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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

श्री कृष्ण ही जगतगुरु हैं।

             परमार्थ के पत्र पुष्प- भगवान श्री कृष्ण ही जगतगुरु है।




भगवान श्री कृष्ण जगद्गुरु हैं। जहां-जहां से हितकारी उपदेश प्राप्त होते हैं वे सब गुरु तत्व है। श्री कृष्ण ही सब गुरुओं में व्याप्त होकर फिर उपदेश देते हैं। प्रत्येक श्रद्धालु शिष्य का गुरु श्री कृष्ण का स्वरुप है। सर्वत्र उपदेशक श्री कृष्ण ही है। सर्वत्र गुरु तत्व श्री कृष्ण ही हैं। इस प्रकार श्री कृष्ण और गुरुदेव एक है इनमें अभेद है।'संत सबै गुरुदेव हैं व्यासहिं यह परतीति।' हरिराम जी व्यास कहते हैं कि मुझे यह विश्वास है भक्त संत गुरुदेव हैं। 'संत भगवंत अन्तर निरंतर नहीं किमपि मती विमल कह दास तुलसी।।' विमल बुद्धि से विचार कर श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि 'संत और भगवंत में नाम मात्र का भी अंतर नहीं है। इस प्रकार भक्तमाल का दिव्य सत्य सिद्धांत ही सत्य है कि( संत )भक्त, भक्ति, भगवंत, गुरु यह चारों एक है इनमें कोई अंतर नहीं है। इनके चरण कमल की वंदना करने से सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है। यह समझ में आ जाय, इस सिद्धांत में विश्वास हो जाए तो कल्याण है। इससे ही शांति, भक्ति की प्राप्ति होती है। श्री भक्तमाल का, श्री गुरुदेव भगवान का यह वाक्य हमारे लिए मान्य है कि बिना भक्तमाल भक्ति रूप अती दूर है।' संत संग में भक्तमाल ही प्रधान है। भक्तमाल में भागवत, रामायण आदि के सारांश आ जाते हैं।
।।श्री सीताराम।।
दादागुरु भक्तमाली श्री गणेश दासजी के श्री मुख से।

रविवार, 26 जुलाई 2020

क्पा आप जानते है प्रभु के चरणों में कौन-कौन से चिन्ह है,और उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है?

प्रभु के चरणों में जो चिन्ह है उनके दर्शन करने से क्या लाभ होता है और उनका अर्थ क्या है।




अब इसमें अलग-अलग चिन्हों का महत्व का वर्णन करते हैं।
राजराजेश्वर रामचंद्र जी ने अपने चरण सरोज में सुख सुविधा के चिन्ह धारण कर रखे हैं।अगर कोई अपने मन को काबू में नहीं कर पाता हो तो, उसको प्रभु के चरणों में धारण अंकुश का ध्यान करना चाहिए। याद करें,ध्यान करें तो   मनु रूपी मतवाला हाथी काबू में आ जाता है।जैसे महावत मतवाले हाथी को अंकुश के द्वारा बस में कर लेता है ऐसे ही भगवान के चरणों के चिह्न में अंकुश का ध्यान करने से हमारा मन मतवाला काबू में आ जाता है 
अंकुश के बाद अंबर।अंबर कहते हैं वस्त्र को, अंबर आकाश को भी कहते हैं। तो अगर अंबर का अर्थ अकाश लिया जाए, तो जैसे आकाश अनंत है ऐसे भगवान भी अनंत हैं और अगर अंबर का अर्थ यहां वस्त्र लिया गया है, तो जाड़े में वस्त्र की जरूरत होती है और उसमें भी गरम कपड़ा,तो सठता रूपी शीत अगर सता रहा हो तो इस वस्त्र के चिन्ह का ध्यान करने वाले का शोक दूर हो जाता है। इस चिन्ह का ध्यान करने से बड़ा ही सुख मिलता है। जैसे जाड़े में रजाई ओढ़ने पर सुख मिलता है। ऐसे ही भगवान के चरण चिन्ह में अंबर का ध्यान करने से सुख मिलता है, शोक दूर हो जाता है।
तीसरा है कुलिश। कुलिश माने वज्र,भगवान के चरणों में वज्र का चिन्ह है।पाप रूपी पर्वत को चूर चूर कर देने के लिए,भगवान के चरण में कुलिश माने वज्र का चिन्ह है।अगर आप यह चिन्ह याद करेंगे,तो आपके पूर्व के पाप चाहे कितने पहाड़ सरीकें रहे होंगे वह सब चूर चूर हो जाएंगे

भगवान के चरणों में कमल का चिन्ह बना हुआ है मन को उसमें लगा दीजिए।तो भक्ति रूपी शहद,मधुरता आपको खूब मिलेगी।
शेष कल- श्री सीताराम

रविवार, 19 जुलाई 2020

भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ

            भगवान की भक्ति में खो जाने से लाभ


भगवान में लीन हो जाने की प्रक्रिया । नानक लीन भयो  गोविंद संग ,ज्यों पानी संग पानी। तो मोक्ष पांच प्रकार के बताए गए हैं। तो इसमें जो एक मोक्ष है "एक्त"- तो इसमें मुक्ति है। भगवान में विलीन हो जाना अथवा एक निर्वाण  केवल्य पद कहलाता है। यह ज्ञान पद के सिद्धों को , साधकों को प्राप्त होता है ।वहां पहुंचने के बाद संसारी दुख और संसारी सुख दोनों से आप  किनारे होना जाएंगे। यह ज्ञान पथ के पथिको का गंतव्य और चरम उपलब्धि है और भक्ति पथ के पथिको को स्वर्ग से ऊपर -तो ज्ञान है, मोक्ष है और मोक्ष से ऊपर भी भगवान का धाम बताया गया है। जहां प्रभु अपने मित्र सिद्ध साधकों, सिद्ध परिकरों के सहित निवास करते हैं और विभिन्न प्रकार के आमोद-प्रमोद अपनी लीलाओं के द्वारा भक्तों को सुख प्रदान करते रहते हैं। भक्त अपनी सेवाओं के द्वारा भगवान को सुख प्रदान करते हैं और भगवान अपनी लीलाओं के द्वारा, अपनी कृपा दृष्टि के पोषण द्वारा उनको आनंद प्रदान करते रहते हैं। तो यह जो भगवत धाम है  उसको वैदिक भाषा मे त्रिपाक  विभूति कहां गया है। पौराणिक भाषा में भक्तों की भावना और उपासना के अनुसार साकेत, गोलाेक और वैकुंठ इत्यादि कहा जाता है। वह एक ऐसा स्थान है, जहां पहुंचना सबके बस की बात नहीं है और जहां भगवान के भक्ति मार्ग के जो पथिक हैं, भक्ति पथ के जो पथिक हैं, वह भगवान की कृपा द्वारा ही वहां पहुंच पाते हैं और वहां पहुंचने के बाद, ब्रह्मा जी उनके भाग्य में यह जबरदस्ती नहीं लिखेंगे , कि तुमने पिछले जन्म में ऐसा कर्म किया था, तो तुमको बैल बनना पड़ेगा, गधा बनना पड़ेगा, मनुष्य बनना पड़ेगा, बीमार पड़ोगे और कोड़ फूटेगा यह सब भगवान के धाम में जो पहुंच गए अब उनके लिए ब्रह्माजी शासन नहीं कर सकते और ब्रह्मा जी के, देवराज इंद्र जी के, यमराज जी के विभाग से बहुत ऊपर पहुंच गए हो। इसके लिए भगवान श्यामसुंदर गीता जी में कहते हैं कि जहां भक्ति मार्ग पर चलकर के  पहुंचा जा सकता है और जहां पहुंचने के बाद, जहां भगवान की कृपा के बाद, ही वहां पहुंचा जा सकता है। वहां पहुंचने के बाद फिर संसार में पुनरावर्तन नहीं होता है। वह है मेरा धाम। वहां मैं ही अपने मित्र सिद्ध-प्रसाधन  सिद्ध परिकरो के साथ निवास करता हूं। लक्ष्मी जी रहती हैं, भूदेवी रहती हैं और लीलादेवी निवास करती हैं और भगवान के सेवक,जय-विजय, नंद-सुनंद. विश्वतसैन इत्यादि पार्षद। अथवा जिन भक्तों ने भगवान की भक्ति की उनको भी, जटायु जी ने भगवान की भक्ति की और इनको अपना सा स्वरूप प्रदान करके, चतुर्भुज प्रभु ने अपने धाम में भेजा। गजराज ने  प्रभु की स्मरण भक्ति की और उनकी स्तुति की, उनकी प्रार्थना की, भगवान ने प्रसन्न होकर उनको  अपना चतुर्भुज रूप प्रदान करके, विमान पर बिठा करके और उनको सीधा धाम में पहुंचाया। वह भगवान का धाम, भक्ति पथ के पथिको को मिला करता है।

भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।


भगवान और भगवान के भक्तो को प्रणाम करने से भी कष्ट दूर हो जाते है।
गुरूदेव मलूकापीठेश्वर,वृन्दावन

भगवान का सिमरन करो पद वंदन करो तो सारे विघ्न नष्ट हो जाते हैं। गुरु का पद वंदन करो तो भी सारे कष्ट, नष्ट हो जाते हैं। भक्तों का पद वंदन करो, तो भी सारे कष्ट, विघ्न, नष्ट हो जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कि आमिर के राजा माधव सिंह छोटे भाई थे उनकी पत्नी श्री रत्नावती जी, पहले तो उनकी भक्ति का विरोध किया लोगों ने। लेकिन फिर बाद में उनकी भक्ति का लोहा मान लिया लोगों ने, और परिवार वालों ने, कि यह भक्ति दिखावा नहीं है सच्ची भक्ति है। इसके बाद मान सिंह और माधव सिंह दोनों कहीं नोका में बैठकर कहीं जा रहे थे और नोका आपद् ग्रस्त हो गई लगा कि दोनों डूब जाएंगे। तो मानसिंह ने कहा कि अब क्या करना चाहिए,तो कहा कि आपकी अनुज बधू रत्नावती भक्त है और सिद्ध कोटि की भक्त हैं, उनका स्मरण करें उनका पद वन्दन करें, उनके नाम की दुहाई दे,नैया पार लग जाएगी।तो सचमुच में रत्नावती जी के नाम की दुहाई की, पद वंदन किया, सिमरन किया तो नासे विघ्न अनेक।मान सिंह जी ने इच्छा व्यक्त की कि मैं उनका दर्शन करना चाहता हूं। आ गए दर्शन करने के लिए और दर्शन करके इनको बड़ी प्रसन्नता हुई और बढ़ाई करने लगे तो रत्नावती जी ने कहा इससे मेरी कोई विशेषता नहीं थी, ठाकुर जी की कृपा और  भक्ति महारानी की कृपा थी। जिनके हृदय में भक्ति महारानी आकर विराजमान हो जाए उनका माया कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है 

बुधवार, 15 जुलाई 2020

परमार्थ के पत्र पुष्प भाग 2

( दादा गुरु श्री गणेश दास भक्तमाली जी महाराज के श्री मुख से कुछ प्रवचन हमारे जीवन का उद्धार करने के लिए)



सत्संग करते रहोगे,सत्संग में आते-जाते रहोगे, सत्संग करते-करते सब कुछ का ज्ञान हो जाएगा। सत्संग से जुड़े रहो।सत्संग से जुड़े रहोगे तो  आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? इस बात का ज्ञान आपको हो जाएगा। आपके कर्तव्य का ज्ञान, आपका क्या कर्तव्य है?आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। सत्संग में आते-आते तरह-तरह की कथाएं आपको सुनने को मिलेंगीं। उससे आपको सब कुछ ज्ञान हो जाएगा। हम भगवान के शरण में हैं। अहंकार का त्याग होना जरूरी है।अहंकार का त्याग, जिसमें मैं राजा हूं,मैं धनी -मानी हूं,मैं बलवान हूं ,मैं रूपवान हूं। इस तरह से जाति में, उत्तम जाति में हूं। यह सब अहंकार छोड़ने के लिए होते हैं।एक अहंकार रहना चाहिए केवल, कि मैं भगवान का दास हूं। यह अहंकार नहीं छोड़ा जाएगा। वैष्णव के लक्षण, वैष्णव या भक्तों के लक्षण सभी रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत सभी में बड़े-बड़े, लंबे चौड़े वाक्य में कहे गए हैं। मुख्य चार लक्षण श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि प्राणियों पर दया करनी चाहिए ।दया में सब धर्म आ जाते हैं। जिसके हृदय में दया होगी ,वह किसी की चोरी नहीं करेगा क्योंकि चोरी करेगा,तो उसे उसे लगेगा कि किसी को कष्ट होगा।किसी को कष्ट ना देना ,यह भक्तों का लक्षण है। सब के ऊपर दया करना प्राणी मात्र के ऊपर दया करना, व्यवहार करना है।जगत में सब प्रकार का व्यवहार करना है, लेना है, देना है। लेकिन उसमें दया रहनी चाहिए। दया होगी तो हम दूसरों को ठगेंगे नहीं। उचित व्यवहार करेंगे। धोखा नहीं देंगे क्योंकि धोखा देने से उसके मन में कष्ट हो जाएगा, इस प्रकार दया पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। यह वैष्णव का मुख्य लक्षण है। चलते फिरते पैर के नीचे जीव मर जाते हैं, या अनजानें में हो जाता है। तो सायः काल को या प्रातः काल को भगवान के आगे नमस्कार करने से, कीर्तन करने से ,वह अपराध दूर हो जाता है। जानबूझकर के हत्या नहीं करनी चाहिए और अनजाने में जो हो जाती है तो भगवान का नाम लेने से, प्रणाम करने से वह अपराध  दूर हो जाता है।जीवों के प्रति दया का भाव बना रहना चाहिए। भगवान के नाम में रुचि रखना,चलते-फिरते उठते बैठते जिस भी नाम में आपको रुचि है, उसका जाप करते रहना चाहिए। गीता का कहना है कि भगवान ने अर्जुन को कहा तुम युद्ध भी करो और मेरा स्मरण भी करो। तो अर्जुन ने कहाँ कि दोनों काम तो नहीं हो सकते हैं, युद्ध भी करूँ और स्मरण भी करूँ। दोनों काम अगर नहीं हो सकते तो कृष्ण नहीं कहते। तो जो कृष्ण ने अर्जुन को कहा वह सिर्फ अर्जुन को ही नहीं कहा, हम सब को भी कहा है कि संसार में रहकर जाप भी करों। यह संसार भी एक प्रकार का युद्ध है संसार का व्यापार ,व्यवहार जो है। यह एक युद्ध ही है। इसको करते-करते भी भगवान का नाम जपते रहना चाहिए। नाम के वियोग होने पर दुख होना, यह भक्तों का दूसरा लक्षण है ।भगवान का ज्यादा से ज्यादा नाम लेते रहे। मनसे, वाणी से स्वयं भी लेना चाहिए और दूसरा कोई सामने पड़ जाए तो भक्ति का दान करना चाहिए, भक्ति का दान क्या है? सामने कोई आपके आ गया- श्री कृष्ण का नाम लिया, जय श्री कृष्ण, जय श्री सीताराम,जय श्री राधे, तो आपने एक नाम का दान कर दिया।नाम का दान किया तो, तो आपको कोई दुख दरिद्रता नहीं आएगी।

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

प्रभु से प्रार्थना करने पर लाभ




श्री राधे, पाप का रास्ता छोड़ कर के हमें पुण्य के रास्ते पर चलना चाहिए और चलने का हमारा सामर्थ्य नहीं है। अगर हम कहें कि हम से नहीं चला जा सकता, हम से नहीं बन सकता। जाने अनजाने पाप होते रहते हैं। इसके लिए हमें भगवान से प्रार्थना करते रहने चाहिए। जो हमारे बस की नहीं रह जाती है उसके लिए हम क्या करते हैं? भगवान से प्रार्थना करते हैं। कोई काम है, हमारे करे से नहीं हो रहा है। हमारे बनाए से नहीं बन रहा है। तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ठाकुर जी कृपा करें ,हमारा काम बन जाए। इसी तरह से सच के रास्ते पर, पुण्य के रास्ते पर, चलते हम से नहीं बन रहा है। तो पाप के रास्ते से हम बच नहीं पा रहे हैं इसके वास्ते भगवान से हमें प्रार्थना करनी चाहिए ।हर समय हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए। ईश्वर हमें पाप के रास्ते से चलने पर बचाएगा। प्रार्थना में अहंकार नहीं होना चाहिए, प्रार्थना के समय दीनता होनी चाहिए। प्रार्थना की बहुत बड़ी महिमा है ।इतनी महिमा है कि पूजा पद्धति में अनंत उपचार हो जाते हैं।राजा लोग अनंत उपचार से पूजा करते हैं लेकिन साधारण इंसान पांच उपचारों से ही पूजा कर देता है। पाँच ही वस्तु रहती है- जल चढ़ा दिया, चंदन चढ़ा दिया, फूल चढ़ा दिया, आरती कर ली, भोग लगा दिया। इन पांच उपचारों के साथ या षोडशोपचारों के साथ या राज उपचार के साथ सब के साथ, अगर आप प्रार्थना नहीं करें, तो भगवान नहीं मानेंगे आप लोग सामने रख दें और कुछ नहीं बोले, ठाकुर जी नहीं खाएंगे। बिना प्रार्थना के भगवान किसी भी उपचार को चाहे भोग हो, जल हो, चंदन हो, बिना प्रार्थना के ईश्वर स्वीकार नहीं करता है। और मंत्र पढ़ने की जो विधि है वह प्रार्थना ही है। पूजा करते समय वैदिक, तांत्रिक, अलौकिक, सब प्रकार की पूजा मंत्र द्वारा की जाती है और इसे ईश्वर स्वीकार करता है। आपको पुराणों की भाषा में, मंत्रों की भाषा में नहीं आता है। तो अपनी भाषा में प्रार्थना करो, कि प्रभु यह जो भी मैं आपको दे रहा हूं। अर्पण कर रहा हूं यह आप ही की वस्तु है। आप इसे स्वीकार करो।भगवान को प्रणाम करते समय,भगवान से कहिए कि मैं आपका हूं।आप मुझे स्वीकार कर लीजिए। इस प्रकार कहने पर भगवान स्वीकार कर लेते हैं। जीव को जब भगवान स्वीकार करते हैं तो वह पवित्र हो जाता है। तो प्रार्थना करनी चाहिए ।अगर आपके पास फल, फूल ,भोग  चंदन कुछ नहीं है। केवल एक प्रार्थना है, तो भगवान से प्रार्थना कीजिए, तब भी भगवान प्रसन्न हो जाते हैं ।इसलिए प्रार्थना का बहुत बड़ा महत्व है।
(हमारे दादा गुरु भक्त माली जी महाराज मलूक पीठ वृंदावन के श्री मुख से)

मंगलवार, 5 मई 2020

दुर्गा कवच का पाठ हिदी में

                          दुर्गा कवच (हिंदी में )

आजकल पूरे विश्व में करोना जैसी महामारी फैली हुई है और सभी परेशान है, हताश है अपने अपने तरीके से सभी पराक्रम कर रहे हैं, इस महामारी  से लड़ रहे हैं ।इसी के साथ ही हमें दुर्गा माता कवच का पाठ नित्य करना चाहिए क्योंकि वह हमारी मां है, अंबे मां, जगदंबे मां है, वह हमारी पुकार को जरूर सुनेगी और हमारी इस महामारी से हमारी रक्षा करेंगी।
ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है।
 मार्कंडेय जी ने कहा- पितामह, जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो ऐसा कोई साधन मुझे बताइए ।
ब्रह्माजी बोले- ब्राह्मण ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है ।जो गोपनीय से भी परम गोपनीय,पवित्र तथा संपूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है।महामुने! उसे श्रवण करो।। देवी की नौ मूर्तियां हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं। उनके पृथक पृथक नाम बतलाए जाते हैं। प्रथम नाम 'शैलपुत्री' दूसरी मूर्ति का नाम 'ब्रह्मचारिणी' हैं . तीसरा स्वररुप 'चंद्रघंटा' के नाम से प्रसिद्ध है. । चौथी मूर्ति को 'कुष्मांडा' कहते हैं ,पांचवी दुर्गा का नाम 'स्कन्दमाता' है, देवी के छठे रूप को' कात्यायनी' कहते हैं सातंवा 'कालरात्रि' और आठवां स्वरूप 'महागौरी' के नाम से प्रसिद्ध है। नवीदुर्गा का नाम 'सिद्धिदात्री' है ।यह नाम वेदभगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ।जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो। रणभूमि में शत्रु से घिर गया हो,तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हैं उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। युद्ध के समय, संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई भी विपत्ति नहीं आती।उन्हें शोंक, दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती। जिन्होंने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरण किया है उनका निश्चय ही अभुदय होता है देवेश्वरी जो तुम्हारा चिंतन करते हैं, उनकी तुम निसंदेह रक्षा करती हो। चामुंडा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैसें  सवारी करती हैं। ऐंद्री का वाहन एरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरूड़ पर आती हैं ।माहेश्वरी वृषभ पर आसन जमाती हैं कुमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की पत्नि लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं ,और हाथों में कमल धारण किए हैं।वृषभ पर सवार ईश्वरी देवी ने श्वेत रुप धारण कर रखा है । ब्राह्मणी देवी हंस पर बैठी हुई है और  विभिन्न प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं। इस प्रकार यह सभी माताएं सब प्रकार की योग शक्तियों से संपन्न है इनके सिवा और भी बहुत सी देवियां है जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं।यह संपूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुई है और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती है।यह शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल  खेतक, और तोमर ,परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल उत्तम धनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों में धारण किए रहती हैं। देत्यो के शरीर का नाश करना,भक्तों को अभय दान देना और देवताओं का कल्याण करना।यही उनके अस्त्र- शस्त्र धारण करने का उद्देश्य है। कवच का पाठ आरंभ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए (महान रूद्र रूप, अत्यंत गूढ़ पराक्रम,महान बल और महान उत्साह वाली देवी तुम महान भय का नाश करने वाली हो ,तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारी और देखना भी कठिन है,शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदंबिके हमारी रक्षा करो)पूर्व दिशा में इंद्र शक्ति हमारी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्णिशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नेऋत्य कोण  खड़गधारण मेरी रक्षा करें। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्य कोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करें उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारनी देवी रक्षा करें। ब्राह्मणी ऊपर से, नीचे की ओर  वैष्णवी हमारी रक्षा करें। इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुंडा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजय पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें। वाम भाग में अजीता और दक्षिण भाग में अपराजिता मेरी रक्षा करें, उधौतिनी शिखा की रक्षा करें ।उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें। ललाट में माला धारी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। दोनों भवों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें । कानों में द्वारबासिनी रक्षा करें कालिका देवी कपोलो की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करें, नासिका में सुगंधा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करें, नीचे की ओठ में अमृत कला और जीव्हा में सरस्वती देवी रक्षा करें, कौमारी दांतो की और चंडिका देवी कंठ प्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाँटी और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोड़ी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करें,भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धारी पृष्ठ वंश मे( मेरूदंड) में रहकर रक्षा करें,कंठ के बाहरी में भाग में नीलग्रीवी और कंठ की नली में नलकूबरी रक्षा करें, दोनों कंधों में खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की व्रजधारिणी रक्षा करें। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों की अंबिका देवी रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें कुलेश्वरी कुक्षी (पेट)में रहकर रक्षा करें। महादेवी दोनों स्तनों की और शोक विनाशनी देवी मन की रक्षा करें, ललिता देवी ह्रदय में और शूल धारिणी उदर में रहकर रक्षा करें, नाभि में कामिनी और  गुह्यभाग की वह गुह्येश्वरी रक्षा करें, पूतना और कामिका लिंग और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें।
भगवती कटिभाग में और विंध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें संपूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें, नारसिंही दोनों घुटनों की और तेजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठ भाग की रक्षा करें, श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासनी पैरों के तलवों में रहकर रक्षा करें, अपनी दाढो़ के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दृंष्टा कराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशनी देवी केशो की रक्षा करें रोमावलियों के छिद्रों में कोबेरी और त्वचा की बागेश्वरी देवी रक्षा करें ,पार्वती देवी रक्त,मज्जा, वसा ,मांस  हड्डी और मेद की रक्षा करें ,आंतों की कालरात्रि और पित्त की मुक्तेश्वरी देवी रक्षा करें ,मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करें, नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें, जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता वह अभेध्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करें।
ब्राह्मणी आप मेरे वीर्य की रक्षा करें, छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्म धारणी देवी मेरे अहंकार मन और बुद्धि की रक्षा करें, हाथ में व्रज धारण करने वाली व्रजहता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान,वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें, रस,रूप ,गंध ,शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें, तथा सत्व गुण रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।वाराही आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी धर्म की रक्षा करें, तथा  चक्रधारण करने वाली देवी यश ,कीर्ति, लक्ष्मी ,धन तथा विद्या की रक्षा करें, इंद्राणी आप मेरे गोत्र की रक्षा करें ।चण्डिके आप पशु और पक्षियों की रक्षा करें ,महालक्ष्मी पुत्र और पुत्री की रक्षा करें ,भैरवी पत्नी/ पति की रक्षा करें, मेरे पथ की सुपथा और मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें ,राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें। तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें।
देवी ! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब आपके द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजय शालिनी और पाप नाशिनी हो। यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी ना जाए । कवच का पाठ करके ही यात्रा करें। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहां जहां भी जाता है ,वहां-वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करता है, उस उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान  ऐश्वर्य का भागी होता है। सब ओर से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथागत तीनो लोक में पूजनीय होता है। देविका यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम पूर्वक तीनों संध्याओ के समय श्रद्धा के साथ का पाठ करता है ,उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता है।
इसलिए आप सब से विन्रम निवेदन है कि प्रतिदिन इस कवच का पाठ अवश्य करें।

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