर नहीं
है।



कौन कहता है मुलाकात नहीं होती है, रोज मिलते हैं केवल बात नहीं होती है।
मामाजी भक्तमालीजी के श्री मुख से
हम प्रभु से रोज मिलते हैं क्या हम मिलने के लिए कहीं से आते हैं या कहीं जाते हैं नहीं क्योंकि वह तो हर पल हर क्षण हमारे साथ ही रहते हैं इसलिए
मिले ही रहते हैं। पर बात नहीं होती, एक साथ रहते हैं पर बात नहीं होती। क्यों? हम 36 हो रहे हैं। दुनिया के लिए हम खूब रो रहे हैं, उसके लिए रोना नहीं आता है। कभी आंसू आते भी तो उसमें प्रदर्शन का भाव आ जाता है और सूख जाते हैं। 
 हम प्रभु के लिए रोना शुरू कर दें। बलिहारी, बलिहारी। एक बार मैं बक्सर से पटना जा रहा था, डुमराव स्टेशन पर एक सज्जन एक बच्चे को गोद में लिए हुए थे, गाड़ी में बैठ गए। बाप रे बाप, उस बच्ची का रोना सारे डिब्बे के लोग परेशान हो गए, डांटने लगे उसको, तुम क्यों नहीं  चुप करा रहे हो। इसके रुदन से हमारे कान फट रहे हैं,उसने कहा कि बाबूजी आप लोग ही चुप करा कर देख लीजिए, कोशिश कर लीजिए। सब लोगों ने पूछा बात क्या है? बात यह है कि यह सोई हुई थी, इसकी माँ लाचारी में इलाज के लिए पटना चली गई है।अब मां के लिए यह इतना रो रही है, हम लोगों ने सोचा कुछ खिला पिला कर मना देंगे। पर यह चुप नहीं हो रही है, कितना सामान दिया है, पर यह चुप नहीं हो रही है। अब लगता है जब तक यह पटना नहीं पहुंचेगी और मां को नहीं देखेगी तब तक चुप नहीं होगी। इसलिए लाचार होकर इसकी मां के पास लेकर जाना पड़ रहा है। सारे डब्बे के लोग परेशान थे और मुझे इतनी खुशी हुई बच्ची के रोने को देखकर,जैसे शरीर संबंध की बच्ची,शरीर संबंध की मां के लिए बेचैन हो रही है और इसकी मां तक पहुंचाया जा रहा है। इसी तरह हम आत्मा की मां, त्वमेव माता च पिता त्वमेव, सचमुच में अगर उस बच्ची की तरह हम भी रोना प्रारंभ करते हैं तो या तो वह मां स्वयं आ कर, मेरे पास तक आएगी या मुझको मेरा ही हिमायती मुझे उस माँ तक पहुंचाएगा। हमें वह रोना तो आए,हमें व्याकुलता हो तो उसके लिए। अपने प्रभु के लिए तो वह क्षण दूर नहीं जब प्रभु स्वयं आकर हमसे मिलेंगे

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है

             संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है।

संत सदगुरुदेव में श्रद्धा की आवश्यकता है। जहां पर श्रद्धा होगी वहीं पर प्रभु अपना रूप प्रकट करके अनुभव करा देते हैं और अश्रद्धा के द्वारा दिया गया दान, हवन तुच्छ फल देता है। श्रद्धा पूर्वक थोड़ा दान भी महान फल देता है। शिष्य विदेश जाने लगा तो गुरु ने कहा कि वापस आओगे तो रहस्य कि बात बताऊंगा। वापस आते आते गुरु का शरीर छूट गया, पर अपनी श्रद्धा के कारण उसने गुरु के शरीर त्याग को स्वीकार नहीं किया। बिना मुझे, उस बात को बताए, गुरुदेव भगवान वैकुंठ नहीं जा सकते। गुरु की वाणी में शिष्य को विश्वास था अतः गुरुदेव वैकुंठ से वापस आ गए और कहा संत में मुझसे अधिक श्रद्धा रख कर सेवा करो।' गुरु वचन में विश्वास यह संदेश मिला।वैकुंठ जाकर कोई वापस नहीं आता है पर शिष्य की श्रद्धा ने गुरु को वापस बुला लिया, पुनर्जीवित कर लिया। शिष्य ने गुरु को जिंदा करवाया। गुरुदेव प्रदेश जाने लगे तो शिष्य से कहा गंगा जी को गुरु मानो मेरे स्थान पर, उन्हें प्रणाम करो। शिष्य ने गंगा जी में स्नान, वस्त्र धोना बंद कर दिया।गुरु के आने पर भी गंगा में गुरु भाव बना रहा, लोगों के मन में गुरु भक्ति जाग्रत करने के लिए गुरु ने गंगा में प्रवेश कर के शिष्य से वस्त्र मांगे, गुरु आज्ञा पालन करना है वस्त्र देना है, पर गंगा में पैर नहीं रखना। धर्म संकट के समय धर्म की निष्ठा की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं कमल पत्र प्रकट हो गए, उन पर चलकर वस्त्र दिया।गुरु वचनों में विश्वास का यह अद्भुत
दृष्टांत है।
।।श्री गुरुभ्य नमः।।

श्री कृष्ण ही जगतगुरु हैं।

             परमार्थ के पत्र पुष्प- भगवान श्री कृष्ण ही जगतगुरु है।




भगवान श्री कृष्ण जगद्गुरु हैं। जहां-जहां से हितकारी उपदेश प्राप्त होते हैं वे सब गुरु तत्व है। श्री कृष्ण ही सब गुरुओं में व्याप्त होकर फिर उपदेश देते हैं। प्रत्येक श्रद्धालु शिष्य का गुरु श्री कृष्ण का स्वरुप है। सर्वत्र उपदेशक श्री कृष्ण ही है। सर्वत्र गुरु तत्व श्री कृष्ण ही हैं। इस प्रकार श्री कृष्ण और गुरुदेव एक है इनमें अभेद है।'संत सबै गुरुदेव हैं व्यासहिं यह परतीति।' हरिराम जी व्यास कहते हैं कि मुझे यह विश्वास है भक्त संत गुरुदेव हैं। 'संत भगवंत अन्तर निरंतर नहीं किमपि मती विमल कह दास तुलसी।।' विमल बुद्धि से विचार कर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि 'संत और भगवंत में नाम मात्र का भी अंतर नहीं है। इस प्रकार भक्तमाल का दिव्य सत्य सिद्धांत ही सत्य है कि( संत )भक्त, भक्ति, भगवंत, गुरु यह चारों एक है इनमें कोई अंतर नहीं है। इनके चरण कमल की वंदना करने से सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है। यह समझ में आ जाय, इस सिद्धांत में विश्वास हो जाए तो कल्याण है। इससे ही शांति, भक्ति की प्राप्ति होती है। श्री भक्तमाल का, श्री गुरुदेव भगवान का यह वाक्य हमारे लिए मान्य है कि बिना भक्तमाल भक्ति रूप अती दूर है।' संत संग में भक्तमाल ही प्रधान है। भक्तमाल में भागवत, रामायण आदि के सारांश आ जाते हैं।
।।श्री सीताराम।।
दादागुरु भक्तमाली श्री गणेश दासजी के श्री मुख से।

रविवार, 26 जुलाई 2020

क्पा आप जानते है प्रभु के चरणों में कौन-कौन से चिन्ह है,और उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है?

प्रभु के चरणों में जो चिन्ह है उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है और उनका अर्थ क्या है।




अब इसमें अलग-अलग चिन्हों का महत्व का वर्णन करते हैं।
राजराजेश्वर रामचंद्र जी ने अपने चरण सरोज में सुख सुविधा के चिन्ह धारण कर रखे हैं।अगर कोई अपने मन को काबू में नहीं कर पाता हो तो, उसको प्रभु के चरणों में धारण अंकुश का ध्यान करना चाहिए। याद करें,ध्यान करें तो   मनु रूपी मतवाला हाथी काबू में आ जाता है।जैसे महावत मतवाले हाथी को अंकुश के द्वारा बस में कर लेता है ऐसे ही भगवान के चरणों के चिह्न में अंकुश का ध्यान करने से हमारा मन मतवाला काबू में आ जाता है 
अंकुश के बाद अंबर।अंबर कहते हैं वस्त्र को, अंबर आकाश को भी कहते हैं। तो अगर अंबर का अर्थ अकाश लिया जाए, तो जैसे आकाश अनंत है ऐसे भगवान भी अनंत हैं और अगर अंबर का अर्थ यहां वस्त्र लिया गया है, तो जाड़े में वस्त्र की जरूरत होती है और उसमें भी गरम कपड़ा,तो सठता रूपी शीत अगर सता रहा हो तो इस वस्त्र के चिन्ह का ध्यान करने वाले का शोक दूर हो जाता है। इस चिन्ह का ध्यान करने से बड़ा ही सुख मिलता है। जैसे जाड़े में रजाई ओढ़ने पर सुख मिलता है। ऐसे ही भगवान के चरण चिन्ह में अंबर का ध्यान करने से सुख मिलता है, शोक दूर हो जाता है।
तीसरा है कुलिश। कुलिश माने वज्र,भगवान के चरणों में वज्र का चिन्ह है।पाप रूपी पर्वत को चूर चूर कर देने के लिए,भगवान के चरण में कुलिश माने वज्र का चिन्ह है।अगर आप यह चिन्ह याद करेंगे,तो आपके पूर्व के पाप चाहे कितने पहाड़ सरीकें रहे होंगे वह सब चूर चूर हो जाएंगे

भगवान के चरणों में कमल का चिन्ह बना हुआ है मन को उसमें लगा दीजिए।तो भक्ति रूपी शहद,मधुरता आपको खूब मिलेगी।
शेष कल- श्री सीताराम

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